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अफ़ग़ान-पाक टकराव के निहितार्थ

06:37 AM Mar 23, 2024 IST
अफ़ग़ान पाक टकराव के निहितार्थ
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पुष्परंजन

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने धमकाया है कि यदि काबुल किसी तरह की सैन्य कार्रवाई करता है, तो हम उस काॅरीडोर को बंद कर देंगे, जिसके बज़रिये भारत, अफग़ानिस्तान से व्यापार करता है। इंडिया से अफ़गानिस्तान तक माल पहुंचाने का एक रूट चाबहार पोर्ट है, जो पाकिस्तान की सरहद को नहीं छूता। जब तक ईरान से अफग़ानिस्तान के बेहतर रिश्ते हैं, यह मार्ग महफूज़ है। इस मार्ग को चाबहार-हाजीगाक काॅरीडोर कहते हैं। दूसरा, हवाई मार्ग है, जो 2016 से काबुल और कंधहार को भारत से जोड़ता रहा है। तो क्या पाकिस्तान इस तरह का बयान देकर भारत को इन्वाॅल्व करना चाहता है?
16 मार्च 2024 को उत्तरी वजीरिस्तान में एक पाकिस्तानी चौकी पर आत्मघाती हमले में दो अधिकारियों समेत सात सैनिकों की जान चली गई। इसकी ज़िम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ‘बहादुर समूह‘ ने ली थी। जवाब में पाकिस्तान ने 18 मार्च 2024 को अफगानिस्तान के अंदर ‘बहादुर समूह‘ के ठिकानों को निशाना बनाया। इस सर्जिकल स्ट्राइक ने काबुल-इस्लामबाद के संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है। इससे क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका बढ़ गई है। लोगों को इसका डर है कि पाकिस्तान-अफग़ानिस्तान के बीच फुल स्केल वॉर न छिड़ जाए।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ-साथ, बहादुर समूह से जुड़े आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर कई हाई-प्रोफाइल हमले किये थे, जिनमें दा गज्यानो कारवां, दा सुफियानो कारवां और जैश फुरसान मुहम्मद शामिल हैं। समूह की पहुंच उत्तरी वजीरिस्तान से आगे तक फैली हुई है, जो बन्नू, लक्की मारवात, डेरा इस्माइल खान और टैंक जैसे निकटवर्ती जिलों में सुरक्षा बलों के लिए संवेदनशील है। इससे पहले, 5 फरवरी 2024 को ख़ैबर पख़्तूनख्वा (केपी) के डेरा इस्माइल ख़ान के छोड़वान पुलिस स्टेशन पर एक हमले में पाक सुरक्षाबलों के 10 लोग मारे गये थे। 2023 से अब तक के आतंकी हमले में 991 लोग मारे जा चुके हैं। अलग-अलग घटनाओं को जोड़ दें, तो घायलों की संख्या 1500 पार है। इसमें 16 मार्च 2024 को उत्तरी वजीरिस्तान में आत्मघाती बम विस्फोट, 26 नवंबर 2023 को बन्नू के बकाकेहल क्षेत्र में आत्मघाती बम विस्फोट और 31 अगस्त 2023 को बन्नू के जानी खेल क्षेत्र में एक सैन्य काफिले पर आत्मघाती हमला भी शामिल है।
फिलहाल पैदा तनाव की वजह हाफिज़ गुल बहादुर ही है। वह अफगानिस्तान की सीमा से लगे उत्तरी वजीरिस्तान में उस्मानजई वजीर जनजाति के माडा खेल कबीले से आता है। हाफिज़ गुल बहादुर के पूर्वज 1930 और 1940 के दशक में ब्रिटिश कब्जे के खिलाफ प्रतिरोध के लिए जाने जाने जाते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि हाफिज़ गुल बहादुर जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) की छात्र शाखा से जुड़े थे। 2001 के अंत में अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले हस्तक्षेप के बाद, ये आतंकवादी सीमा पार उत्तरी वजीरिस्तान सहित पाकिस्तान के कबिलाई इलाकों में भूमिगत हो गए। यही लोग कालांतर में पाकिस्तान के लिए सिरदर्द साबित हुए। राष्ट्रपति मुशर्रफ पर हत्या के दो प्रयासों और अमेरिका के बढ़ते दबाव के बाद, पाकिस्तान ने 2004 में इस क्षेत्र में अभियान शुरू किया। 2004 में स्थानीय तालिबान नेता, नेक मुहम्मद की हत्या के बाद ऑपरेशन का विस्तार हुआ।
