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कोलंबो की राजनीतिक बिसात पर भारतीय दांव

06:38 AM Feb 09, 2024 IST
पुष्परंजन

क्यों और किसलिए भारत सरकार के अतिथि के रूप में श्रीलंका के वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी या पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायक के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 5 फरवरी को तीन दिवसीय यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचा? अब इस रणनीति के दूसरे हिस्से को ध्यान से देखना-समझना होगा। अनुरा कुमारा दिसानायक 27 अक्तूबर, 2023 को लॉस एंजिलिस गये थे। उससे पहले उनकी मुलाक़ात अमेरिकी राजदूत जुलिये चुंग से 19 अक्तूबर, 2023 को कोलंबो में हुई थी। मई, 2023 से वो लगातार अमेरिकी राजदूत से मिलते रहे। श्रीलंका के अल्ट्रा लेफ्ट नेता अनुरा कुमारा दिसानायक में भारतीय व अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की दिलचस्पी के मायने तलाशने में दुनिया की बड़ी शक्तियां लग गई हैं।
साल 2023 में जेवीपी के हृदय परिवर्तन से सबको हैरानी हुई थी। ये वो लोग हैं, जिन्होंने 29 जुलाई, 1987 को हुए भारत-श्रीलंका समझौते का विरोध करते हुए एक सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया था। इनके एजेंडे में तथाकथित ‘भारतीय विस्तारवाद’ का विरोध कूट-कूट कर भरा था। इन्होंने भारतीय सामानों का बहिष्कार से लेकर यहां की साड़ी तक धारण करने पर रोक लगा दी थी। दिसंबर, 2023 में एक इंटरव्यू के ज़रिये जनता विमुक्ति पेरामुना के रुख में बदलाव को स्वीकार करते हुए दिसानायक ने कहा था, ‘हम जानते हैं कि भारत, जो हमारा निकटतम‍ पड़ोसी है, एक प्रमुख राजनीतिक-आर्थिक केंद्र बन गया है। इसलिए भारत के प्रभाव को हम नकार नहीं सकते।’
दिसंबर, 2014 में एनएसए अजीत डोभाल ‘गाले डॉयलॉग’ के वास्ते श्रीलंका गये थे, तब उन्होंने हिंद महासागर को शांति क्षेत्र बनाये जाने की परिकल्पना पर ज़ोर दिया था। दिसंबर, 2023 में एक बार फिर अजीत डोभाल श्रीलंका कोलंबो सिक्योरिटी कांक्लेव में गये और क्षेत्रीय सुरक्षा की बात की। अजीत डोभाल का इस बीच श्रीलंका के शिखर नेताओं से लगातार मिलना-जुलना रहा है, जिनमें वामपंथी नेतृत्व भी है। नई दिल्ली में इस सप्ताह जेवीपी के नेता अनुरा कुमारा दिसानायक की मेहमाननवाजी इसी रणनीति का हिस्सा लगता है। जेवीपी प्रतिनिधिमंडल विदेशमंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात के बाद अहमदाबाद और तिरुवनंतपुरम की ओर रवाना हो गया। इन जगहों पर वामपंथी शिष्टमंडल को कृषि और उद्योग केंद्रों का अवलोकन करना है। सरकारी अधिकारियों व व्यापारिक समुदाय के सदस्यों के साथ बैठक के बाद 8 फरवरी को इनकी वतन-वापसी है।
क्या इन्हें विश्वगुरु भारत से दीक्षा लेने की आवश्यकता चुनावी व्यूह के वास्ते आन पड़ी है, या चुनाव के वास्ते मोटा फंड चाहिए? कोलंबो स्थित शोध संस्थान, ‘इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ पॉलिसी’ के हालिया सर्वेक्षण से पता चला कि 2024 के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अनुरा कुमारा दिसानायक सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं। सर्वेक्षण में 50 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे दिसानायक के लिए मतदान करेंगे, उसके बाद साजिथ प्रेमदास को 33 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया है, और तीसरे नंबर पर रहे राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को नौ प्रतिशत लोगों ने इस पद के लायक़ समझा है। श्रीलंका की सत्ता में वामपंथी विकल्प बन सकते हैं, ऐसा पहली बार माहौल बना है।
