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कच्छ नहीं देखा ...तो कुछ नहीं देखा

07:39 AM Jan 05, 2024 IST
कच्छ नहीं देखा    तो कुछ नहीं देखा
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देवेन्द्रराज सुथार
गुजरात में स्थित कच्छ का रण (जो दुनिया के सबसे बड़े नमक रेगिस्तानों में से एक है) न केवल अपने प्राकृतिक वैभव के लिए जाना जाता है, बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा आयोजित रण उत्सव के लिए भी काफी लोकप्रिय है। हर साल 8 से 10 लाख पर्यटक नवंबर से फरवरी तक आयोजित होने वाले रण उत्सव को देखने और चांदनी रात और खुली हवा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं। यहां एक नहीं, बल्कि कई तरह की कलाओं और समुदाय के लोगों से रूबरू होने का मौका मिलता है। हालांकि, कच्छ के रण का अधिकांश भाग गुजरात में है, जबकि कुछ भाग पाकिस्तान में है। अप्रैल, 1965 में रण के पश्चिमी छोर पर भारत-पाक सीमा को लेकर लड़ाई छिड़ गई और बाद में ब्रिटेन के हस्तक्षेप के बाद युद्ध खत्म हुआ।
खास बात यह है कि गर्मियों के बाद मानसून के आगमन के साथ ही कच्छ की खाड़ी का पानी इस रेगिस्तान में आ जाता है, जिससे सफेद रण एक विशाल समुद्र जैसा दिखाई देता है। दरअसल नमक के इस रेगिस्तान को देखना जितना अद्भुत है, उससे भी ज्यादा दिलचस्प है इसके बनने की कहानी। जुलाई से अक्तूबर-नवंबर तक कच्छ के रण का यह हिस्सा समुद्र जैसा दिखाई देता है। 23,300 किमी में फैला कच्छ का रण सिकंदर के समय में एक नौगम्य झील थी। अब यह दो भागों में बंट गया है। उत्तरी रण यानी ग्रेट रण ऑफ कच्छ 257 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है और पूर्वी रण यानी लिटिल रन ऑफ कच्छ लगभग 5178 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां का तापमान गर्मियों में 44-50 डिग्री तक बढ़ जाता है और सर्दियों में शून्य से नीचे चला जाता है।
इतिहास के अनुसार कादिर नाम का कच्छ का एक द्वीप हड़प्पा की खुदाई में मिला था। कच्छ पर पहले सिंध के राजपूतों का शासन हुआ करता था, लेकिन बाद में जडेजा राजपूत राजा खेंगरजी के समय भुज को कच्छ की राजधानी बना दिया गया। सन‌् 1741 में राजा लखपतजी कच्छ के राजा कहलाए। 1815 में अंग्रेजों ने डूंगर पहाड़ी पर कब्जा कर लिया और कच्छ को अंग्रेजी जिला घोषित कर दिया गया। ब्रिटिश शासन काल में ही कच्छ में रंजीत विलास महल, मांडवी का विजय विलास आदि महल भी बनाए गए।
रण उत्सव के दौरान कई कलाकार अपनी कला के जरिए रेत पर भारत के इतिहास की झलक दिखाते हैं। पिछले कई वर्षों में रण उत्सव के दौरान कलाकारों ने रामायण से लेकर स्वामी विवेकानंद की कच्छ यात्रा तक के पात्रों को अपनी कला में प्रदर्शित किया है। यहां आकर स्थानीय लोगों की जीवनशैली और हस्तशिल्प कला से भी रूबरू हो सकते हैं। रण उत्सव के दौरान भुज से पांच किमी दूर रण मैदान के मध्य धोरडो गांव के पास एक पर्यटक शिविर लगाया जाता है, जहां देशी-विदेशी पर्यटकों को सभी सुविधाओं के साथ ठहराया जाता है। यहां आप डेजर्ट पेट्रोलिंग व्हीकल यानी डीपीवी पर रेगिस्तान में अकेले सवारी का आनंद भी ले सकते हैं। इतना ही नहीं, इस रेगिस्तान में आपको लोमड़ी और राजहंस की दुर्लभ प्रजातियां भी देखने को मिलेंगी। भुज के पास भुजोड़ी नाम का एक गांव है, जहां वानकर समुदाय के लगभग 1200 कारीगर रहते हैं। ये लोग यहां कपड़ा और हस्तशिल्प इकाइयों में काम करते हैं। यहां बुनकरों, ब्लॉक प्रिंटर और टाई-डाई कलाकारों से मिलने और उनके शिल्प के बारे में जानने का मौका मिलता है।

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कैसे पहुंचें

भुज कच्छ के रण के बहुत करीब है। सभी प्रमुख शहरों के हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों से यहां आया जा सकता है। भुज से रण की दूरी सिर्फ 80 किमी है यानी यहां पहुंचने में आपको 5 घंटे लगेंगे। आप चाहे तो भुज से गुजरात टूरिज्म बस की सुविधा भी ले सकते हैं, जो आपको सीधे कच्छ के रण तक ले जाएगी। अगर आप फ्लाइट से आना चाहते हैं, तो बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, तिरुवनंतपुरम और गोवा से सीधी फ्लाइट भुज एयरपोर्ट के लिए चलती है। अगर आप ट्रेन से कच्छ जाना चाहते हैं, तो भुज एक्सप्रेस और हजरत एक्सप्रेस दिल्ली से चलती हैं, जबकि भुज एक्सप्रेस और कच्छ एक्सप्रेस मुंबई से चलती हैं। अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं, तो दिल्ली, मुंबई, पुणे और जोधपुर से कच्छ के रण तक पहुंचने में लगभग 16 घंटे लगेंगे।

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