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सेल उत्सव में भ्रमजाल के खेल

07:29 AM Nov 08, 2023 IST
सेल उत्सव में भ्रमजाल के खेल
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अशोक गौतम

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उत्सवों के दिनों में दिल सेलों के भार से इतने दब जाते हैं, जैसे वसंत आने पर फूलों से पेड़ झुक जाते हैं। तब अखबार वाले को हमारी बालकनी में अखबार फेंकने को पूरा जोर लगाना पड़ता है। कल कह रहा था कि वह दिवाली तक अखबार गेट के बाहर ही रखा करेगा। बालकनी में अखबार फेंकते हुए उसकी बाजू में दर्द हो रहा है।
आजकल सुबह जैसे ही अखबार आता है तो हम दोनों में अखबार को लेकर जोर-आजमाइश होती है। श्रीमती अखबार में नए-नए प्रॉडक्ट के विज्ञापन जी भर निहारना चाहती है तो मैं रोज की तरह आज का ताजा राशिफल। यह दूसरी बात है कि राशि के फल के हिसाब से मुझे फल आज तक नहीं मिला। पर चलो, इस बहाने दो पल को ही सही, मन प्रसन्न हो जाता है। सारे दिन की भाग-दौड़ की जिंदगी से शुभ राशिफल के दो सुखद काल्पनिक पल बहुत अच्छे होते हैं। और तब मैं अखबार पहले पाने की लड़ाई में हर बार की तरह फिर न चाहते हुए भी हार जाता हूं।
गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने के बाद से ही गृहस्थी में हर गेम हारना मेरी नियति है या मेरा स्वभाव, मुझे कुछ मालूम नहीं। पर इस हार का एक बहुत बड़ा फायदा है, और वह यह कि घर हर लेबल के कलह क्लेशों से बचा रहता है। एक शांतिप्रिय पति को इससे अधिक गृहस्थी से और चाहिए भी क्या? जो अपनी गृहलक्ष्मी से परेशान हों उनके लिए मेरी मुफ्त की सलाह कि वे जानबूझ कर अपनी बेगम से बात-बात पर हारते रहें। घर और मन दोनों बहुत शांत रहेंगे। गृहस्थी की जंग में जो मजा पति के हारने में है वैसा मजा दीपावली के रोज जुए में जीतने में भी नहीं।
कल के अखबार में फिर विज्ञापन छपा था- अबके दीपावली है बहुत विशेष, कोई खरीदारी न छोड़ें शेष। भैया जी! इस विशेष के चक्कर में पड़ बीवी ने बाजार जाकर आज तक कुछ छोड़ा है क्या जो अबके छोड़ेगी? अब और खरीदारी करवा के शरीफ हसबेंड का और बैंड बजवाओगे क्या? चार-चार क्रेडिट कार्ड में जितनी लिमिट थी, उस सबकी सीमा तो बाजार के बहकावे में आकर दीपावली से पहले ही बीवी वैतरणी की तरह लंघवा चुकी है। बीवी शॉप-शॉप उत्सव की दुहाई देते मेरा हौसला बढ़ाती है। मुझे बाजारू ज्ञान देती मेरी बोझ से झुकी पीठ को थपथपाती है। सोचता हूं कि इस दीपावली की खरीदारी में क्रेडिट कार्ड देने वाले बैंकों का डिफाल्टर हो जाऊं तो दीपावली का मजा ही कुछ और हो। देश के बैंकों को करोड़ों की चपत लगा डिफाल्टरों का आमजन के लिए उपदेश है कि देश में जो मजा डिफाल्टर होने में है, वह अपनी जेब के हिसाब में उत्सव मनाने, पहनने, खाने में कहां?

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