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देश के विकास में बाधक है गैर कानूनी निर्माण

06:59 AM Oct 22, 2024 IST
देश के विकास में बाधक है गैर कानूनी निर्माण
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पंकज चतुर्वेदी

हिमाचल प्रदेश जैसा शांत, सुरम्य और छोटा राज्य पिछले कुछ दिनों से सुलग रहा है और कारण है शिमला के संजौली और अन्य कुछ स्थानों पर ऐसी मस्जिदें, जो कथित रूप से अवैध हैं। दिल्ली में भी कुछ मंदिरों को हटाने पर अदालती दांवपेंच चल रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन जाता हो जब देश के किसी हिस्से से किसी धार्मिक स्थल को हटाने पर विवाद की खबरें न आती हों। दुर्भाग्य यह है कि देश की सरकारें अदालती आदेशों को अपने सियासी हितों के मुताबिक लागू करती हैं और दबा कर भी रख लेती हैं।
सन‍् 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक या सरकारी जमीन पर, बिना मंजूरी वाले सभी धार्मिक स्थल अवैध हैं और इन्हें हटाया जाए। उस समय हर राज्य ने अपने अधिकार क्षेत्र में अवैध धार्मिक स्थलों की सूची भी पेश की थी। सितंबर, 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी को हटाने का दो हफ्ते का समय दिया, लेकिन 14 साल बीत जाने पर उनमें से गिने-चुने स्थल ही हटे; हां, इससे कई गुणा बढ़ जरूर गए।
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने 14 अक्तूबर, 2024 को राज्य के विभागों और निकायों को पत्र भेज कर सितंबर, 2009 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में अवैध धार्मिक स्थलों की सूची तैयार कर उन्हें हटाने के निर्देश दिए हैं। अचानक यह आदेश क्यों आया? हो सकता है कि इसके पीछे कोई सियासी चालबाजी हो, लेकिन हकीकत तो यह है कि देश में स्कूलों से कहीं अधिक संख्या धार्मिक स्थलों की है। लगभग 24 लाख मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे-गिरजे आदि देश के चप्पे-चप्पे में फैले हैं। इनमें से कई की आय तो किसी राज्य के सालाना बजट के बराबर होती है, लेकिन कड़वी सच्चाई यही है कि इनमें से अधिकांश सार्वजनिक भूमि पर, बिना कोई नक्शा पास किए, मनमाने तरीके से बने हैं। अकेले दिल्ली में ही अवैध धार्मिक स्थलों की संख्या 60 हजार से अधिक है। तमिलनाडु ऐसे अतिक्रमणों के लिए शीर्ष पर है, और सन‍् 2009 में प्रस्तुत हलफनामे में यह संख्या 77,450 थी। राजस्थान में 58,253, मध्यप्रदेश में 52,923, उत्तर प्रदेश में 45,000, और गुजरात में 15,000 धार्मिक स्थल अवैध चिन्हित किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 1,493 धार्मिक स्थल गैरकानूनी पाए गए, लेकिन उनमें से मात्र 50 को हटाया गया। लेकिन उसके बाद वहां 500 नए कब्जे हो गए। प्रदेश के मंदसौर में 6,344, उज्जैन में 5,746, धार में 1,540, और ग्वालियर में 1,752 गैरकानूनी धार्मिक स्थल फलते-फूलते अब और अधिक जगह घेर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में सरकारी हलफनामे के मुताबिक 14 साल पहले 45,152 अवैध कब्जे धर्म के नाम पर थे। गिने-चुने स्थल ही हटे। अकेले लखनऊ में 971 बेशकीमती स्थान धर्म के नाम पर घेरे गए हैं। सिद्धार्थ नगर में सर्वाधिक 4,706, मुजफ्फरनगर में 4,023, और झांसी में 1,101 सहित हर जिले में ऐसा अवैध कारोबार फलता-फूलता सरकारी निगाह में है। उत्तर प्रदेश में 25 सितंबर, 2013 से लेकर जुलाई, 2023 तक हाई कोर्ट में अलग-अलग कम से कम पांच मामलों में ऐसे निर्माण हटाने के आदेश किसी लाल बस्ते में बहानों के साथ बंद हैं।
पांच मार्च, 2020 को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 29 सितंबर, 2009 के बाद अवैध तरीके से बने धार्मिक स्थलों का पता लगाकर उन्हें हटाने के लिए निर्देश दिया था। सरकार के हलफनामे के अनुसार कोर्ट के आदेश पर राज्य के सभी 13 जिलों में अवैध रूप से बने मंदिर, मस्जिद, चर्च व गुरुद्वारा की जांच की गई। सरकार ने साफ किया है कि हरिद्वार में 171, टिहरी गढ़वाल में 96, नैनीताल में 9, चंपावत में 23, चमोली में 3, अल्मोड़ा में 5, पिथौरागढ़ में 6, पौड़ी गढ़वाल में 15, उत्तरकाशी में 2, रुद्रप्रयाग में 7, ऊधमसिंह नगर में 412, और देहरादून में 21 धार्मिक स्थल सार्वजनिक व सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सरकार ने कोई सख्त कदम नहीं उठाए। मध्य प्रदेश में तो अदालती आदेश का अनुपालन न होने को लेकर अदालत की अवमानना का मामला भी चल रहा है। अदालतें भी अब ऐसे मामलों में लंबी तारीखें लगाती हैं।
अभी 30 मई 2024 को केरल हाई कोर्ट के जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने और भारत के संविधान की प्रस्तावना में निहित 'संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' के रूप में देश को मजबूत करने के लिए सरकारी या सार्वजनिक भूमि से अनधिकृत और अवैध धार्मिक संरचनाओं की पहचान करने और उन्हें हटाने के निर्देश जारी किए। उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि सरकारी भूमि पर अवैध धार्मिक स्थलों के निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती। इससे राज्य में धार्मिक वैमनस्य पैदा होगा। बुलडोजर कार्रवाई पर रोक के 1 अक्तूबर, 2024 वाले आदेश में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने भी कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर स्थित किसी भी धार्मिक ढांचे को हटाना होगा क्योंकि जनहित सबसे ऊपर है। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है।
आस्था, धार्मिकता, अध्यात्म हमारे देश की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसमें भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं है। देश विकास के जिस संक्रमण काल से गुजर रहा है, उसमें धर्म के नाम पर क्षुद्र राजनीति देशहित में तो कतई नहीं है। आज समय की मांग है कि देशभर के अवैध धार्मिक स्थलों को धार्मिक संस्थाएं खुद हटाएं और देश के सौहार्द और विकास के रास्ते को गति दें।

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