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महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है भारत

08:24 AM Oct 16, 2024 IST

के.एस. तोमर

आसियान की सफलता हेतु आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को गहरा करके भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। व्यापार और निवेश में सुधार, खासकर आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते के जरिए, आर्थिक वृद्धि को समर्थन दे सकता है। भारत की डिजिटल और तकनीकी क्षमता, विशेषकर आईटी और फिनटेक में, आसियान की डिजिटल अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के विकास में मदद कर सकती है, जिससे एकीकृत क्षेत्रीय बाजार का निर्माण हो सके।
हालिया आसियान शिखर सम्मेलन म्यांमार संकट पर कोई ठोस प्रगति करने में विफल रहा, जिसका मुख्य कारण आंतरिक विभाजन और ब्लॉक की गैर-हस्तक्षेप नीति रही। नेताओं ने म्यांमार के जारी गृहयुद्ध और मानवाधिकार उल्लंघनों पर चर्चा की, लेकिन कोई ठोस कदम या प्रतिबंध तय नहीं हो सका। शांति बहाली के लिए आसियान की पांच-सूत्री सहमति अब तक लागू नहीं हो पाई है, और म्यांमार की सैन्य सरकार का सहयोग न के बराबर है। थाइलैंड और कंबोडिया जैसे देशों द्वारा जुंटा से संपर्क ने आसियान की प्रतिक्रिया को कमजोर किया।
सुरक्षा के लिहाज से, आसियान-नेतृत्व वाले मंचों में भारत की भागीदारी और समुद्री सहयोग, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। भारत के रक्षा संबंध, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रणनीतिक साझेदारी, क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करते हैंैं।
जलवायु परिवर्तन में, भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा के अनुभव को साझा कर आसियान की हरित संरक्षण में मदद कर सकता है। भारत-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से, आसियान के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाकर भारत व्यापार गतिशीलता को प्रोत्साहित कर सकता है।
भारत का संतुलित भू-राजनीतिक दृष्टिकोण, आसियान को क्षेत्र में अपनी केंद्रीयता बनाए रखने में मदद करता है, जिससे एक बहुध्रुवीय, स्थिर दक्षिण-पूर्व एशिया की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। हाल में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रयासों में भारत की प्रतिबद्धता, आसियान के विकास और स्थिरता में उसकी सहायक भूमिका को और मजबूत करती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 20वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में अपने दस-सूत्री संदेश में प्रमुख क्षेत्रों में आसियान के साथ साझेदारी पर बल दिया। उन्होंने हिंद-प्रशांत में शांति, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी की आवश्यकता पर बल दिया। समुद्री सहयोग, व्यापार, निवेश और आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने और डिजिटल परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और एआई में सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बुनियादी ढांचा कनेक्टिविटी और सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर भी जोर दिया।
दरअसल, अब आसियान कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो उसकी प्रभावशीलता को कमजोर कर सकती हैं। 1967 में शांति, समृद्धि और क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गठित आसियान ने अपने सदस्य देशों के बीच संवाद और सहयोग के लिए एक मंच तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, कई आंतरिक और बाहरी मुद्दों ने इसकी सीमाओं को उजागर किया है।
आसियान के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक भू-राजनीतिक विभाजन है। सदस्य देशों की राजनीतिक प्राथमिकताएं और विदेशी नीति अभिविन्यास भिन्न हैं, विशेष रूप से अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों से निपटने में। जहां कंबोडिया और लाओस, आर्थिक निर्भरता के कारण चीन की ओर झुके हुए हैं, जबकि अन्य, जैसे वियतनाम और फिलीपींस, दक्षिण चीन सागर में चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को लेकर सतर्क हैं। बाहरी शक्तियों से संबंधों को प्रबंधित करने पर यह सहमति की कमी, आसियान की सुरक्षा और क्षेत्रीय विवादों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एकजुट मोर्चा पेश करने की क्षमता को कमजोर करती है। परिणामस्वरूप, दक्षिण चीन सागर संघर्ष अनसुलझा हैै।
एक और बड़ी चुनौती आसियान की संस्थागत कमजोरी है। संगठन की निर्णय लेने की प्रक्रिया, सर्वसम्मति पर आधारित होती है, जिससे अक्सर कार्रवाई में देरी होती है। घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के सिद्धांत ने म्यांमार और कंबोडिया जैसे अधिनायकवादी शासन को मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जवाबदेही से बचने की अनुमति दी है, जिससे वैश्विक मंच पर आसियान की साख को नुकसान पहुंचा है। म्यांमार संकट इसका एक उदाहरण है। म्यांमार पर आसियान की ‘पांच-सूत्री सहमति’ कोई ठोस परिणाम देने में विफल रही हैै।
आने वाले दशकों में प्रासंगिक बने रहने के लिए, आसियान को अपने संस्थागत ढांचे में सुधार करने, आर्थिक व नियामक सामंजस्य को बढ़ाने, बाहरी संबंधों के प्रति अधिक सुसंगत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी।

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लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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