अपने में मग्न, अब हुए जलमग्न
सहीराम
अपने में मग्न दिल्ली अब जलमग्न है। भाई गुड़गांव और फरीदाबाद जैसे दिल्ली के पड़ोसी ही जलमग्न क्यों हों। दिल्ली को भी तो अनुभव होना चाहिए। बराबरी ऐसे ही आती है। वरना दिल्ली वाले गुड़गांव वालों का मजाक बनाते रहते कि क्यों भाई नाव से आए हो या तैरकर। अब खुद दिल्ली पानी में तैर रही है। गुड़गांव को जमना की जरूरत नहीं है। जलमग्न होने के लिए वह आत्मनिर्भर हो चुका है। हमारे सत्ताधारी इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि उन्होंने शहर में आए गांवों के जोहड़ों, नालों वगैरह पर हाईराइजेज बनाकर जलमग्न होने के लिए गुड़गांव को आत्मनिर्भर बना दिया है। दिल्ली भी ऐसी आत्मनिर्भरता पाने की दिशा में काफी प्रगति कर चुकी है, पर पूरी तरह जलमग्न होने के लिए उसे अभी भी जमना की जरूरत है।
अगर बरसात का मौसम न आए तो दिल्ली वाले जमना को उतनी ही हिकारत से देखते हैं, जैसे स्टेशनों पर रहने वाले आवारा बच्चों को या गरीब-भिखमंगों को देखा जाता है। वैसे तो जमना मैया है, अभी भी दिल्ली वालों को जल देती है। लेकिन जैसा मांओं का हाल, वैसा ही जमना का हाल-छीः कितनी गंदी है या फिर नदी क्या है-नाला है साहब। जमना ने अपना यह हाल खुद नहीं किया, वह इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। लेकिन जो जिम्मेदार हैं, वो अपनी जिम्मेदारी कब लेते हैं। आपने किसी नेता को, किसी अफसर को जिम्मेदारी लेते देखा है?
तो जी, कल तक जो जमना मरियल-सी पानी की धार थी, बदबूदार नाला थी, कुपोषण के शिकार की तरह हांफती, गिरती पड़ती चलती थी, वह अचानक बाहुबली बन गयी है और रौद्र रूप धारण कर दिल्ली में घुस गयी है, वैसे ही जैसे कभी-कभी नाराज किसान दिल्ली में घुस जाते हैं और उन्हें देख दिल्ली वाले परेशान हो जाते हैं। वह उसी तरह नाराज-सी दिल्ली में अंदर तक चली आई है जैसे उत्पीड़न का शिकार हुई हमारी महिला पहलवान चली आयी थी। उसने अपनी जमीन पर रहने वालों को हलकान कर दिया है। उसने इन कब्जावरों को संरक्षण देने वाले नेताओं को परेशान कर दिया है। वह बिहार की कोसी नहीं है, वह असम की ब्रह्मपुत्र नहीं है कि कभी भूलने ही न दें कि मेरे रास्ते में मत आना। जमना धैर्यवान है। वह वर्षों इंतजार करती है कि उसे नदी माना जाए, नाला नहीं। वह वर्षों इंतजार करती है कि उसके जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को सद्बुद्धि आए और उसे अपना नदीपना दिखाने की जरूरत ही न पड़े। लेकिन वर्षों का धैर्य कई बार टूट जाता है। बताते हैं कि अठ्ठहत्तर के बाद जमना पहली बार इतनी उफनी है। सब्र का बांध तोड़कर लाल किले तक पहुंच गयी है जैसे कह रही हो कि यह तो मेरा ही इलाका है। इसी रास्ते से तो मैं आगे बढ़ती थी।