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आज़ादी के संघर्ष में अतुल्य योगदान की छवि

06:31 AM Jul 09, 2023 IST
आज़ादी के संघर्ष में अतुल्य योगदान की छवि
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राजवंती मान

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समीक्षाधीन पुस्तक ‘कालापानी : स्वतंत्रता संग्राम में पंजाबियों की भूमिका’ जगतार सिंह और गुरदर्शन सिंह बाहिया द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई है। इतिहास साक्षी है कि पंजाब ने विदेशी आक्रांताओं और अन्याय व उत्पीड़न का हमेशा प्रतिरोध किया है।
यह पुस्तक 1849 ई. के दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में मान्यता देने के उचित तर्क प्रस्तुत करती है। भाई महाराज सिंह ने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए पहली लड़ाई की कमान संभाली और उन्हें आजीवन कारावास की सजा देकर सिंगापुर की दंडी बस्ती में भेज दिया गया, जहां 1856 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। सेल्युलर जेल का नर्क पंजाब के लोगों ने बेतहाशा भोगा है परन्तु इस जेल में बंद राजनीतिक कैदियों का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। अत: 1857 ई. के विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम होने का श्रेय दिया जाता है। पंजाबी इतिहाकार फौजा सिंह लिखते हैं ‘यह विद्रोह ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल सेना के उन सिपाहियों द्वारा किया गया था जिन्होंने एंग्लो–सिख युद्ध में पंजाब को जीतने के लिए अंग्रेजों की सहायता की थी।’
संदर्भित पुस्तक का मुख्य फोकस उन राजनीतिक बंदियों पर है, जिन्हें कालेपानी की सजा सुनाई गई थी। दंडात्मक समझौता 1858 ईस्वी में ही हो चुका था। दंडात्मक बंदोबस्त में पंजाबियों का पहला उल्लेख वहां की घटनाओं के संदर्भ में 1859 ई. का है जब पंजाबी दोषी द्वारा 1 अप्रैल, 1859 को वहां के मिलिट्री डाक्टर, डॉ. जेम्स पेटीसन वॉकर और अन्य पर हमला किया गया।
कालेपानी की क्रूरतम सजाओं में पिंजरे की सजा थी जिसमें कैदी को छोटे पिंजरे में चौबीस घंटे कैद रखा जाता। मास्टर छत्तर सिंह, अमर सिंह, ज्वाला सिंह और लाल सिंह को वर्षों ऐसे ही पिंजरों में कैद रखा गया था। बाबा भान सिंह की शहादत राजनीतिक कैदियों के साथ की गई बर्बरता व वीरतापूर्ण लड़ाई की कहानी है।
जलियांवाला बाग और सेल्युलर जेल दोनों मानवीय गरिमा, मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के लिए वीरतापूर्ण लड़ाई का सर्वोच्च प्रतीक हैं जिनका केंद्र पंजाब रहा है। पंजाब से सेल्युलर जेल में पहुंचाए गए स्वतंत्रता सेनानियों का पहला बड़ा समूह ग़दर पार्टी से था और करतार सिंह सराभा 19 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी थे।
पश्चिम बंगाल स्थित अंडमान पूर्व-राजनीतिक कैदी बिरादरी सर्कल द्वारा संकलित 1910-1920 ई. के आंकड़ों के संकेतक के अनुसार सेल्युलर जेल में बंद 133 राजनीतिक कैदियों में से 81 पंजाब से थे। हालांकि, जब अंडमान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी कब्जे में था तब भी डॉ. दीवान सिंह की कालेपानी की अमानवीय यातना से 14 जनवरी, 1944 को मृत्यु हो गई।
पुस्तक में हमें कूका आंदोलन, गदर पार्टी, जलियांवाला बाग, बब्बर अकाली, स्वतंत्रता सेनानी, आजाद हिंद सेना और जापानी ऑक्यूपेशन तथा भारतीय इतिहास में पंजाब के अतुल्य योगदान की छवि मिलती है। सेल्युलर जेल में राजनीतिक कैदियों की सूचियां भी पुस्तक में शामिल की गई हैं। दस अध्यायों में समाहित यह पुस्तक पंजाब के स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान को रेखांकित करती है।
पुस्तक : कालापानी : स्वतंत्रता संग्राम में पंजाबियों की भूमिका प्रकाशक : शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, अमृतसर लेखक : जगतार सिंह, गुरदर्शन सिंह बाहिया पृष्ठ : 240 मूल्य : रु. 115.

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