बेअसर फटकार
एक बार फिर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण रोकने के लिये प्रभावी कदम न उठाने पर पंजाब व हरियाणा सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि सरकारों ने पराली जलाने के दोषियों से नाममात्र का ही जुर्माना वसूला, जिसके चलते इसे जलाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। फलत: दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में निरंतर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाले वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को भी खरी-खोटी सुनायी है कि उसने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिये उसके निर्देशों को लागू करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया। दो सदस्यीय पीठ ने सख्त नाराजगी जतायी कि गत 29 अगस्त को दिल्ली में वायु प्रदूषण पर चर्चा के लिये बुलाई आयोग की बैठक में ग्यारह में से सिर्फ पांच सदस्य ही शामिल हुए। पराली जलाने की घटनाओं पर शिथिलता बरतने पर कोर्ट ने केंद्र सरकार व वायु गुणवत्ता आयोग को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने को कहा है। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिये आगामी 16 अक्तूबर की तारीख तय की है। यह विडंबना ही है कि प्रदूषण के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तो लगातार होती रही है लेकिन पराली व प्रदूषण बढ़ाने वाले अन्य कारकों पर रोक लगाने के लिये कोई ईमानदार प्रयास होते नजर नहीं आते। अदालत ने गत वर्ष भी कहा था कि पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिये सतत निगरानी की जानी चाहिए। इसके विपरीत दिल्ली सरकार, हरियाणा व पंजाब में पराली का मुद्दा राजनीति के रंग में रंगता रहा है। यही वजह है कि बीते साल की तरह ही इसी मौसम में फिर से प्रदूषण की समस्या विकट होती जा रही है। फिर ठंड का मौसम आते ही भौगोलिक कारणों से प्रदूषण विकराल रूप लेने लगता है। दिवाली पर तो पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है।
निस्संदेह, यह तंत्र की काहिली का ही नतीजा है, जिसके चलते दिल्ली दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी का दर्जा हासिल कर लेती है। दरअसल, प्रदूषण के एक घटक पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि की वजह भी वोटों की राजनीति ही है। सरकारें पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचती रही हैं। उन्हें अपने वोट बैंक के खिसकने की चिंता सताती रहती है। हाल ही में वायु गुणवत्ता आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि गत पंद्रह से पच्चीस सितंबर के मध्य पंजाब में पिछले साल इन दिनों के मुकाबले में दस गुना अधिक पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। वहीं बीते वर्ष इसी अवधि के मुकाबले इस वर्ष हरियाणा में पांच गुना अधिक पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई। सवाल यह है कि हर साल सितंबर से नवंबर के बीच बढ़ने वाली पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जा रहा है? बावजूद इसके कि शीर्ष अदालत बार-बार सख्त निगरानी की बात कहती रहती है। लेकिन सरकारों के तमाम दावों के बावजूद किसानों को ऐसा कारगर विकल्प नहीं दिया जा सका है कि किसान को खेत में पराली जलाने की जरूरत न पड़े। दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकारें भी तभी जागती हैं जब राजधानी व उसके आसपास के इलाकों में प्रदूषण के कारण जीवन पर संकट उत्पन्न होने लगता है। यहां तक कि अदालत के आदेश भी क्रियान्वयन की बाट जोहते रह जाते हैं। जबकि आंकड़े बता रहे हैं कि हर साल देश में लाखों लोग वायु प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं या फिर उनके जीवन की प्रत्याशा में कई सालों की कमी हो जाती है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली व अन्य राज्यों की सरकारें जन स्वास्थ्य के लिये उपजे बड़े संकट के प्रति संवेदनशील रवैया नहीं अपनाती हैं। वैसे राजधानी व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण में पराली के अलावा तमाम अन्य कारक भी हैं। सड़कों पर उतरती पेट्रोल-डीजल वाहनों की सुनामी, सार्वजनिक यातायात की कमी व उद्योग व निर्माण कार्यों में लापरवाही भी प्रदूषण की बड़ी वजह है। दरअसल, इस संकट से मुक्ति के लिये समग्र दृष्टि से कदम उठाये जाने चाहिए।