भारत बनाम इंडिया
देश में आयोजित हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले देश के नाम को लेकर जो अनावश्यक विवाद छिड़ा उससे कोई अच्छा संदेश नहीं जाएगा। दरअसल, जी-20 शिखर सम्मेलन के मेहमानों को दिये जाने वाले रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘प्रेजीडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाय ‘प्रेजीडेंट ऑफ भारत’ वर्णित किया गया है। वहीं प्रधानमंत्री को इंडोनेशिया में होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये ‘द प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ वर्णित किया गया है। जिसको लेकर विपक्ष ने तल्ख प्रतिक्रिया दी है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने देश का आधिकारिक नाम इंडिया की जगह भारत करने का मन बना लिया है। वहीं दूसरी ओर जी-20 प्रतिनिधियों के लिये तैयार की गई पुस्तिका ‘भारत : द मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ नामक पुस्तिका के अनुसार भी, ‘भारत देश का आधिकारिक नाम है। इसका उल्लेख संविधान में है, इसके साथ ही 1946 से 1948 तक चर्चाओं में रहा है।’ दरअसल, संविधान का अनुच्छेद-एक भी कहता है : ‘इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।’ निस्संदेह ‘इंडिया’ और ‘भारत’ लंबे समय से सह-अस्तित्व में हैं। बिना किसी स्पष्ट विरोधाभास या असहमति के, एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते रहे हैं। एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में देश के विभिन्न मूल्य वर्ग के सिक्कों पर समान रूप से दोनों नाम दिखाई देते हैं। हालांकि, सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट कथन सामने नहीं आया है लेकिन विपक्ष का आरोप है कि विपक्षी गठबंधन जिसके नाम का संक्षिप्त रूप ‘इंडिया’ बनाया गया है, की मुंबई बैठक के बाद केंद्र सरकार ने बौखलाहट में देश का नाम बदलने का मन बनाया है। ऐसे में भाजपा से उम्मीद की जानी चाहिए कि विभिन्न विपक्षी दलों के समूह की एकजुटता पर प्रतिक्रिया देकर कोई ऐसा कदम न उठाये जिससे देश में ऊहापोह की स्थिति पैदा हो।
निस्संदेह, ऐसे वक्त में जब देश जी-20 में शामिल दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले महत्वपूर्ण देशों के राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत कर रहा है, ऐसा कोई विवाद अच्छा संदेश कतई नहीं देगा। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था वाले देश को नाम को लेकर ऐसे विवाद शोभा नहीं देते। भारत जो वर्ष 1950 में एक गणतंत्र बना, अपने दोहरे नाम व द्विभाषी पहचान के साथ काफी हद तक सहज रहा। जो परंपरा के साथ आधुनिकता का भी साम्य रखता है। ऐसे में जबरन नया नाम थोपना एक प्रतिगामी कदम होगा। वहीं विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार देश की मुख्य चुनौतियों बेरोजगारी, महंगाई, मणिपुर हिंसा और अडाणी जैसे विवादों से लोगों का ध्यान हटाने के लिये देश के नाम के विवाद को हवा दे रही है। दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा आहूत संसद के आगामी विशेष सत्र को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है कि इस बाबत विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया गया। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इस विशेष सम्मेलन का एजेंडा क्या होगा। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में विशेष सत्र के दौरान नौ मुद्दों पर चर्चा की मांग की है। जिसकी चर्चा विपक्षी गठबंधन के नेताओं के बीच भी हुई। ऐसे वक्त में जब देश में कुछ विधानसभाओं के चुनाव और आम चुनाव नजदीक हों, तो ऐसे मुद्दों के राजनीतिक निहितार्थों से इनकार नहीं किया जा सकता। इस पत्र में देश के संघीय ढांचे, प्राकृतिक आपदा, बाढ़ के प्रभाव, मणिपुर हिंसा, चीन सीमा विवाद व देश में सांप्रदायिक तनाव घटाने आदि मुद्दों पर चर्चा की मांग की गई है। निस्संदेह, विपक्ष को विश्वास में न लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाने पर विवाद स्वाभाविक है। वहीं उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री भी सोनिया गांधी द्वारा उठाये मुद्दों पर जबाव देंगे। बेहतर होगा कि किसी जूनियर व्यक्ति के बजाय प्रधानमंत्री अपना जवाब किसी वरिष्ठ मंत्री द्वारा सोनिया गांधी को भिजवाएं। केंद्र को राहुल गांधी के उस बयान पर भी ध्यान देना चाहिए कि अब चाहे इंडिया हो, भारत हो या हिंदुस्तान, ये मोहब्बत के नाम ही होने चाहिए।