Indus Water Treaty : 1951 की उस बूंद में इतिहास था... जब सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के लिए PAK से लाया गया था सिंधु का जल
नई दिल्ली, 6 मई (भाषा)
आजादी के बमुश्किल 4 साल बाद प्राचीन सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार से जुड़े एक अनुष्ठान के लिए पाकिस्तान से सिंधु नदी का जल मांगा गया था। वहां तैनात तत्कालीन भारतीय राजनयिक ने नई दिल्ली को सूचित किया था कि ‘‘पाकिस्तान सरकार इस पर कोई आपत्ति नहीं करेगी। अभिलेखीय दस्तावेजों से यह जानकारी मिली। ये दस्तावेज भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास हैं।
एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय दैनिक में हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 1951 में तत्कालीन रियासत के प्रमुख ने अनुष्ठान के लिए पाकिस्तान के सिंधु नदी से कुछ जल मंगाने के लिए भारतीय अधिकारियों को अनुरोध भेजा था। यह मंदिर से संबंधित समारोह के लिए विभिन्न स्थानों से जल और मिट्टी एकत्र करने के प्रयासों का हिस्सा था। यह घटना सिंधु जल संधि से नौ साल पहले की है, जिस पर भारत और पाकिस्तान के बीच सितंबर 1960 में कराची में हस्ताक्षर किए गए थे।
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद नई दिल्ली ने इस समझौते को निलंबित कर दिया है। दिल्ली स्थित भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) भारत सरकार के पुराने अभिलेखों का संरक्षक है तथा प्रशासकों और शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए उन्हें रखता है। पाक में 30 मार्च, 1951 को भारत के तत्कालीन कार्यवाहक उच्चायुक्त खूबचंद द्वारा विदेश मंत्रालय के एक उप सचिव को लिखा गया पत्र भी एनएआई के अभिलेखागार का हिस्सा है। पत्र में लिखा है कि पाक सरकार कोई आपत्ति नहीं करेगी।
हालांकि पाकिस्तानी प्रेस में कुछ टिप्पणी होने की संभावना है। यह कुछ इस प्रकार हो सकती है:- (ए) भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होने का ‘ढोंग' करता है। वह अब भी एक मुस्लिम आक्रांता द्वारा नष्ट किए गए मंदिर के जीर्णोद्धार से जुड़े समारोह में बड़े धूमधाम से शामिल होता है। (ख) भारत ने विभाजन को स्वीकार नहीं किया है। सिंधु अब भारतीय नदी नहीं रही। यह पाकिस्तान की जीवनदायिनी है। सिंधु जल का उपयोग यह दर्शाता है कि भारत अब भी इस नदी को अपने लिए पवित्र मानता है।
यह निश्चित रूप से हमारे लिए एक ऐतिहासिक अवसर है कि हम सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर सकें। मैं व्यक्तिगत रूप से यह पसंद करूंगा कि इस तथ्य का कोई उल्लेख न किया जाए कि उच्चायोग ने सिंधु जल भेजा था। इस उत्सव के संबंध में सिंधु जल का उपयोग किया गया था, साथ ही दुनिया के विभिन्न स्थानों से पानी और मिट्टी का भी उपयोग किया गया था, यदि इसे वांछनीय समझा जाता है तो इसका मामूली प्रचार किया जा सकता है। सिंधु नदी को हिंदू धर्म में पवित्र नदी माना जाता है।