स्क्रीन का हो ज्यादा इस्तेमाल तो आंखों का रखें खास ख्याल
कंप्यूटर व मोबाइल स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताना दृष्टि संबंधी विकारों की वजह बन रहा है। इसके साथ ही स्क्रीन यूज करने के गलत तरीके भी नजर कमजोर कर रहे हैं। स्क्रीन के प्रयोग से नजर पर प्रभावों और इसके समाधान को लेकर दिल्ली स्थित नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम अत्री से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
आज के डिजिटल युग में बदले लाइफ स्टाइल के चलते रोग काफी संख्या में सिर उठा रहे हैं, जिनमें एक नज़र कमजोर होना भी है। पढ़ाई, ऑफिस वर्क से लेकर सामाजिक संबंध तक ज्यादातर कार्य कंप्यूटराइज हो गया है। ऊपर से दिन-रात सोशल मीडिया खासकर रील्स देखने की आदत इसे और बढ़ावा दे रही है। लोगों का वक्त रील्स बनाने या देखने में गुजर रहा है। आलम यह है कि लंबे समय तक मोबाइल, कंप्यूटर स्क्रीन को देखने से छोटे-छोटे बच्चों की आंखों की सेहत में बदलाव आ रहा है, नजर कमजोर हो रही है और चश्मे का नंबर बढ़ रहा है।
इस दिशा में हुई रिसर्च के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चे अगर लगातार मोबाइल फोन या कंप्यूटर पर लगे रहते हैं और बाहर नहीं निकलते, सन एक्सपोजर नहीं होता- उनकी आंखों में माइनस का नंबर या मायोपिया का चश्मा चढ़ सकता है। आंकड़ों पर नज़र डालें तो चीन में 94 फीसदी लोगों को चश्मा लग गया है, कोरिया में 90 प्रतिशत, सिंगापुर में 88 प्रतिशत लागों को चश्मा लगा है। भारत में भी यही ट्रेंड आरहा है वजह है- लंबे समय तक मोबाइल पर काम करना।ऐसे होता है नुकसान
असल में आंखों को नुकसान पहुंचाने में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन में से निकलती ब्लू रेज़ की अहम भूमिका रहती है। हालांकि आधुनिक गैजेट्स में हाई-रिजोल्यूशन स्क्रीन या एंटी-ग्लेयर मैट होने के कारण ब्लू रेज़ की इंटेंसिटी कम है। लेकिन स्क्रीन के सामने आइज़ ब्लिंक रेट कम हो जाता है। यानी नॉर्मल इंसान एक मिनट में 18-20 बार आंखें झपकता है। लेकिन स्क्रीन के सामने व्यक्ति का फोकस स्क्रीन देखने पर रहता है जिसकी वजह से आइज ब्लिंक करने का नंबर कम हो जाता है। यानी 8-10 रह जाता है। आइज ब्लिंक न होने से आंखों को नुकसान पहुंचता है। ब्लिंक करने से पलकें आंखों में मौजूद आंसू को पूरी आंख में फैला देती हैं जो लुब्रीकेटिंग इफेक्ट का काम करता है। स्क्रीन देखते हुए ब्लिंक न करने से आंसू आंख में ठीक तरह फैल नहीं पाते और आंखों में ड्राइनेस या स्ट्रेन की शिकायत होने लगती है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहा जाता है।
लेटकर मोबाइल इस्तेमाल के जोखिम
मोबाइल की रील्स रात को देखने का ट्रेंड ज्यादा है। रात को सोने से पहले बेड पर मोबाइल इस्तेमाल करते समय अक्सर लोग टेढ़ा होकर देखते हैं। जिसमें एक आंख तकिये की वजह से बंद हो जाती है और दूसरी से स्क्रीन देखते रहते हैं। इससे उनमें ट्रांजिडेंट विजन लॉस की स्थिति आ सकती है। यानी कुछ समय के लिए उस आंख से धुंधला दिखने लगता है क्योंकि उसकी मसल्स स्पाज्म में चली जाती है। मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों की नजर के लिए नुकसानदायक तो है ही, साथ ही इससे स्लीप साइकल डिस्टर्ब होता है। रात को नींद आने में परेशानी होती है।दृष्टि को लेकर समस्याएं
इसकी वजह से आंखों की मसल्स थक जाती हैं और आंखों में ड्राइनेस, धुंधला दिखना, दर्द होना, रेडनेस, खुजली, जलन, थकान, आंखों से पानी आना जैसी समस्याएं होने लगती हैं। आंखें कमजोर होने लगती हैं।
लाइफ स्टाइल बेहतर करने में है समाधान
व्यक्ति कुछ लाइफस्टाइल मोडिफिकेशन से अपनी आंखों को ज्यादा खराब होने से बचा सकते हैं। कंप्यूटर या लैपटॉप पर लगातार काम करने के से बचें। सबसे जरूरी है कि वो 20 : 20 : 20 का रूल फोलो करना चाहिए। व्यक्ति को एक बार में 20 मिनट ही काम करना चाहिए। यानी 20 सेकंड की ब्रेक लें और 20 फुट दूर देखते हुए कम से कम 20 बार ब्लिंक करना चाहिए। इससे आंखों की ब्लिंक करने की रिदम् नॉर्मल हो जाएगी। आंखों के आंसू पूरी आंखों में फैल जाएंगे और आंखें लुब्रीकेट रहेंगी। स्पाज़्म में गई आंखों की मसल्स को आराम मिलेगा और टियर फिल्म स्मूथ होंगी।
ताकि आंखों पर कम पड़े स्ट्रेन
यथासंभव बड़ी स्क्रीन वाले कंप्यूटर पर काम करें, उसका टेक्स्ट बड़ा हो ताकि आंखों पर स्ट्रेन न पड़े। छोटी स्क्रीन वाला मोबाइल पास में रखकर काम करना हो तो आंखों के लेवल से थोड़ा नीचे और कम से कम 20 इंच की दूरी पर रखकर देखें। इससे आंखों पर स्ट्रेन कम पड़ेगा। जहां तक हो सके मोबाइल कंप्यूटर का टाइम नियंत्रित होना चाहिए। एक बार में स्क्रीन टाइम 20-25 मिनट की अवधि का रखें। उसके बाद थोड़ा-सा ब्रेक जरूर लें ताकि आंखों पर ज्यादा स्ट्रेन न पड़े।
अपना स्क्रीन टाइम कम करें। यानी मोबाइल गेम्स खेलने के बजाय इन्डोर गेम्स खेलें या टीवी देख सकते हैं। घर में अपनी मनपसंद एक्टिविटीज़ कर सकते हैं जैसे- म्यूजिक-डांस, योगा, स्ट्रेचिंग, स्किपिंग, चहलकदमी, गार्डनिंग, पेंटिंग। कोशिश करें कि रात को सोने से एक घंटा पहले मोबाइल से दूरी बना लें। संभव न हो तो आंखों को बचाने के लिए ब्लू लाइट को एडजस्ट करना जरूरी है। मोबाइल फोन में ब्लू लाइट फिल्टर सॉफ्टवेयर होता है, उसे ऑन करके देखने से स्क्रीन कम्फर्ट ज्यादा हो जाता है। सेल्फ मेडिकेशन न करके जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। सुझाए गए लुब्रिकेटिंग ड्रॉप्स दिन में 3-4 बार जरूर डालने चाहिए जो आंखों में आर्टिफिशियल टीयर्स बनाते हैं जिनसे आइज ड्राइनेस कम होती है।