मोक्ष के भ्रम
एक बार संत रामचंद्र के पास एक भक्त आया और बोला, ‘महाराज, मेरे परिवार में पर्याप्त सुख है, अपार धन-संपत्ति है, संतान भी हैं, लेकिन केवल दो पुत्रियां हैं। कोई पुत्र नहीं है।’ संत जी बोले, ‘तुम पुत्र प्राप्ति के लिए इतने लालायित क्यों हो?’ इस पर वह व्यक्ति बोला, ‘महाराज, पुत्र के बिना मुझे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी।’ संत बोले, ‘क्या तुमने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जिसकी केवल पुत्रियां हों और उसे मोक्ष की प्राप्ति न हुई हो।’ भक्त बोला, ‘महाराज, मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा तो नहीं है परंतु इस तरह की बातें सुनी अवश्य हैं।’ इस पर संत जी ने कहा, ‘जिस तथ्य को तुमने स्वयं देखा नहीं, उसे मानते क्यों हो? जीवन में असंगत, तर्कहीन व सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करना अपने जीवन को व्यर्थ करने जैसा है। एक संस्कारयुक्त बेटी संस्कारशून्य पुत्रों से कहीं बेहतर है। तुम दोनों पुत्रियों को ही पुत्र तुल्य मानकर अपना उत्तराधिकारी मानो। उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाओ। उनका भली-भांति पालन-पोषण करो व भेदभाव की संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर उनके व अपने उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए जीवन जियो।’ प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार