परीक्षा में संबल अभिभावकों की प्रेरणा का
अमिताभ स.
कुछ बच्चों को इम्तिहान से ऐन पहले सब कुछ आने के बावजूद लगता है कि कुछ याद नहीं है। दिमाग एकदम खाली लगता है। वहीं अगर विद्यार्थी का आत्मबल टूट जाए, तो नतीजा फिसड्डी भी हो सकता है। तो ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक सोच-समझकर ही कोई कदम उठायें। बच्चों को बुरा-भला कहना या फटकारना तो नहीं चाहिए। वहीं अपना तनाव, उदासी और निराशा बच्चों के सामने जाहिर न होने दें। ऐसे में पैरेंट्स के लिए जरूरी है बच्चे से बात करना। उसमें भरोसा, दुलार, समर्थन और आत्मबल का भाव जगाने की कोशिश हो।
ऐन वक्त पर दिमाग खाली हो जाना
दस साल का सहज समझदार है और मेहनती भी। लेकिन इम्तिहान में उसे बड़ी मुश्किल होती है। घर पर मां के सामने वह मैथ्स के सवाल फटाफट सुलझा लेता है, जबकि इम्तिहान में एक भी सुलझाने में असमर्थ रहता है। कहता है कि उसका दिमाग खाली हो जाता है। टीचर का मानना है कि सहज की यह दिक्कत उसकी चिंता या तनाव से जुड़ी है।
एग्जामिनेशन का फोबिया
परीक्षा से पहले और उसके दौरान कुछ हद तक हल्का भय या फिक्र होना सामान्य है। इससे नुकसान तो खैर नहीं होता, बल्कि सवालों पर बेहतर तरीक़े से ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। जबकि इम्तिहान को लेकर बेवजह खौफ या चिंता से एकाग्रता और फिर नतीजों पर घातक असर पड़ना स्वाभाविक है। इसे ‘एग्जामिनेशन या टेस्ट फोबिया’ कहते हैं।
भारी-भरकम अपेक्षाओं का बोझा
टेस्ट एंजाइटी से फेल होने का डर और नियंत्रण खोने का तनाव पैदा होता है। कोई भी छात्र-छात्रा इसकी गिरफ्त में फंस सकता है। लेकिन शिकार होने की ज्यादा संभावना लायक स्टूडेंट्स की होती है, जो नतीजे को लेकर चिंतित रहते हैं। अभिभावकों और टीचरों के प्रतियोगी स्वभाव के चलते बच्चों के प्रति उनकी आस बढ़ जाती है। अभिभावकों का बच्चों पर दबाव और किताबी पढ़ाई को खासी अहमियत देना तनाव पैदा करने का बड़ा कारण है।
परीक्षा से पूर्व उभरते हैं लक्षण
अमूमन इस बीमारी के लक्षण पेपरों के बीच में या महत्वपूर्ण परीक्षाओं से पहले उभरते हैं। टाइम मैनेजमेंट और पढ़ाई की योजना में खामियों से परीक्षा सेे ऐन पहले भी तनाव घेर सकता है। एग्जामिनेशन एंजाइटी के मुख्य लक्षण हैं- एकाएक डिप्रेशन या फोबिया, आत्म-नियंत्रण खोना, दिमाग खाली-खाली लगना, पढ़ाई न कर पाना, फेल होने का डर आदि। कुछ बच्चों में लक्षण बढ़ भी सकते हैं। मसलन, माता-पिता से झगड़ना, डरना, चिड़चिड़ापन, भोजन न करना। किशोरावस्था में, ये हालात अतिवादी कदम उठाने तक ले जा सकते हैं।
तनाव कम करने की रणनीति
इम्तिहान लक्ष्य हासिल करने की राह की एक सीढ़ी है। किसी की काबिलियत आंकने का यही खास औजार है। स्कूली छात्र-छात्राओं में परीक्षा के खौफ और जीवन लीला समाप्त करने के मामले दिनों-दिन बढ़ रहे हैं। बढ़ते तनाव को रोकने के लिए टीचर, पेरेंट्स और स्टूडेंट्स के लिए ‘होम वर्क’ जरूरी है। ज्यादातर स्कूलों में, एकदम प्रतियोगी माहौल या मुकाबले की होड़ से छात्रोंं के नंबरों पर फोकस रहता है। जबकि सीखने की प्रक्रिया नजरअंदाज हो जाती है।
पढ़ने की कला से कामयाबी
अभिभावकों को चाहिए कि ऊंची महत्वाकांक्षाओं को किनारे कर दें। इससे बाल मन पर स्कूली पढ़ाई हौवा नहीं बनेगी। छात्र-छात्राएं भी सोचने लगेंगे कि कामयाबी उनकी पढ़ने की कला पर निर्भर है। यानी रिविजन करने का असरदार तरीका अपनाया जाए। शुरू से नियमित पढ़ाई ज्यादातर कारगर रहती है। अंतिम क्षणों में रटना कंफ्यूजन पैदा करता है।
मिसालें देकर समझाएं
परीक्षा से पहले बच्चों का आत्मबल बढ़ाने के लिए समझाएं कि सफलता की कहानियां केवल सबक देती हैं, लेकिन विफलता कामयाबी हासिल करने का रास्ता सुझाती है, हौसला बढ़ाती है। नतीजतन इंसान बेहतर विकल्पों की ओर मुड़ता है। इसलिए पढ़ने के बावजूद भूलने का अहसास जागे, तो घबराएं नहीं। परीक्षा देते वक्त पढ़ा हुआ खुद-ब-खुद याद आ जाता है।
बच्चों को बताएं फ़िल्म अभिनेता आर माधवन के विचार कि नम्बर सब कुछ नहीं। वे आठवीं मैं फेल हो गये थे क्योंकि हिन्दी में कमजोर थे। लेकिन आगे चलकर, उन्हें हिन्दी की बदौलत बॉलीवुड में रोल मिले। सचिन तेंदुलकर भी हाई स्कूल की परीक्षा में फेल हो गये थे। बावजूद इसके उनका आत्मबल गिरा या डगमगाया नहीं। बखूबी क्रिकेट की दुनिया में अपना लक्ष्य हासिल किया।