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मोबाइल के जुनून में फंसे मासूम

06:32 AM Jul 23, 2024 IST
मोबाइल के जुनून में फंसे मासूम
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आजकल पैरेंट्स बच्चों के सामने ही मोबाइल या टीवी पर कार्टून लगाकर काम में व्यस्त हो जाते हैं। बच्चा बिना मोबाइल देखे पीता-खाता भी नहीं। पहले छोटे बच्चे दूसरे बच्चों के साथ खेलकर तंदुरुस्त रहते थे। मां-पापा भी बच्चों के साथ खेलते थे। लेकिन अब एकल परिवारों में बच्चे जिद्दी व संस्कृति से दूर हो रहे हैं।

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वैदेही कोठारी
हाल ही में एक चैनल पर एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है, जिसमे बच्चे अपने पापा के साथ मस्ती शैतानियां करते हैं जिससे पापा ज्यादा परेशान हो जाते है, उसी समय वह एक विज्ञापन देखता, जिसमें बच्चों के लिए टीवी और मोबाइल पर नए नए कार्टून और गेम्स का सब्सक्रिप्शन प्रोग्राम होता है, वह तुरंत प्लान लेता और दोनों बच्चे मोबाइल और लेपटॉप पर अपने पसंदीदा प्रोग्राम्स देखने बैठ जाते हैं, पापा भी अपनी पसंद का प्रोग्राम टीवी पर देखने लग जाते हैं।
खाना-पीना भी मोबाइल के साथ
आज से बीस तीस साल पहले छोटे बच्चे काका-ताऊ के बच्चों के साथ अधिक से अधिक मस्तियां करते थे और खेल-खेल में शारीरिक तंदुरुस्ती के साथ शिक्षा भी ग्रहण करते थे। डिजिटल प्लेटफार्म आने से पहले भी एकल परिवार में मां-पापा बच्चों के साथ खेला करते थे, किन्तु आजकल बिल्कुल विपरीत समय आ गया है, पैरेंट्स स्वयं छोटे-छोटे बच्चों के सामने ही मोबाइल या टीवी पर कार्टून लगा कर, अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं। धीरे-धीरे जब बच्चा बड़ा होता है तो वह बिना मोबाइल देखे दूध भी नहीं पीता, जब वह तीन-चार साल का होता वह बिना मोबाइल देखे, खाना भी नहीं खाता, मां तभी खाना खिला पाती है जब वह मोबाइल देखता है। एक प्रोग्राम में, मां अपने चार साल के बच्चे को कुर्सी पर बैठा कर खाना खिला रही थी, बालक मोबाइल में रील्स-कार्टून देख रहा था। यह देख लेखिका ने उन्हें बोला, ‘यह बहुत गन्दी आदत है, आपके बच्चे को बाद में परेशानी आएगी’, मां बड़े प्राउड के साथ बोली, ‘क्या करें मैडम, ये बिना मोबाइल देखे कुछ खाता ही नहीं है, इसके हाथ में मोबाइल दे दो जल्दी खा लेता है।’ उसकी बात सुन मैं शॉक्ड रह गई।
मनमर्जी पनपने की वजहें
आजकल के बच्चों में अपनी पसंद और चाहत अत्यधिक विकसित हो गई हैं। इसके पीछे माता-पिता की व्यस्तता, टी.वी. चैनल एवं मोबाइल में दिखाए जा रहे रील्स व काटूर्नस जिम्मेदार हैं। आज बच्चों की पसंद,जैटिक्स,पोगो,हंगामा,आदि चैनल के साथ-साथ मोबाइल में वल्गर मारधाड़ वाले रील्स ज्यादा हैं। तीन से दस साल तक की उम्र के बच्चे प्राय: मोबाइल में रील्स और कार्टून देखने में इस कदर खो जाते हैं कि खाना-पीना सब भूल जाते हैं। बच्चे माता-पिता को टी.वी. रिमोट और मोबाइल को हाथ तक नहीं लगाने देते हैं कि कहीं वे टी.वी. बंद न कर दें या मोबाइल छीन न लें| माता-पिता बच्चों को पुकारते रहते है किंतु बच्चे हां या न का जवाब तक नहीं देते हैं।
कार्टून कैरेक्टर व ऑनलाइन गेम की लत
एक सर्वे से पता चला है कि महानगरों के बच्चे तो भगवान के नाम तक नहीं जानते। उनके चित्रों को भी नहीं पहचानते हैं किन्तु पॉवर रेंजर्स, भीम, राजू, शिनचेन,डोरेमोन, ओगी व अन्य रील्स कैरेक्टर व काल्पनिक पात्रों,कार्यक्रमों की पूरी जानकारी रखते हैं। इसी तरह दिन-दिन भर कम्प्यूटर व ऑनलाइन गेम खेलते रहना बच्चों की आदत बन गई है। बच्चे जिद्दी होते जा रहे हैं। उनका शिक्षण प्रभावित हो रहा है।
एकल परिवार में पालन के प्रभाव
एकल परिवार की संख्या आज अधिक होने से बच्चे दादा-दादी,नाना-नानी की कहानियों से वैसे भी अछूते हैं। जिसके कारण धार्मिक संस्कार एवं हमारी संस्कृति उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। अधिकतर एकल परिवारों में माता-पिता दोनों ही अपनी नौकरी में व्यस्त रहते हैं और बच्चे का लालन -पालन ‘आया’ करती है या क्रैच में। जिससे वह संस्कारों से भी अछूते रह जाते हैं। मालूम ही नहीं कि घर के बाहर खेल मैदान में भी खेल होते हैं। खो-खो, गुल्ली डंडा, फुटबाल, कबड्डी, व अन्य सामूहिक खेल भी खेले जाते है लेकिन हम चिंतन करने के बजाय टालना पसंद करते हैं। ऐसे माहौल में बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास रुक जाता है। लगातार टी.वी. व कम्प्यूटर -मोबाइल देखने से चार पांच वर्ष की उम्र में ही मोटे-मोटे चश्मे लग जाते हैं। टी.वी व मोबाइल में से जो विकिरण निकलती हैं, वह आंखों व स्वास्थ्य को अत्यधिक प्रभावित करती है।
सेहत के जोखिम
आजकल बच्चे टी.वी. एवं मोबाइल के सामने बैठकर ही फास्ट फूड खाते रहते हैं जिससे मोटापा भी बढ़ता जा रहा है। अधिक समय तक मोबाइल पर गेम्स खेलने से बच्चे भ्रमित होते और कई बार वह डिप्रेशन में चले जाते हैं। कल्पना शक्ति दिनों दिन क्षीण होती जा रही है। अच्छी कहानियों से जहां विचार शक्ति प्रभावित होती है, वहीं जिज्ञासा वश वे कहानियों को ज्यादा से ज्यादा सुनना चाहते थे किन्तु कार्टून एवं मोबाइल ने बच्चों की जिज्ञासा को शांत कर उनकी विचार क्षमता को कुंद किया है। जरूरत है कि बच्चों को समय दें,दादा-दादी व नाना-नानी व अन्य रिश्तेदारों के सान्निध्य में भी रखें।

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