बीमारी छुपाने को आधार बनाकर क्लेम नहीं रोक सकती बीमा कंपनी
श्रीगोपाल नारसन
मेडिकल हैल्थ इंश्योरेंस करने वाली कंपनी ने उपभोक्ता को मेडिकल बीमा पॉलिसी देने से पहले अगर बीमित व्यक्ति का मेडिकल टेस्ट कराया है तो इंश्योरेंस कंपनी मेडिक्लेम के दावे को पहले से बीमारी होने के आधार पर खारिज नहीं कर सकती, न ही यह आरोप लगा सकती है कि क्लेम लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारी को
छिपाया है।
इंदौर का मामला
मध्य प्रदेश के इंदौर में जिला उपभोक्ता आयोग ने इसी तरह के एक केस में पीड़ित उपभोक्ता के हक में फैसला सुनाया है। साल 2016 में मानपुर महू निवासी कोमल चौधरी ने एक नामी बीमा कंपनी से दो लाख रुपये की हेल्थ पॉलिसी ली थी। मार्च 2017 में उन्हें कैंसर होने का पता चला,तो कराए गए इलाज के खर्च के लिए जब पॉलिसी धारक ने मेडिक्लेम राशि का दावा किया तो बीमा कंपनी ने दावा खारिज कर दिया कि पॉलिसी धारक ने बीमा पॉलिसी लेते समय कंपनी से पुरानी बीमारी छुपाई थी। बीमा कंपनी ने बीमाधारक पर हाइपरटेंशन और टीबी से पीड़ित होने की जानकारी भी नहीं देने का आरोप भी लगाया। इस पर पीड़ित महिला के परिजनों ने बीमा कंपनी के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की।
जिला आयोग का फैसला
बीमाधारक महिला की 2019 में की मौत होने के बाद भी जिला उपभोक्ता आयोग में केस चलता रहा। पीड़ित पक्ष ने आयोग में कहा कि कोई भी व्यक्ति कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को इसलिए छिपाकर नहीं रख सकता कि उसे बीमा क्लेम हासिल करना है, बीमा कंपनी इस तरह के तर्क देकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन कर रही है। जब बीमा कंपनी ने खुद ही मेडिकल जांचें करवाकर बीमा दिया तो वह क्लेम देने से नहीं बच सकती और हाइपरटेंशन का भी कैंसर जैसी बीमारी से सीधा कोई संबंध नहीं है। इस पर जिला उपभोक्ता आयोग ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी बीमा पॉलिसी के अनुसार दो लाख रुपये और क्लेम खारिज होने से अब तक पूरी राशि पर छह प्रतिशत ब्याज अदा करे, इसके अलावा परिजन को मानसिक कष्ट के लिए बीमा कंपनी को 25 हजार रुपये अलग से देने होंगे।
पंजाब का केस
इसी तरह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने पंजाब राज्य आयोग के आदेश को खारिज करते हुए एलआईसी की चंडीगढ़ शाखा को पंजाब निवासी नीलम को बीमा राशि के साथ ही 25,000 रुपये का मुआवजा तथा मुकदमे में खर्च हुए 5,000 रुपये की राशि का 45 दिनों के भीतर भुगतान करने का आदेश दिया। पीड़िता के पति ने 2003 में एलआईसी पॉलिसी खरीदी थी। उपभोक्ता को मधुमेह रोग था। बीमा फॉर्म भरते हुए उन्होंने अपनी बीमारी का उल्लेख नहीं किया था। साल 2004 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। पति के निधन के बाद जब नीलम ने पॉलिसी के लिए दावा किया, तो कंपनी ने उसे खारिज कर दिया कि मृतक ने पॉलिसी खरीदते वक्त अपने स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी छिपाई और दावे का समय बीत चुका है।
इन हालात में मेडिक्लेम मान्य
उपभोक्ता आयोग ने कहा कि उपभोक्ता की मौत ‘कार्डियो रेस्पाइरेटरी अरेस्ट’ की वजह से हुई और यह बीमा मौत की तारीख के महज पांच महीने पहले हुआ था। इससे स्पष्ट होता है कि फॉर्म भरते वक्त उन्हें यह बीमारी नहीं थी। तब मधुमेह की बीमारी थी, लेकिन वह नियंत्रण में थी। इसके अलावा, जीवनशैली की बीमारी के बारे में न बताने से दावेदार का दावा खारिज नहीं होगा। वहीं उपभोक्ता आयोग ने कहा कि यह आधार बीमित व्यक्ति को इस तरह की किसी बीमारी की जानकारी छिपाने का अधिकार नहीं प्रदान करता है। लेकिन पहले से किसी बीमारी के बारे में कोई भी जानकारी छिपाना, जिसकी वजह से मौत नहीं हुई या मौत के कारण से उसका कोई लेना-देना हो, तो यह दावेदार को दावा पाने से नहीं रोकेगा। हम भविष्य में होने वाली किसी भी बीमारी या एक्सीडेंट के इलाज का खर्च पाने के लिए स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदते हैं। लेकिन अगर आपने पहले से मौजूद किसी बीमारी के बारे में इंश्योरेस सेवा देने वाली कंपनी को नहीं बताया तो कंपनी आपका क्लेम अस्वीकार भी कर सकती है या पॉलिसी रद्द कर सकती है।
स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय जब पुरानी बीमारी के बारे में कंपनी के अधिकृत व्यक्ति को बताते हैं तो वह कुछ प्रीमियम और वेटिंग पीरियड के साथ उस बीमारी को भी बीमा कवर में शामिल कर लेती है। अगर आपने लगातार 8 साल तक प्रीमियम भरा है, तब आपकी पॉलिसी किसी भी आधार पर कैंसल नहीं की जा सकती और आपको बीमित बीमारी होने पर मेडिक्लेम मिलेगा।
-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।