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देश की एकता-अखंडता के लिए पहल जरूरी

07:40 AM Jul 05, 2023 IST
Imphal: Unidentified miscreants torch two houses belonging to a particular community to retaliate the killing of nine civilians by Kuki militants, in Manipur, Thursday, Jun 15, 2023. (PTI Photo) (PTI06_15_2023_000155A) *** Local Caption ***

सीमा अग्रवाल

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देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए देश में राजद्रोह कानून को लागू करना बहुत जरूरी है। विधि आयोग के अध्यक्ष रितुराज अवस्थी द्वारा कही इस बात ने एक बार फिर राजद्रोह कानून की प्रासंगिकता को साबित कर दिया है। हालांकि राजद्रोह कानून के लागू होने या स्थगित किए जाने की ये चर्चा नई नहीं है। बीते साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से ब्रिटिश काल के इस कानून में संशोधन करने को कहा था। अब मई, 2023 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कानून की समीक्षा प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इसे मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है।
भारतीय समाज में न केवल भाषाई, बल्कि धार्मिक एवं जातिगत विविधता व्याप्त है। देश के तमाम क्षेत्र समय-समय पर इस कारण सांप्रदायिक दंगों में झुलसे रहते हैं। ऐसे में एक स्थायी सरकार का होना बेहद जरूरी है। राजद्रोह कानून देश में चुनी गई लोकतांत्रिक सरकार को स्थायित्व प्रदान करती है और सांप्रदायिकता के खिलाफ सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियानों को सफल बनाती है। किसी देश की वृद्धि और विकास में जितनी महती भूमिका मजबूत न्यायपालिका की है, उतनी ही जरूरी कार्यपालिका भी है। इसलिए न्यायपालिका की अवमानना करने पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान तार्किक है।
राजद्रोह कानून की प्रासंगिकता को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के जरिए भी समझा जा सकता है। सितंबर, 2022 में एनसीआरबी के जारी आंकड़े देशद्रोह कानून के महत्व का समर्थन करते मिलते हैं। ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-2021 के बीच देश में राजद्रोह के 475 मामले दर्ज हुए हैं। इसमें से 69 मामले असम में दर्ज किए गए। वहीं हरियाणा में 42, झारखंड में 40 और जम्मू-कश्मीर में 29 राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए हैं। ये आंकड़े इस बात की पुष्टि हैं कि देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए राजद्रोह कानून का लागू होना एक जरूरत है। उत्तर-पूर्व राज्यों में फैले माओवाद, झारखंड और छत्तीसगढ़ में व्याप्त नक्सलवाद को नेस्तनाबूद करने के लिए राजद्रोह कानून का होना जरूरी है।
दरअसल, राजद्रोह को अपराध बनाने वाले कानून की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में कई बार चुनौती दी गई है। जुलाई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी देश में इस कानून की जरूरत क्यों है? सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस कानून को केवल इस आधार पर निरस्त करना उचित नहीं होगा कि यह एक औपनिवेशी काल का कानून है। दुनिया के कई देश ऐसे कानूनों को निरस्त कर चुके हैं, जिसका खमियाजा उन्हें उठाना पड़ रहा है। ऐसा करना भारत की वर्तमान जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना होगा। विधि आयोग ने यह भी कहा कि इस कानून को निरस्त करने से समाज में अराजकता बढ़ सकती है।
विधि आयोग का कहना है कि महज इस तर्क पर कानून की उपयोगिता को आंका नहीं जा सकता कि अंग्रेजों के जमाने के नियम, कानून हमें उनके शोषित रवैये और हमारी परतंत्रता की याद दिलाते हैं। देखा जाए तो आज भी देश में तमाम नियम, कानून, इमारतें ऐसी हैं, जिनके नाम ब्रिटिश काल को स्मरण कराते हैं। फिर भी उनके लाभों को देखते हुए उन्हें संविधान, समाज में आज भी स्थान मिला हुआ है। यही बात राजद्रोह कानून के लिए भी सत्य है। वैश्विक पटल पर भारत की उज्ज्वलित होती छवि पड़ोसी देशों चीन, पाकिस्तान की चिंताओं को बढ़ा रही है। भारत के सीमावर्ती दोनों देश हमें कमजोर करने के लिए अलगाववादी और आतंकवादी ताकतों को पोषित कर रहे हैं। पड़ोसी देशों से सहायता प्राप्त करने वाली इन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के दमन के लिए राजद्रोह कानून का होना जरूरी है।
हालांकि कुछ लोगों के तर्क ये भी हैं कि देश में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए यूएपीए अधिनियम व राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हैं। ऐसे में राजद्रोह कानून की क्या आवश्यकता है? हमें नहीं भूलना चाहिए कि अलगाववाद और आतंकवाद का जन्मदाता कहीं न कहीं राजद्रोह है। राजद्रोह कानून को समय पर लागू होने से ऐसी घटनाओं को घटने से पहले रोका जा सकता है। देश की अखंडता, एकता के साथ उसकी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर देश के एक बड़े वर्ग में इस कानून को लेकर विरोध का भाव है।
एक वर्ग का कहना है कि राजद्रोह कानून संविधान संगत नहीं है। यह भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का हनन करता है। संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जो हर भारतीय का मौलिक अधिकार है। यह कानून सरकार को तानाशाह बना सकता है। भारतीय संविधान जो कहीं न कहीं गांधीवाद को धारण किए है तो राजद्रोह कानून गांधीवाद के राइट टू डिसेंट यानी मतभेद के अधिकार को पूर्णत: खारिज करता है। बहरहाल, देखना होगा कि आगामी 20 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में सरकार की ओर से राजद्रोह कानून में संशोधन करने का जो प्रस्ताव लाया जाएगा, वह किस सीमा तक इस कानून के नकारात्मक और सकारात्मक पक्षों में संतुलन बैठा पाएगा।

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