स्वतंत्र जांच जरूरी
कतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव व आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला नया नहीं है। खासकर चुनावी वेला में तो यह स्थिति चरम पर होती है। लेकिन इस टकराव का प्रभाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के स्वाभाविक प्रभाव को बाधित करने वाला नहीं होनी चाहिए। युद्ध की तरह से राजनीति के भी अपने नियम होते हैं और मुकाबले के लिये बराबर का अवसर भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। साथ ही यह जरूरी है कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध को दूर करने के लिये संवाद की प्रक्रिया भी निरंतर चलती रहनी चाहिए, ताकि अनावश्यक गतिरोध को टाला जा सके। बीते गुरुवार को देश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी की ओर से आयोजित प्रेस वार्ता में आरोप लगाए गए कि खाते फ्रीज करके पार्टी को आर्थिक रूप से पंगु बनाने की कोशिश सत्ता पक्ष की ओर से की जा रही है। यूं तो कांग्रेस पिछले पांच वर्षों में लगातार सत्ता पक्ष की रीतियों-नीतियों पर हमलावर रही है, लेकिन फिलहाल कांग्रेस द्वारा लगाए आरोपों की गंभीरता पर भी विचार किया जाना चाहिए। वैसे भी किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनावी प्रक्रिया को सुचारू और विश्वसनीय बनाने के लिये विपक्षी दलों को मुकाबले का बराबर अवसर तो मिलना ही चाहिए। निश्चित रूप से इससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता व प्रामाणिकता को संबल मिलता है। कांग्रेस का आरोप है कि मुख्य विपक्षी पार्टी को आयकर विभाग की कार्रवाई से वित्तीय संकट की ओर धकेला जा रहा है। हालांकि, कांग्रेस पार्टी की मुद्दे को लेकर गंभीरता इस बात से भी उजागर होती है कि हाल-फिलहाल यह पहला अवसर है कि पार्टी के तीन शीर्ष नेता कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में नजर आए। विशेष तौर पर ऐसी स्थिति में जब देश में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद चुनावी प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है कांग्रेस के आक्षेप को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
निश्चित रूप से किसी भी लोकतंत्र की खूबसूरती इस बात में है कि सत्ता पक्ष विपक्षी राजनीतिक दलों को बराबर का मौका उपलब्ध कराये, जिससे चुनावी मुकाबला न्यायसंगत बना रह सके। यदि मुख्य विपक्षी दल यह आरोप लगाए कि ऐन चुनाव के वक्त पार्टी के खाते फ्रीज करके उसके चुनाव लड़ने और प्रचार करने में बाधा उत्पन्न हुई तो यह स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिये अच्छा नहीं है। निश्चित रूप से कांग्रेस के आरोपों की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए। पार्टी का कहना है कि खाते फ्रीज होने से पार्टी के समक्ष उत्पन्न आर्थिक तंगी से पार्टी न विज्ञापन दे सकती है और न ही अपने नेताओं के लिये हवाई टिकट बुक करा पा रही है। उसका यह भी कहना है कि उसे रैली आयोजित करवाने में परेशानी हो रही है। हालांकि, कांग्रेस के आरोपों से इतर सरकार व आयकर विभाग के अधिकारियों की अपनी दलीलें हैं। उल्लेखनीय है कि गत 13 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीएटी के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें सौ करोड़ से अधिक के बकाया कर की वसूली के लिये कांग्रेस पार्टी को आयकर विभाग से जारी नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने पार्टी को तब नये स्थगन आवेदन के साथ आईटीएटी का रुख करने की स्वतंत्रता दी थी। ऐसे में इस मुद्दे पर अंतिम राय बनाने से पहले सभी पक्षों के तर्कों पर विचार भी जरूरी है। सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने इन आरोपों को पार्टी की हताशा का परिणाम बताया है। यह भी कि कांग्रेस के आरोपों से भारतीय लोकतंत्र की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लेकिन इसके बावजूद यह तथ्य निर्विवाद है कि किसी भी लोकतंत्र में स्वतंत्र चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को अनुचित ही कहा जाएगा। इससे चुनावों की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर आंच आ सकती है। विपक्षी दलों के इन आरोपों को भी बल नहीं मिलना चाहिए कि सरकार विपक्ष को दबाने के लिये सरकारी एजेंसियों व विभागों का इस्तेमाल कर रही है। निश्चित रूप से ऐसे आरोपों से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाएगा।