देशी केंचुए बनाएंगे जैविक खाद, 2 से 46 डिग्री के तापमान में भी रहेंगे जिंदा
हितेश शर्मा/निस
नाहन, 29 मार्च
हिमाचल प्रदेश में अब देशी केंचुए खाद तैयार करेंगे। देशी केंचुए की यह प्रजाति फटाफट जैविक खाद बनाने में सक्षम है। राज्य के जिला सिरमौर में स्वदेशी केंचुए का कल्चर तैयार किया जा रहा है। यह तकनीक भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के प्रधान वैज्ञानिक डा. जय गोपाल की है, जिसे कृषि विज्ञान केंद्र, धौलाकुआं (सिरमौर) प्रोत्साहित कर रहा है। बता दें कि अब तक देश व प्रदेश में केंचुए की पुरानी किस्म (एग्जॉटिक) ही वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए उपयोग में लाई जा रही थी और जो किसान पुरानी किस्म के द्वारा वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहे हैं, उन्हें इस बात का अंदाजा है कि ये केंचुए खाद बनाने में अधिक समय लेते हैं। इसके साथ-साथ हिमाचल के ठंडे और गर्म मौसम में केंचुएं ज्यादा समय तक जीवित भी नहीं रह पाते। इससे किसानों को अपने खेतों के लिए जल्द और वक्त पर जैविक खाद नहीं मिल पाती। लिहाजा, किसानों को दूसरी जैविक खादों या फिर रासायनिक खादों पर निर्भर रहना पड़ता है। केंचुओं पर लंबे शोध और प्रयासों के बाद वैज्ञानिकों ने अब स्वदेशी किस्म ईजाद की है, जिनका कल्चर कृषि विज्ञान केंद्रों में तैयार हो रहा है। कल्चर बढ़ने के बाद इन्हें किसानों को दिया जाएगा, जहां किसानों के सहयोग से केंचुए की इस नई प्रजाति की संख्या तो बढ़ेगी ही और इन केंचुओं की संख्या में वृद्धि होने के साथ जैविक खाद भी फटाफट तैयार होगी। विदेशी केंचुओं की कमी यह है कि इनको खाद बनाने में वक्त ज्यादा लगता है। वहीं, हिमाचल की विषम जलवायु परिस्थितियों यानी ठंडे और गर्म इलाकों में ये केंचुए ज्यादा समय के लिए नहीं पनप पाते और इनका सर्वाइवल रेट भी अच्छा नहीं है। असल में केंचुए की पुरानी किस्म एग्जॉटिक जिन्हें विदेशी केंचुआ भी कहते हैं, उसके मुकाबले स्वदेशी केंचुओं में न केवल जल्द खाद बनाने की क्षमता है, तो इनका सर्वाइवल रेट भी विदेशी केंचुओं के मुकाबले बेहतर है। ये केंचुए 2 डिग्री से लेकर 46 डिग्री के तापमान में खुद को जिंदा रखने की क्षमता रखते हैं।