हालांकि, 2006 के मध्य तक, हाफिज़ गुल बहादुर ने अपना रुख बदल दिया और सरकार के साथ शांति समझौता कर लिया। बहादुर की पाकिस्तान से दोस्ती से कुछ विदेशी आतंकवादी नाराज हो गए, जैसे कि इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान (आईएमयू) के आतंकवादी, जिन्होंने उन पर पाकिस्तान का पक्ष लेने का आरोप लगाया। इस बीच, हाफिज़ गुल बहादुर ने उस इलाके में वर्चस्व के लिए कर वसूली और सज़ा के मकसद से एक शूरा परिषद की स्थापना की। हालांकि, पाक सरकार से समझौते के बावज़ूद गुल बहादुर के अफगान तालिबान के साथ संबंध नहीं टूटे। अल कायदा ने दिसंबर 2007 में टीटीपी के बैनर तले विभिन्न पाकिस्तानी तालिबान समूहों को एकजुट करने की मांग की, मगर बहादुर का गुट बाहर ही रहा।
अपनी अलग पहचान बनाए रखने के बावजूद, बहादुर समूह को हक्कानी नेटवर्क, अल कायदा और यहां तक कि टीटीपी जैसे प्रभावशाली गुटों के साथ अपने संबंधों से लाभ मिलता रहता है। बहादुर समूह और पाक सरकार के बीच 2006 में हुआ शांति समझौता, मई 2014 के अंत में समाप्त हो गया, इससे ठीक पहले कि पाकिस्तान ने उत्तरी वजीरिस्तान में एक बड़ा सैन्य आक्रमण, ऑपरेशन जर्ब-ए-अजब शुरू किया। हाफिज़ गुल बहादुर ने सरकार पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।
विश्लेषकों का मानना है कि बहादुर के रिश्तेदारों की हत्या ने सरकार से उनकी बढ़ती दुश्मनी में और योगदान दिया। सैन्य अभियान ने बहादुर और उसके लेफ्टिनेंटों के घरों को ध्वस्त कर दिया और उनके परिवारों को विस्थापित होने के लिए मजबूर किया। अप्रैल 2022 में, कई हवाई हमले पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा किए गए, लेकिन सरकार के स्तर पर इसकी पुष्टि नहीं की गई। अफगानिस्तान में टीटीपी और बहादुर के समूह के ठिकानों को जिस तरह निशाना बनाया गया, उसमें बच्चों सहित कई नागरिकों की मौत हो गई, जिनमें से कुछ को बहादुर का करीबी बताया गया।
2021 के मध्य में 47 पाकिस्तानी तालिबान गुटों, सांप्रदायिक समूहों और यहां तक कि अल कायदा सहयोगियों के साथ विलय का दावा किया जाता है। पाक-अफगान अतिवादियों के एक्सपर्ट रिकार्डो वैले ने अपनी वेबसाइट ‘मिलिटेंसी चैक‘ में निष्कर्ष दिया कि टीटीपी और बहादुर के समूह के बीच एकजुटता इस इलाक़े की शांति के लिए ख़तरनाक है। पाक अधिकारियों ने सफाई दी कि आतंकवादियों ने 16 मार्च 2024 को फ्रंटियर कोर शिविर पर हमला किया था। 18 मार्च का ऑपरेशन अफगानिस्तान के लोगों को लक्ष्य में लेकर नहीं किया गया था।
पाक रक्षा मंत्री ख़्वाज़ा आसिफ ने वायस ऑफ अमेरिका से कहा है कि हमें एक मैसेज भेजने की जरूरत थी कि सीमा पार आतंकवाद हम बर्दाश्त नहीं करने वाले। साथ में पाक रक्षा मंत्री ख़्वाज़ा आसिफ ने चेतावनी दी कि यदि ये माने नहीं तो भारत के साथ व्यापार के लिए अफगानिस्तान को जिस गलियारे की सुविधा हमने दी है, उसे हम अवरुद्ध कर देंगे। ख़्वाज़ा आसिफ ने इस बात पर जोर दिया कि अगर काबुल पाकिस्तान के खिलाफ अफगान धरती पर सक्रिय आतंकवादियों पर अंकुश लगाने में विफल रहता है, तो उसे अमीरात को सहायता देना बंद करने का अधिकार है। इस पूरे मामले में चीन की चुप्पी ख़तरनाक है। बेशक चीन का नुकसान इस इलाके में जारी आतंकवाद से है। उसका ताज़ा उदाहरण है 20 मार्च को ग्वादर बंदरगाह पर हुआ अटैक, जिसे विफल करने के दौरान आठ अतिवादी मारे गये।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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