असुरक्षित बुनियादी ढांचा
बीते बुधवार को गुजरात के वडोदरा जनपद में मही नदी पर बने चार दशक पुराने पुल का एक हिस्सा अचानक ढह गया। जिससे कई वाहन नदी में गिर गए। बताया जा रहा है कि इस हादसे में नौ लोगों की मौत हो गई और कुछ अन्य लोग घायल हुए हैं। हाल के दिनों में कई पुलों के गिरने के मामले सामने आए हैं। केंद्र सरकार लगातार विकसित भारत के संकल्प को अपनी प्राथमिकता बताती है। सरकार के रोडमैप में बुनियादी ढांचे का विकास केंद्रीय बिंदु रहा है। दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एक ऐसे बुनियादी ढांचे के निर्माण पर जोर दे रही है, जो टिकाऊ, लचीला और भविष्य के लिये तैयार हो। देश में सड़कों, पुलों, रेलवे, हवाई अड्डों और जलमार्गों से जुड़ी परियोजनाओं का मकसद संपर्क के साथ-साथ व्यापार को भी बढ़ाना है। ऐसे में एक महीने से भी कम समय में पुल ढहने की तीन घटनाएं इस बात का संकेत है कि इस मोर्चे पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। गुजरात के वडोदरा जनपद में बुधवार को चार दशक पुराने पुल के एक हिस्से के गिरने से नौ लोगों की मौत बताती है कि उसके रखरखाव में खामियां थीं। सवाल उठता है कि पुल के संरचनात्मक क्षय के स्पष्ट संकेतों के बावजूद क्या पुल को बंद नहीं किया जाना चाहिए था? क्यों प्राथमिकता के आधार पर उसकी मरम्मत नहीं की गई। किसी न किसी स्तर पर तो चूक हुई है। पिछले दिनों महाराष्ट्र के पुणे में एक लोहे के पैदल यात्री पुल के ढह जाने से चार लोगों की मौत हो गई थी। इस पुल को असुरक्षित घोषित किया गया था। सवाल यह है कि जब पुल असुरक्षित था लोगों के आवागमन पर रोक क्यों नहीं लगायी गई? इससे पहले असम के कछार जिले में एक नवनिर्मित पुल टूटकर गिर गया। यह सुखद ही है कि इस घटना में जन हानि नहीं हुई। निश्चित रूप से ऐसे हादसों में किसी न किसी स्तर पर लापरवाही तो होती है।
यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए कि विगत पांच वर्षों में गुजरात में नये,पुराने या निर्माणाधीन कई पुल व फ्लाईओवर क्यों ढह गए हैं। ब्रिटिश कालीन मोरबी सस्पेंशन ब्रिज अक्तूबर 2022 में ढह गया था। विडंबना देखिए कि मरम्मत के बाद इसे फिर खोलने के महज चार दिन बाद यह पुल टूट गया था। जिसमें 140 से अधिक लोगों की मौत होने की बात कही जाती है। ऐसा लगता है हमने उस हादसे कोई सबक नहीं सीखा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि जनसुरक्षा के मुद्दे को अपेक्षित प्राथमिकता नहीं दी गई। देखा जाता है कि अकसर अधिकारी अपनी जवाबदेही से मुक्त होने के लिये तमाम तरह के बहाने तलाश लेते हैं। वे अक्सर इन संरचनाओं में टूट-फूट के लिए चरम मौसम की घटनाओं को जिम्मेदार ठहराने से भी नहीं चूकते। निश्चित रूप से ऐसे तमाम मामलों में ठेकेदारों और संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी ही चाहिए। निर्विवाद रूप से निर्माण, निरीक्षण और मरम्मत में किसी भी तरह की कोई चूक किसी आपदा की वजह बन सकती है। किसी हादसे के बाद दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय करके किसी मामले में सख्त कार्रवाई भविष्य में ऐसी किसी लापरवाही पर रोक लगा सकती है। निश्चित रूप से तात्कालिक सुधार ही हमारी दीर्घकालीन महत्वाकांक्षाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बहरहाल, अब इस दुर्घटना के बाद गुजरात सरकार ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच से पता चल सकेगा कि कई बार पुल की मरम्मत करने के बाद भी यह हादसा कैसे हुआ। निश्चित रूप से दुर्घटना के प्रति संवेदनशील संरचनाओं का प्राथमिकता के आधार पर रख-रखाव किया जाना चाहिए। जिससे ऐसे किसी आसन्न हादसे को टाला जा सके। यदि पुल आदि की सुरक्षा सुनिश्चित न हो तो उसे आवागमन के लिये तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाना चाहिए। निश्चित रूप से ऐसे हादसों के मूल में कहीं न कहीं मानवीय चूक ही होती है। ऐसे में टैक्स देनी वाली जनता की सुरक्षा मजबूत व्यवस्था से की जानी चाहिए।