स्वतंत्र चेतना जरूरी
एक भक्त ने संत से पूछा- कल अपने प्रवचन में कहा, ‘हम में से अधिकतर लोग गुलाम हैं। जबकि हम तो स्वतंत्र हैं।’ गुरु ने जवाब दिया, ‘मानसिक ग़ुलामी ही सबसे बड़ी ग़ुलामी है, शारीरिक ग़ुलामी कोई बहुत बड़ी ग़ुलामी नहीं है। मानसिक ग़ुलामी यानी झूठी आस्था, सामाजिक मान्यता, धार्मिक मान्यता, नियम-सिद्धान्त, पारिवारिक मान्यता, अंधविश्वास आदि, जो इनमें उलझा है, वही मानसिक रूप से ग़ुलाम है, मानसिक ग़ुलामी स्वयं का सबसे बड़ा निरादर है, स्वयं का बहुत बड़ा अपमान है, ऐसा व्यक्ति कभी स्वयं को सम्मान नहीं देता। जो स्वयं को सम्मान नहीं देता वो कभी भी सत्य यानी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता। ज़ंजीरों से बंधे शरीर जो जेलों मे बंद हैं, मानसिक रूप से झूठी मान्यताओं, झूठी आस्थाओं की ज़ंजीरों में क़ैद नहीं हैं, वे जेल में भी सत्य की खोज कर सकते हैं। सत्य को उपलब्ध हो सकते हैं। लेकिन मानसिक रूप से ग़ुलाम व्यक्ति कभी प्राप्त नहीं कर सकते। मानसिक रूप से गुलाम आदमी पाखंडी होता है, धार्मिक कदाचित नहीं!
प्रस्तुति : सुभाष बुड़ावन वाला