सतत साधना से आस्था की गहन अभिव्यक्ति
जीतेंद्र अवस्थी
मां तो फिर मां है। बच्चे को एक क्षण के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती। उसके रुदन की जरा-सी भी आवाज आए तो तत्काल प्रकट होकर शिशु को अंक में लेकर आशीष का अजस्र वर्षण कर देती है। मां के इसी स्नेह सिक्त आंचल की तलबगार पूरी दुनिया है। श्रीदुर्गा मां सर्वाधिक लोकप्रिय आराध्य है। देश में गली-गली, गांव-गांव और विदेश में भी देवी मां के अनेक मंदिर वह आराध्य स्थल हैं। नाम अलग-अलग लेकिन मां एक। नवरात्र, गुप्त नवरात्र अनेक अन्य अवसरों पर मां का विशिष्ट पूजन-पाठ लगभग वर्ष भर चला रहता है।
लेखक नाथू सिंह महरा ने वर्षों वर्ष श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ अध्ययन, चिंतन मनन किया है। अब इसे ही उन्होंने सरल हिंदी पद्यानुवाद में प्रस्तुत किया है। संस्कृत से यह हिंदी रूपांतर अभियांत्रिकी स्तर पर नहीं किया है अपितु आस्था के गहरे सागर में डुबकी लगाकर वहां से रत्न निकाले हैं। श्रीदुर्गासप्तशती के हिंदी रूपांतर पहले भी हुए हैं लेकिन संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर जगदीश प्रसाद सेमवाल ने उचित ही कहा है कि लेखक का यह प्रयास अपनी संपूर्णता के कारण उनसे भिन्न है।
श्रीदुर्गासप्तशती उपासकों के लिए कल्पतरु के समान है। श्रद्धा के साथ किया गया पाठ भक्तों की सभी पावन कामनाओं को पूरा करता है। इसमें कुल 700 श्लोक (535 श्लोक मंत्र, 42 अर्धश्लोक मंत्र, 66 अवदान मंत्र और 57 उवॉच मंत्र) हैं। लेखक ने श्रीदुर्गासप्तशती के तीनों चरितों (प्रथम चरित, प्रथम अध्याय, द्वितीय/ मध्यम चरित, द्वितीय अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक और उत्तम चरित) का मूल क्रम के अनुसार रूपांतरण किया है। इसे ही उन्होंने श्रीदुर्गाचरितावली नाम दिया है।
मां के पूजन-मंत्र-उच्चारण अथवा श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ में विशेष सावधानी रखनी होती है। एक भी शब्द, अक्षर या वर्ण के उच्चारण में त्रुटि होने से अर्थ का अनर्थ हो सकता है। इसीलिए लेखक ने इसका हिंदी पद्यानुवाद करके संस्कृत कम जानने वालों के लिए सरल भाषा में इसे प्रस्तुत कर विशेष सुविधा उपलब्ध कराई है। शब्द और पद्य संयोजन के साथ-साथ टंकण का कार्य पूरी कुशलता के साथ किया गया है।
किसी तरह का मीन-मेख निकालना विद्वान लेखक के साथ अन्याय ही होगा क्योंकि आस्था के इस सद्प्रयास के साथ ऐसा करना न तो अभीष्ट है और न ही सार्थक। लेखक ने इतने श्रम के बाद प्रथम संस्करण नि:शुल्क बांटने का निर्णय लेकर मां दुर्गा के उपासकों के लिए अनुपम उपहार प्रस्तुत किया है।
श्रीदुर्गा 32 नामावली में मां के संस्कृत नामों का हिंदी अनुवाद भी दिया जाए तो इनका जाप करने वालों को नाम का अर्थ मन में रखने का सुभीता होगा। उन्हें अभीष्ट फल मिलेगा। ऐसे ही श्रीसिद्धकुंजिकास्तोत्र का हिंदी अनुवाद भी दिया जाए तो सोने पर सुहागा होगा। नवार्ण मंत्र की महिमा एवं संपुट प्रयोग पर सामग्री देकर बहुत सुंदर काम किया गया है। सिद्ध संपुट मंत्रों की संख्या बढ़ाने की भी दरकार है। देव्पराधक्षमापनस्तोत्र भी पुस्तक में शामिल करना उपादेय ही होगा। भारतीय धर्म संस्कृति के संवर्धन का यह प्रयास स्वागतयोग्य है।
पुस्तक : श्रीदुर्गाचरितावली लेखक : नाथू सिंह महरा प्रकाशक : सप्तऋषि प्रकाशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 172 मूल्य : रु. 60. (पहला संस्करण नि:शुल्क)