1935 में स्थापित देश की पहली वामपंथी ट्रॉट्स्कीवादी ‘लंका समा समाज पार्टी’ थी। वह पार्टी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई, जो 1948 में सफल हुई। लंका समा समाज पार्टी ने 1953 की हड़ताल का नेतृत्व करने में कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर चावल सब्सिडी को समाप्त करने के सरकार के प्रस्ताव का सफलतापूर्वक विरोध किया, जिस पर कई श्रीलंकाई लोग भरोसा करते थे। लेकिन तीन दशक बीत जाने के बाद भी श्रीलंका में वामपंथियों को सत्ता में आने का अवसर नहीं मिल पाया। धान उत्पादन और भूमि सुधार वादा पूरा नहीं हुआ, देखते ही देखते स्थिति हिंसक हो गई।
कालांतर में माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक गुट ने जनता विमुक्ति पेरामुना का गठन किया, जिसके कारण 1971 में ग्रामीण गरीबी और बेरोजगारी से परेशान सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह हुआ, जिसे शासन ने कुचल दिया। वर्ष 1978 में जेआर जयवर्धने के राष्ट्रपति बनने के बाद भी तनाव जारी रहा, जब श्रीलंका ने बाजार-संचालित अर्थव्यवस्था शुरू की। वर्ष 1980 की आम हड़ताल में जब कई वामपंथी दलों और ट्रेड यूनियन नेताओं ने वेतन वृद्धि की वकालत की, तो शासन ने ट्रेड यूनियन आंदोलन को कुचलने के लिए बल का प्रयोग किया।
जयवर्धने ने 1983 में तमिल विरोधी दंगों के बाद जनता विमुक्ति पेरामुना पर प्रतिबंध लगा दिया था। वर्ष 1987 से 1989 तक सरकार द्वारा प्रांतीय परिषद प्रणाली शुरू करने और भारतीय शांति सेना के आगमन के जवाब में पार्टी ने दूसरा विद्रोह शुरू किया, जिसमें हत्याएं, लोगों को गायब करना और यातनाएं शामिल थीं। लेकिन ठीक से देखा जाए, तो इस आईलैंड नेशन में वामपंथ लगातार विभाजित होता रहा है। वर्ष 2012 में कुछ सदस्यों ने फ्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी बनाने के लिए पार्टी छोड़ दी। वर्ष 2018 में जनता विमुक्ति पेरामुना के नेता ने नेशनल पीपुल्स पावर नामक चुनावी गठबंधन बनाया और दो साल बाद, पार्टी ने संसद में 225 में से तीन सीटें जीतीं। यह दीगर है कि श्रीलंकाई वामपंथियों को सत्ता में आने के मामले में चीन ने कभी साथ नहीं दिया। ये लोग उत्तर कोरिया, रूस से सहयोग लेते रहे। इस बार भारत को लगा कि चीन की काट प्रस्तुत करने के वास्ते वामपंथियों के इस समूह का समर्थन करो, जिसने ‘गोटा गो गामा’ आंदोलन में अपनी जड़ें मज़बूत कर ली हैं।
इस साल की शुरुआत में जब देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तब तक वामपंथ बिखरा हुआ था। लेकिन ‘गोटा गो गामा’ आंदोलन ने बादुल्ला, गाले और कैंडी जैसे शहरों में युवाओं को सक्रिय कर दिया। वामपंथी इंटर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स फेडरेशन, जिसे ‘अंतारे’ के नाम से जाना जाता है, ने कई हल्ला बोल और विरोध प्रदर्शन किए। फिर 12 मई, 2023 को विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद, वामपंथियों ने जनता को यह भरोसा दिलाना शुरू किया कि उन्हें अवसर मिला तो अर्थव्यवस्था को स्थिर कर सकते हैं और मुल्क में सामान्य स्थिति को दोबारा बहाल कर सकते हैं। जेवीपी के युवा मोर्चे में सोशलिस्ट यूथ यूनियन, जेवीपी और एफएसपी के सोशलिस्ट स्टूडेंट्स यूनियन, यूथ फॉर चेंज और रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स यूनियन जैसे गुट शामिल हैं। इंटर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स फेडरेशन, (सिंहली में अंतर विश्वविद्यालय शिष्य बाला मंडला) 70 छात्र संघों का एक संघ था, जिसका गठन 1978 में किया गया था। इसकी जड़ें आज भी ज़िंदा हैं। यही अनुरा कुमारा दिसानायक की ताक़त बनती जा रही है। कोलंबो में जो ग्रेट गेम होना है, उसमें अमेरिका और भारत की बड़ी भूमिका होने जा रही है। तो इंतज़ार कीजिए, पिक्चर अभी बाक़ी है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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