असर
अशोक जैन
तड़ाक... तड़ाक। रामदीन के चेहरे पर पड़े जागीर सिंह के तगड़े हाथ के थप्पड़ की खबर पूरे तीन गांवों तक फैल गयी। चौपाल पर इकट्ठी होने वाली भीड़ के स्वर बतियाने लगे।
‘अरे पतरू! कुछ सुना क्या?’
‘का होई गवा?’
‘सरपंच ने रामदीन को लप्पड़ मार दियो सबहुं का सामने!’
‘क्यों भाई ऐसा का हुआ?’
‘पता नहीं। बस ठेकेदार ने झाड़ू लेकर चौपाल पहुंचने को कहा है। चाल...’
तभी घरघराती तीन कारें चौपाल के सामने आकर रुकीं। एक कार से तमतमाते सरपंच जागीर सिंह उतरे। पीछे-पीछे रामदीन भी। उसके चेहरे पर मुर्दनी छाई थी, और आंखों में आंसू ठहर गये थे। जागीर सिंह की ड्राइवरी करते हुए उसे तीन वर्ष हो गये थे। चौपाल पर भीड़ देखकर जागीर सिंह चौंके। पर चुपचाप बरगद के नीचे बनी कुर्सी पर बैठ गए। सरपंच की बस्ती वाली सभा को आयोजित करने वाला श्याम चंदर भी आ पहुंचा था।
‘भाई श्याम, इधर आइये।’ जागीर सिंह की कड़कदार आवाज़ उठी।
‘क्या हुआ, चौधरी साहब?’ उसका स्वर घबराया हुआ था।
‘पहले बताना चाहिए था न! पहले से ही कुछ इंतजाम करके चलते वहां।’
‘समझ नहीं पाया चौधरी साहब। आपके कहे अनुसार ही सब कुछ तो ठीक बैठाया गया था!’ श्याम का प्रश्न भरा स्वर था।
‘तो फिर वो राधे के यहां क्या था सब?’
‘आपने ही कहा था कि किसी दलित के यहां खाना खायेंगे। तभी मैंने प्रेस को भी बता दिया था कि वे भी सभी मौके पर रहें!’
‘लेकिन वहां वह लड़की कौन थी...?’
‘वह शंभू की बेटी है चौधरी साहब। हाई स्कूल पास कर लिया है, आगे पढ़ना चाहती है। मिलना चाहती थी आपसे। रामदीन के कहने पर ही...!’
‘धर्म भ्रष्ट कर दिया हमारा।’ जागीर सिंह झल्ला उठे। उनके शब्द हवा में तैर गये। चौपाल पर जुटी भीड़ पर उनका असर हुआ और वह उग्र हो गई।
‘जब तक सरपंच भरे गांव के सामने रामदीन से माफी नहीं मांगते गांव में सफाई नहीं होगी। काम बंद।’
झाड़ू लेकर लोग इकट्ठा होने लगे थे। जागीर सिंह की आंखों के सामने लाल लाल चिकत्ते तैरने लगे। तभी मुख्य सड़क से गुजरते चुनावी जत्थे के स्वर उसके कानों से टकराए...
‘जीतेगा भई, जीतेगा...’
उन्होंने अपने दोनों हाथ कानों पर धर लिए थे।