छंदों में अनुभव की छाप
रघुविन्द्र यादव
‘लाल की कुण्डलियां’ घमंडीलाल अग्रवाल का नव प्रकाशित कुण्डलिया छंद संग्रह है। जिसमें उनके 200 छंद संकलित किये गए हैं। इन छंदों में जहां समाज की वर्तमान दशा-दिशा का चित्रण है, वहीं बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा और प्रोत्साहन है। कवि निडर बनने की सलाह देते हुए कहता है ‘डर तो मन का है वहम, डर से रहिए दूर।’
संग्रह के छंदों में जीवन जगत के विविध विषयों को शामिल किया है और कवि ने प्रत्येक छंद को शीर्षक दिया है। इनमें सामाजिक विसंगतियों, विद्रूपताओं, देश-समाज, प्रकृति-संस्कृति, गीत-संगीत, खेल, धरोहर, जीवन-मरण, दुर्जन-सज्जन, चोर-पुलिस, जाति-पाति, गीत-संगीत, यश-अपयश आदि के साथ-साथ मनुज के कार्य और व्यवहार को भी अभिव्यक्त किया गया है। कुण्डलियाकार संवेदनशील है और उसने इंसान ही नहीं निर्जीव सड़क तक की वेदना को शब्द दिए हैं। देश और समाज में सद्भाव की कामना करते हुए कवि कहता है :-सद्भावों का सिलसिला, पकड़ सके रफ्तार।/ हो पाएगा बस तभी, जन जन का उद्धार।/ जन-जन का उद्धार, जले नफ़रत की लंका।/ बजे खूब हर ओर, पुन: भारत का डंका।
भौतिकता के इस दौर में ज्यों ज्यों धन को संबंधों पर प्राथमिकता मिलने लगी है, लोग खुदगर्ज़ होते जा रहे हैं। तुच्छ से लाभ के लिए भी अब लोग छल-कपट से बाज नहीं आते। कवि ने इस पीड़ा को भी छंद में व्यक्त किया है :- खुदगरजी ने खोल दी, दिल में एक दुकान।/ ठगी, कपट, चालाकियां, ले लो हर सामान।
सहज सरल भाषा में रचे गए अधिकांश छंद कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टि से खरे हैं। इनमें यथोचित बिम्ब, प्रतीक और अलंकारों का प्रयोग हुआ है। कवि का लम्बा साहित्यिक अनुभव इन छंदों में परिलक्षित होता है।
पुस्तक : लाल की कुण्डलियां कवि : घमंडीलाल अग्रवाल प्रकाशक : श्वेतांशु प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 270.