निपटाने के खेल में बाहर-भीतर घात
प्रदीप कुमार दीक्षित
कुछ लोगों में दूसरे लोगों को निपटाने में महारत हासिल होती है। किसी को नीचा दिखाना हो तो वे इतनी सफाई से अपना दांव खेलते हैं कि उसे मालूम ही नहीं पड़ता कि आखिर हुआ क्या है। वह हक्का-बक्का रह जाता है। इस खेल का दायरा व्यापक है। खेत-खलिहान से लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक ऐसे खिलाड़ी देखे गये हैं। राष्ट्रीय पटल पर तो राजनीतिक दल इस खेल में जी-जान से जुटे रहते हैं। कोई दल या कोई नेता किसी अन्य दल को कब निपटा दे, इसका अंदाज किसी को नहीं होता है। जब खेल हो जाता है तो पता लगता है कि गड़बड़ हो गई है। एक ही दल में नेता एक-दूसरे की टांग पकड़ कर खींचने में लगे रहते हैं। चुनाव के दौरान दलों में ऐसा घमासान होता है कि मानो कट्टर दुश्मन देशों में युद्ध छिड़ गया हो। चुनाव के बाद मरघट की शांति हो जाती है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।
कुछ कार्यालयों में कर्मचारी खिलाड़ी भावना से एक-दूसरे को निपटाने का खेल खेलते रहते हैं। साथ काम करते हैं, साथ रहते हैं, साथ गप्पें लड़ाते हैं, साथ खाते-पीते हैं, साथ मिल कर रुपये हजम कर जाते हैं लेकिन दांव फिट बैठने पर कौन किसे निपटा देगा, इसका अंदाज कार्यालय में ही नहीं, इस धरती पर कोई नहीं लगा सकता है। प्राणलाल और देवकुमार की दोस्ती की दुहाई हर कोई देता था, पर मौका मिलते ही प्राणलाल ने देवकुमार को ऐसा निपटाया कि बस वे देखते ही रह गये। देवकुमार न तो घर के रहे और न ही कार्यालय के। इस खेल में बॉस को खूब मजा आता है और उसकी भूमिका एक मदारी की रहती है। वह तो यही चाहता है कि कर्मचारी आपस में एक-दूसरे को निपटाने का खेल खेलते रहें और उसकी सत्ता पर कोई आंच नहीं आए।
कुछ स्कूलों-कॉलेजों में भी शिक्षक निपटाने का खेल खेलते रहते हैं। इसमें वे अपने-अपने शागिर्दों को भी शामिल कर लेते हैं। अक्सर पंगा ट्यूशन पर आने वाले छात्रों को लेकर होता है। प्राचार्य या प्रबंधन यह तो चाहते हैं कि शिक्षक संगठित न हों लेकिन वे स्कूल में शांति का वातावरण भी चाहते हैं, ऐसे में उनकी भूमिका देखने लायक होती है।
जिन लोगों को अपना नाम छपा हुआ या किसी चैनल पर चेहरा देखने का रोग होता है, वे दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देने के लिए ऐसी-ऐसी हरकतें करते हैं कि शर्म भी शर्मसार हो जाए। अपना नाम छपा देख कर या किसी चैनल पर अपना चेहरा देख कर वे चारों धामों की तीर्थयात्रा का आनंद महसूस करते हैं। वे पूरी कोशिश करते हैं कि उनका प्रतिद्वंद्वी कहीं आगे न बढ़ जाये, इसके लिए वे साम, दाम, दंड, भेद सभी अपना लेते हैं।