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जलवायु परिवर्तन के संकेतक बने कीट-पतंगे

06:47 AM Feb 15, 2024 IST
जलवायु परिवर्तन के संकेतक बने कीट पतंगे
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देविंदर शर्मा

जनवरी के अंतिम दिन हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों में सीज़न की पहली बर्फबारी हुई। लगभग डेढ़ महीने देर से, बदलते मौसम के मिजाज के दौर में बर्फबारी रहित सर्दियां हिमालय में भविष्य के बारे में चिंताएं बढ़ाती हैं।
जबकि हमने कश्मीर में सुनसान गुलमर्ग घाटी में खाली स्की रिसॉर्ट्स की तस्वीरें देखी हैं और पर्यटकों द्वारा होटल बुकिंग रद्द करने की रिपोर्टें पढ़ी हैं, कृषि उत्पादन और पानी की उपलब्धता पर असर, नदियों में पानी के प्रवाह में कमी और फलों की फसलों पर शुष्क सर्दियों के प्रभाव- इन सभी पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन लद्दाख में एक स्थानीय ग्रामीण की टिप्पणी ने मेरा ध्यान खींचा।
‘इस साल सर्दी वैसी लद्दाखी सर्दी जैसी नहीं लग रही है। यह बहुत गर्म है। इस बार हम चरम सर्दियों में घरेलू मक्खियों और तितलियों जैसे कई कीटों को जीवित देख सकते हैं। यह लद्दाख जैसी जगह के लिए बहुत ही असामान्य है’, डाउन टू अर्थ पत्रिका के पिछले अंक में एक स्थानीय निवासी कुंचोक दोरजै को उद्धृत किया गया था।
उन्होंने जो कहा उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। सबसे पहले, यह मुझे ग्लोबल वार्मिंग पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में बोलने के लिए यूरोप की यात्राओं की याद दिलाता है जब मैं अपने मेज़बानों से कहता था कि वह समय बहुत दूर नहीं है जब जलवायु गर्म होने के साथ-साथ, घरेलू कीड़े-मकोड़े जिनसे आप लोग घृणा करते हैं- और जिनमें मच्छर और तिलचट्टे भी शामिल हैं- समशीतोष्ण जलवायु में तेजी से दिखाई देंगे। तो मैं कहता था कि कीटों के हमले के लिए तैयार रहें। वे इसे हल्के-फुल्के अंदाज में खारिज कर देते, लेकिन हकीकत अब सामने आ रही है।
सर्दियां आती हैं, और आम तौर पर हम मच्छर-मक्खियों को गायब होते देखते हैं। फिर गर्मी का मौसम शुरू होते ही ये कीट वापस आ जाते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि जैसे-जैसे मौसम गर्म होता है, कीट जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करते हैं, और उत्तर की ओर बढ़ रहे हैं। पारिस्थितिकी तंत्र की जटिलताएं और गर्म होता तापमान इस बात की दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि दुनिया जिस जलवायु आपातकाल का सामना कर रही है, उस पर कीट जगत कैसे प्रतिक्रिया दे रहा है। क्योंकि दुनिया पहले ही ग्लोबल वार्मिंग से वैश्विक उबलने के युग में पहुंच चुकी है, इसलिए कीट प्रजातियां कठोर जलवायु पर कैसे प्रतिक्रिया देंगी, यह बारीकी से देखा जाना चाहिए।
परंतु यदि मक्खियों ओर तितलियों जैसे कीट सर्दियों में आसपास दिखाई दिये हैं तो यह केवल असामान्य ही नहीं होगा बल्कि कीटों के इस बदलते व्यवहार को करीब से समझने की जरूरत है। गर्मी से बचने के लिए कीटों की और ज्यादा प्रजातियों के उत्तर की ओर रुख करने के साथ ही वह समय दूर नहीं जब कॉक्रोच और मच्छर भी उत्तर की ओर जाने लगें।
वैसे भी, जबकि इस वर्ष मौसम के असामान्य पैटर्न ने हमारे साथ-साथ नीति निर्माताओं का ध्यान पर्यावरणीय प्रभावों और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर की ओर आकर्षित किया है, हम यह कल्पना करने में विफल रहते हैं कि तापमान में वैश्विक वृद्धि का कीट प्रजातियों के व्यवहार और वितरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। हालांकि इस बारे में बहुत कुछ ज्ञात है कि कैसे बर्फ रहित सर्दी सेब के बागानों को सर्दियों के महीनों में जरूरी ठंडे तापमान से वंचित कर देती है, और मिसाल के तौर पर खुबानी सर्दियों में जल्दी क्यों फूलने लगती है।
