कहानियों में शिल्प-कला का समन्वय
रतन चंद ‘रत्नेश’
लिखाई का हर नया शब्द किसी अनजानी यात्रा पर जाने जैसा है। निकले थे, पता होता है पर कहां और कब पहुंचेंगे, ये नहीं मालूम। और इस नहीं जानने का सुख ही लिखने का सुख है। किसी जंगल में रास्ता बनाते खोजी हैं हम सब; नई दुनिया की खोज है, नए रास्तों की खोज है, नए शब्दों की खोज है।
अपनी पहली ही कहानी से बरबस ध्यान खींचने वाली प्रत्यक्षा की छह कहानियों का संग्रह है—‘अतर, दुनिया में क्या हासिल’। इनमें कुछ ऐसी ही नई दुनिया, नए रास्ते और नए शब्दों की खोज है। इन्हें पढ़ते हुए अलीबाबा-सा एक तिलस्मी संसार बिना सिमसिम के अपने आप खुलता चला जाता है, जहां मौजूदा दुनिया को एक नए दृष्टिकोण से देखने का विलक्षण अनुभव मिलता है।
एक आम मुस्लिम बस्ती के एक घर में इत्रदानी से जब-तब फैलती अतर की मादक-दहकती गंध और उसके फुराने की चिंता से उपजी घबराहट (अतर), टेंडरों की बोली में व्याप्त अफसरी भ्रष्टाचार में भीगती तबादले की पनीली पोस्टिंग (बारिश के देवता), पति की अकाल मृत्यु से उपजे बदलाव में छोटे से घर की किसी तंग गलियों वाले संसार में भयावह स्थिति में रहने को मजबूर निस्संतान महिला की दिनचर्या में शामिल पड़ोस की बुढ़िया की उदासी में पहली मुस्कान (गुम), अपने ममेरे भाई के भोग का शिकार हुई अभिशप्त औरत की मानसिक स्थिति (ईनारदाना) में झलकती है। उदासी और हैरत में डूबते-उतराते अभिजात्य वर्ग के साहित्यकारों का लेखन-संबंधी ऊहापोह ‘विद्या सिन्हा की मुस्कान’ में बखूबी दर्शाया गया है। यहां वर्नाकुलर और अंग्रेजी में लिखने वाले दो तरह के लेखक हैं, और उनकी सोच अक्सर एक-दूसरे से टकराती रहती है। सुंदर लेखिका को छापने के लिए उत्सुक प्रकाशक और संपादकों का एक सच भी यहां देखने को मिलता है।
संग्रह की अंतिम कहानी ‘मोबीन का लाल हवाई जहाज’ रूढ़िवादी परिवारों में पलते बच्चों की आकांक्षाओं के खुलते नए द्वार का संकेत है। इन कहानियों के केंद्र में शिल्प और कला का अद्भुत मेल व्याप्त है।
पुस्तक : अतर, दुनिया में क्या हासिल लेखिका : प्रत्यक्षा प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 250.