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शंकाओं के समाधान करने की पहल जरूरी

06:29 AM May 03, 2024 IST
शंकाओं के समाधान करने की पहल जरूरी
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डॉ. शशांक द्विवेदी

कोविड वैक्सीन कोविशील्ड को लेकर देश-दुनिया में कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत दुर्लभ मामलों में ही होगा। एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ने कोविशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है। ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा दस्तावेजों में कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी टीटीएस हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है।
अप्रैल, 2021 में जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने यह वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा। इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने उनकी पत्नी से कहा था कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे। पिछले साल स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मई, 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन से टीटीएस नहीं हो सकता है। हालांकि, इस साल फरवरी में हाईकोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में कंपनी इस दावे से पलट गई।
उल्लेखनीय है कि सुरक्षा संबंधित मामलों को देखते हुए यूके में अब ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन इस्तेमाल नहीं की जाती है। हालांकि, कई इंडिपेंडेट स्टडीज में इस वैक्सीन को महामारी से निपटने में बेहद कारगर बताया गया। वहीं, साइड इफेक्ट्स के मामलों की वजह से इस वैक्सीन के खिलाफ जांच शुरू की गई और कानूनी कार्रवाई हुई।
कोरोना से बचाने में कोविड वैक्सीन को काफी मददगार माना गया। मगर ब्रिटिश फार्मा कंपनी की एस्ट्राजेनेका ने एक मामले में कबूला कि उसकी वैक्सीन के दुर्लभ साइड इफेक्ट में हार्ट अटैक हो सकता है। भारत में बड़े पैमाने पर इसे कोविशील्ड के नाम से लगवाया गया है।
मॉडर्न लाइफ स्टाइल में ज्यादातर लोग घंटों ऑफिस में एक जगह बैठकर काम करते हैं, जिसके कारण कई सारी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जब आप काफी देर तक एक ही जगह बैठे रहते हैं तो शरीर में खून के थक्के जमने की समस्या बढ़ जाती है। शरीर में खून के थक्के जमना को ‘वेन थ्रोम्बोसिस’ की बीमारी कहते हैं।
ब्लड क्लॉटिंग की बीमारी किसी भी व्यक्ति के शरीर में हो सकती है। काफी ज्यादा एक जगह बैठने के कारण यह बीमारी हो सकती है। हालांकि, यह बीमारी खतरनाक रूप तब ले लेती है जब ब्लड क्लॉट्स का एक हिस्सा टूट जाता है और फेफड़ों तक पहुंच जाता है। इसे पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते हैं।
थ्रोम्बोसिस के कारण हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक और प्लेटलेट्स गिरने का खतरा बढ़ जाता है। दिल का दौरा (मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन) बेहद खतरनाक स्थिति है, जिसमें दिल की एक या उससे अधिक धमनियों में ब्लॉकेज होने लगते हैं। इसके कारण हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। दिल में सही तरीके से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है, जिसके कारण खून के थक्के जमने लगते हैं और बाद में हार्ट अटैक पड़ जाता है। ब्रेन स्ट्रोक की स्थिति में भी यही होता है कि ब्रेन में ब्लड ठीक तरीके से नहीं पहुंच पाता है। दिमाग में ऑक्सीजन की कमी के कारण ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
खास बात यह है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था। सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे।
मेडिसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी (एमएचआरए) के मुताबिक ब्रिटेन में 81 मामले ऐसे हैं, जिनमें इस बात की आशंका है कि वैक्सीन की वजह से खून के थक्के जमने से लोगों की मौत हो गई। एमएचआरए के मुताबिक, साइड इफेक्ट से जूझने वाले हर 5 में से एक व्यक्ति की मौत हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रीडम ऑफ इन्फॉर्मेशन के जरिए हासिल किए गए आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में फरवरी में 163 लोगों को सरकार ने मुआवजा दिया था। इनमें से 158 ऐसे थे, जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाई थी।
दूसरा पहलू यह है कि कोरोना के समय में इसी वैक्सीन ने लाखों लोगों की जान भी बचाई थी। कई स्टडीज में यह साबित हुआ है कि कोरोना महामारी के दौरान एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन आने के बाद पहले साल में ही इससे करीब 60 लाख लोगों की जान बची है। वर्ल्ड हेल्थ ने भी कहा था कि 18 साल या उससे ज्यादा की उम्र वाले लोगों के लिए यह वैक्सीन सुरक्षित और असरदार है। इसकी लॉन्चिंग के वक्त ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था। भारत में इसी फॉर्मूले से बनी कोविशील्ड के 175 करोड़ डोज लगे। फ़िलहाल कोविशील्ड की यह खबर आने के बाद लोगों की चिंता बढ़ गयी है। कुल मिलाकर इस संवेदनशील मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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