मानव आबादी के साथ इसके संपर्क के कारण पक्षियों और जानवरों पर भी इसके प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, इटली में सस्सारी विश्वविद्यालय और फेरारा विश्वविद्यालय के अध्ययनों से पता चला है कि यूरोप में अल्पाइन बकरियां थकावट से बचने के लिए अब रात में बाहर जा रही हैं। यह दिन की गर्मी से बचने के लिए है लेकिन अन्य खतरों को भी आमंत्रित कर सकता है। उदाहरण के लिए, कई पक्षी प्रजातियां भी सिकुड़ने लगी हैं और कुछ अन्य मामलों में कुछ पक्षी प्रजातियों के पंखों का दायरा बढ़ रहा है ताकि शरीर को ठंडा रखने में मदद मिल सके।
कीटों पर वापस आते हैं, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि सामान्य आवास दुर्गम होने के चलते, तितलियों समेत कई कीट प्रजातियां अपने प्रवास पैटर्न को बदल रही हैं। पर्यावास के विनाश ने उनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं। साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि ब्रिटिश तितलियां बड़ी हो रही हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक अन्य अध्ययन में यह आशंका जताई गई है कि तापमान बढ़ने पर छोटी और हल्के रंग की उष्णकटिबंधीय तितलियां अंततः लुप्त हो सकती हैं।
रिसर्च में यह भी सामने आया कि आम तौर पर पहाड़ों में पायी जाने वाली तितली प्रजातियां ग्लोबल वॉर्मिंग के मुकाबले के लिए अपने निवास ओर ज्यादा ऊंचाई पर स्थानातरित करती हैं। बढ़ती जैव विविधता हानि के साथ, जो उनका प्राकृतिक आवास है, पहाड़ी तितलियां अपना मूल स्थान बदल रही हैं और ऊपर जा रही हैं। कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि हिमालय में तितलियां लगभग 300 मीटर ऊपर चली गई हैं। इसलिए बढ़ते तापमान के कारण न केवल सेब के बागान अधिक ऊंचाई पर लगने लगे हैं बल्कि तितलियों सहित कीट प्रजातियां भी ऊपर की ओर बढ़ रही हैं।
दूसरी ओर, जैसे कि क्षेत्र और ज्यादा गर्म और शुष्क हो रहा है अमेरिका के पश्चिम में सैकड़ों कीट प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आयूसीएन) ने मोनार्क तितली को संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में रखा है, उक्त खतरा पर्यावासों के विनाश और मौसम में बदलाव से दरपेश है। अध्ययनों में यह भी सामने आया कि प्रतिवर्ष करीब 4000 किलोमीटर प्रवास करने वाली मोनार्क तितली के पंखों का आकार बड़ा होता जा रहा है। अनगिनत अन्य अध्ययन भी दर्शाते हैं कि पर्यावरणीय बदलावों के प्रति संवेदनशील होने के चलते, जैसे ही तापमान बढ़ता है, उसी के अनुपात में तितलियों के पंखों की लंबाई भी बढ़ती है। परंतु कई प्रजातियों में नजर आया कि जैसे ही तापमान बढ़ता है उनके पंखों की लंबाई घटती चली गयी। असल में यह निर्भर करता है कि गर्म होते वैश्विक पर्यावरण के प्रति कीट प्रजातियां कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। तथ्य यह है कि वैश्विक स्तर पर मौसम के प्रति लचीलापन, अनुकूलन और शमन केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है बल्कि कीट जगत को यह कहीं ज्यादा प्रभावित करती है।
दरअसल, हम कीट प्रजातियों द्वारा प्रदर्शित जलवायु लचीलेपन की बात उस तरह नहीं करते, जिस तरह खाद्य फसलों पर जलवायु के प्रभाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भले ही कीटों की आबादी पर प्रभाव के अधिक प्रभाव पड़े न हो लेकिन तथ्य है ही कि कीट जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों के अच्छे संकेतक बने हुए हैं। जैसे कि न्यूयार्क टाइम्स में एक बार वर्णित था- ‘भले ही वे ध्रुवीय भालुओं की तरह प्यारे न हों लेकिन कीट पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं और उनके पतन को लेकर हमें चिंतित होना चाहिये।’ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एस्मे ऐश-जैप्सन बताते हैं, दुनिया कीटों के सर्वनाश होने का इंतजार नहीं कर सकती है। कीटों की खामोशी को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। निश्चय ही अतिशीघ्र कुछ किया जाना जरूरी है।

लेखक कृषि एवं खाद्य विशेषज्ञ हैं।

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