उपन्यास में सामाजिक द्वंद्व का समावेश
सुशील कुमार फुल्ल
बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. धर्मपाल साहिल का नव प्रकाशित उपन्यास ‘डांडी’ लेखक के पूर्ववर्ती उपन्यासों के आकार की तुलना में भले ही अपेक्षाकृत छोटा है परन्तु विषय-वस्तु की गहनता एवं प्रस्तुति में उतना ही मार्मिक है जितना अन्य कृतियों में। वास्तव में डॉ. साहिल ऐसे लेखक हैं जो सामाजिक कुरीतियों, आर्थिक भीतियों को बड़ी बेबाकी से चित्रित करते हैं। यही कारण है कि पाठक कथानक के साथ बहता चला जाता है।
‘डांडी’ उपन्यास का नायक तो किशना है लेकिन वह एक व्यक्ति का प्रतीक न बनकर वर्ग विशेष की दुख-गाथाओं का पर्याय बन जाता है। एक साधारण सीधा-सा व्यक्ति, जिसे दीन-दुनिया का ज्यादा पता नहीं परन्तु पगली-सी दिखाई देने वाली राधा के उस के जीवन में आ जाने से उसमें परिवर्तन आने लगता है और वह अपने सिद्धड़पन से कुछ-कुछ उभरने लगता है। गांव वाले उस का विवाह राधा से करवा देते हैं या कहिए वे दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगतेे हैं।
लेखक ने बड़े सहज भाव से दोनों के प्यार को चित्रित किया है। उन दोनों में जब दाम्पत्य भाव का अहसास हो जाता है और उन्हें जीने में रस आने लगता है तभी राधा के रिश्तेदार यानी ससुराल वाले उसे डांटते वहां पहंुच जाते हैं और उसे ले जाते हैं। किशना का भाई एवं भाभी नहीं चाहते कि राधा वहां रहे क्योंकि उन्हें तो सम्पत्ति संभालनी है और यदि वे दोनों रहेंगे तो अपना हिस्सा भी मांगेंगे। उसे धोखे से ताजा पानी लेने भेज दिया जाता है और जब वह लौटता है तब तक राधा जा चुकी थी। बाद में किशना का दुखी जीवन, उस का मन्दिर में रहना तथा राधे-राधे कहना उसे राधामय बना देता है। लेखक ने बड़ी खूबसूरती से अन्त को आध्यात्मिक टच दे दिया है।
लेखक ने कंडी क्षेत्र का बड़ा ही रोचक चित्रण किया है। ग्रामीण परिवेश को पूरी आंचलिकता के साथ उभारा है। ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों का चित्रण, आंचलिक भाषा का उपयोग आकर्षक बन पड़ा है। कंडी के जीवन एवं परिवेश को समग्रता में चित्रित करने में दक्ष डाॅ. पाल ने संयोग, कौतूहल, चमत्कार आदि अभिप्रायों का उपयाेग कथा को बढ़ाने में उपयुक्त किया है। अचानक राधा का गांव में आ जाना थोड़ा अटपटा लगता है परन्तु ऐसा हो सकता है। और फिर दाम्पत्य सूत्र में बंधवा देना नियोजित लगता है। किशना का चरित्र एकदम प्रभावी है और बहुत-सी समस्याओं का उद्घाटन कर देता है। मनोविश्लेषणपरक इस उपन्यास में सामाजिक द्वंद्व का समावेश रचना को अतिरिक्त आयाम प्रदान करता है। उपन्यास एक ही बैठक में पढ़े जाने के लिए बाध्य करता है।
पुस्तक : डांडी (उपन्यास) लेखक : डॉ. धर्मपाल साहिल प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स, नोएडा पृष्ठ : 110 मूल्य : रु. 300.