कर्मठ कन्याएं हर परिस्थिति में हौसला बनाए रखने की दो ‘देवियों’ की प्रेरक कहानियां
पहले आत्मचिंतन, फिर संघर्षों में तपकर बनीं फौलादी कंचन
राजेश शर्मा/हप्र
फरीदाबाद, 11 अप्रैल
नवरात्र पर्व आत्मिक चिंतन के लिए भी प्रेरित करता है। इसी चिंतन संबंधी प्रेरक कहानी है आज की ‘देवी’ कंचन की। अवसाद के समय जीवन के प्रति मोहभंग की स्थिति में पहुंच चुकी कंचन ने आत्म चिंतन किया, संघर्षों में तपीं और बन गयीं ‘फौलादी कंचन।’ असल में एक रेल हादसे में कंचन लखानी का एक हाथ कट गया था। स्पाइनल चोट के चलते कमर से नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। वह गहरे अवसाद में आ गयीं। फिर खुद ही संभलीं और संघर्षों में तपीं। मजबूत इच्छा शक्ति का ऐसा उदाहरण पेश किया कि अंतर्राष्ट्रीय पैरा एथलीट बन गयीं। कई मुकाबलों में ढेरों कांस्य, रजत व स्वर्ण पदक जीते। बात वर्ष 2008 की है जब ग्रेटर फरीदाबाद के सेक्टर-85 में रहने वालीं कंचन रावल इंटरनेशनल स्कूल में अध्यापिका थीं। एक रेल हादसे ने व्हील चेयर पर बिठा दिया। कंचन कहती हैं, ‘पहली बार जब व्हील चेयर देखी तो मैं अंदर से टूट गई। कुछ दिन अपनों का आश्वासन मिला, धीरे-धीरे सब किनारे करने लगे। मन हुआ कि मौत को गले लगा लूं। लेकिन फिर विचार किया कि संघर्ष का नाम ही जीवन है।’ खुद को श्रीलाल जी महाराज की सेवक बताने वाली कंचन ने पैरा खेलों के बारे में सुन रखा था। बस पहुंच गई राजा नाहर सिंह स्टेडियम और एथलेटिक कोच नरसी राम से भाला फेंक, चक्का फेंक और गोला फेंक का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। पिता मनोहर लाल, मां पुष्पा, भाई सुनील व कमल ने हौसला बढ़ाया। दोनों भाई स्टेडियम से लाते, ले जाते। आज कंचन कोच नरसी राम व गिर्राज सिंह के मार्गदर्शन को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं। वह गरीब बच्चों को पढ़ाने का भी काम करती हैं। अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी हिस्सा लेती हैं।
अनेक उपलब्धियां कीं हासिल
कंचन ने वर्ष 2017 में जयपुर में तीन स्वर्ण पदक जीते। वर्ष 2021 में बेंगलुरू में स्वर्ण एवं रजत पदक जीते। यहीं अगले साल रजत और कांस्य पदक जीते। इससे पहले वर्ष 2018 में पेरिस में विश्व पैरा ग्रां प्रिक्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कंचन ने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। उसके अगले साल यानी 2019 में बीजिंग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2022 में ट्यूनिशिया में भारतीय प्रतिनिधि रहीं। वर्ष 2023 में चीन में आयोजित खेलों में भाग लिया। इस साल कंचन ने सिक्स्थ इंडियन पैरा एथलीट ओपन में भाग लिया।
दिव्यांगता को हराकर भरी सपनों की उड़ान
प्रदीप साहू/हप्र
चरखी दादरी : कहा जाता है कि मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है। यह कहावत सटीक बैठती है चरखी दादरी निवासी रेखा देवी के साथ। नवरात्र के मौके पर इस देवी की कहानी भी प्रेरक है और हौसला देने वाली है।
रेखा ने दिव्यांगता को हराकर सपनों की उड़ान भरी और नेशनल स्तर पर पैरा तलवारबाजी में तीन मेडल जीते। साथ ही एशियन चैंपियनशिप तक पहुंची। अब रेखा का पैरा ओलंपिक खेलों में देश के लिए मेडल जीतने का सपना है। दिव्यांग खिलाड़ी रेखा देवी ने दिव्यांगता को अभिशाप न मानकर इसे अवसर में तब्दील कर दिया। फिर राष्ट्रीय पैरा एथलीट में कई मेडल लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा पूरे देश में मनाया। हालांकि रेखा को पहले तो अपने जीवन में कई विफलताओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी विशेष परिस्थितियों को ढाल बनाकर हर मुश्किल से लड़ना सीखा और आज वह देश की सफल पैरा एथलीट भी हैं। दिव्यांग खिलाड़ी रेखा ने बताया कि पहले नौकरी के लिए काफी मेहनत की और नौकरी नहीं मिली तो पैरा खेलों में भविष्य संवारने का निर्णय लिया। मेहनत के बूते नेशनल एथलीट खेलों में जैवलिन व डिस्कस थ्रो में मेडल जीते तो उन्हें हरियाणा में ग्रुप डी की नौकरी मिल गई। बहादुरगढ़ नगर परिषद में बेलदार के पद पर तैनात रेखा ने नौकरी मिलने के बाद भी पैरा खेलों में अपना जौहर दिखाते हुए कई स्पर्धाओं में मेडल जीतने का सिलसिला जारी रखा और एशियन खेलों में हिस्सा लिया। रेखा कहती हैं कि हौसलों से उड़ान भरकर पैरा ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीतना उनका सपना है। दिव्यांगता ही उनकी ताकत है और विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। अब वह ओलंपिक तक पहुंचने के लिए मैदान में मेहनत कर रही हैं।