अत्यधिक दोहन को नज़रअंदाज़ करना घातक
यह विडंबना है कि व्यावसायिक खेती के चलते भारत में भूजल का अंधाधुंध दोहन बहुत तेजी से बढ़ा है। जिसकी वजह से आज हम दुनिया में भूजल के सबसे बड़े उपयोगकर्ता बन गये हैं। चिंता की बात यह है कि अमेरिका व चीन द्वारा संयुक्त रूप से जिस मात्रा में भूजल का उपयोग किया जा रहा है, भारत का उपयोग उससे भी अधिक है। निश्चित रूप से यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। दरअसल, आज देश में निकाले जा रहे नब्बे फीसदी भूजल का उपयोग कृषि कार्यों के लिये किया जा रहा है। जाहिर है यह हमारी आजादी के सात दशक बाद भी बाहरी सिंचाई जल संसाधनों की अपूर्णता को दर्शाता है। सतही जल स्रोतों का बेहतर ढंग से नियोजन न हो पाना हमारे नीति-नियंताओं की विफलता को ही बताता है। चौंकाने वाली बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट बताती है कि इंडो-गंगेटिक बेसिन के कुछ क्षेत्र भूजल की कमी के चरम बिंदु को पार कर चुके हैं। दरअसल हम जल दोहन की उस स्थिति पर जा पहुंचे हैं, जिससे हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र में अपरिवर्तनीय स्थितियां अनुभव की जाती हैं। अनुमान है कि देश के पूरे उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में 2025 तक भूजल की उपलब्धता बेहद कम हो जाएगी। इस बारे में एक अमेरिकी विश्वविद्यालय के अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि भारत में वर्तमान दर से भूजल का दोहन जारी रहता है तो देश भयावह भूजल संकट का सामना करेगा। आकलन है कि वर्ष 2080 तक भारत में भूजल की कमी की दर तीन गुना तक हो सकती है। निश्चय ही यह बेहद चिंताजनक स्थिति होगी। यदि हम अभी इस संकट को गंभीरता से नहीं लेते हैं तो इसका देश के खाद्यान्न उत्पादन पर खासा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे जहां हमारी खाद्य सुरक्षा शृंखला संकट में पड़ जाएगी, वहीं दूसरी ओर हमें विदेशों से आयातित अनाज पर निर्भर रहना पड़ेगा। निश्चित रूप से देश के लिये यह विकट स्थिति होगी।
वहीं दूसरी ओर केंद्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट में पंजाब के भूजल संकट को लेकर जो निष्कर्ष सामने आए हैं, वे भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा पंजाब में जिन 150 ब्लॉकों का मूल्यांकन किया गया है उनमें 114 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आते हैं। वहीं तीन को गंभीर स्थिति वाला और तेरह को आंशिक रूप से चिंताजनक बताया गया है। केवल 20 ब्लॉकों को ही सुरक्षित श्रेणी में रखा गया है। उल्लेखनीय है कि पंजाब राज्य में 13.94 लाख ट्यूबवेल हैं। पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के आंकड़ों से पता चलता है कि इनमें अधिकांशत: अत्यधिक जल दोहन वाले जिलों में स्थित हैं। बेहद चिंता की बात है कि संगरूर और मलेरकोटला में भूजल का दोहन पुनर्भरण से 164 फीसदी अधिक है। जाहिर बात है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिये अंधकारमय भविष्य तैयार कर रहे हैं। जैसे-जैसे हमारी भूजल से पहुंच खत्म होगी हमारी संपूर्ण खाद्य उत्पादन प्रणाली के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। निश्चित रूप से लगातार बढ़ते इस भूजल संकट के मूल में हमारा फसलों का चयन है। खासकर गेहूं और धान की फसल में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है। हमें ऐसे विकल्पों पर विचार करने की जरूरत है जो हमारी सिंचाई दक्षता के लिये समाधान प्रस्तुत कर सकें। यह एक हकीकत है कि अधिक पानी की खपत करने वाली फसलें लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होती हैं। यदि हम आज इसमें बदलाव के लिये गंभीर प्रयास नहीं करते हैं तो दीर्घकालिक संकट के लिये तैयार होना होगा। इस संकट का दूसरा पहलू यह है कि खेती में लगातार बढ़ते रासायनिक खादों व कीटनाशकों का भी घातक प्रभाव हमारे पेयजल पर पड़ रहा है। जिसके चलते इसमें मानव उपयोग में आने वाले पेयजल के लिये स्वीकार्य सीमा से अधिक आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा पायी गई है। ऐसे में भूजल के प्रदूषण से बचने के लिये तत्काल उपाय करने की जरूरत है। तभी हम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित कर पाएंगे।