सुनने में दिक्कत आये तो शीघ्र कराएं कानों की जांच
देश में बड़ी संख्या में लोग कम सुनाई देने या बिल्कुल न सुनने की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें बच्चे भी शामिल हैं। हियरिंग लॉस के कारणों, लक्षणों, जांच व उपचार के विषय पर दिल्ली स्थित एक नामी अस्पताल के ईएनटी डिपार्टमेंट में एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. नेहा सूद से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
दुनिया भर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी सुनने की क्षमता कम होती जा रही है या वे आंशिक तौर पर केवल एक कान से ही सुन पाते हैं। सुनने की क्षमता में कमी बहरेपन या विकलांगता की श्रेणी में आती है। शुरुआत में ही इस समस्या को पहचान कर उपचार कराया जाए, तो हियरिंग लॉस से बचा जा सकता है। भारतीय आबादी के लगभग 6.3 प्रतिशत लोगों में यह समस्या है जिनमें लगभग 50 लाख बच्चे हैं। कान से वैक्स बहना, सर्दी-जुकाम के साथ कान में दर्द, अत्यधिक वैक्स बनना, इनफेक्शन या पस पड़ना, सीटी जैसी आवाजें सुनाई देना जैसी समस्या हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
जब साउंड वेव में अवरोध पैदा हो जाए, तो हियरिंग लॉस समस्या पैदा हो जाती है। हियरिंग लॉस कई तरह का है- पहला, कंडक्टिव - ईयरड्रम में छेद होने के कारण होता है। जिसकी वजह से आवाज अंदरूनी कान तक नहीं पहुंच पाती और श्रवण क्षमता कम हो जाती है। दूसरा सेंसरीन्यूरल- हियरिंग डिफेक्ट इनर ईयर कोकलिया की संरचना और सेंसरी पार्ट में भी हो सकते हैं। इसमें मौजूद हियर सेल्स साउंड वेव से वाइब्रेट तो करते हैं, लेकिन उनकी जड़ में करंट नहीं बन पाता और साउंड को ब्रेन तक नहीं पहुंचा पाते। या फिर साउंड वेव को ब्रेन तक ले जाने वाली नर्व दबने या ब्लॉकेज होने से भी हियरिंग लॉस की समस्या आती है।
ये हैं कारण
जन्मजात दोष - जिन बच्चों के कान की बाहरी और अंदरूनी संरचना जन्म से ही ठीक तरह से न बनी हो, तो बच्चे को सुनने में समस्या आ सकती है।
सूजन- कान में जमा वैक्स या मैल ईयर बड से साफ करने की कोशिश में यह वैक्स कान से बाहर न निकल कर अंदर चली जाती है। कान के अंदर जमा होती जाती है और कान में सूजन आ सकती है। इससे कान में ब्लॉकेज आ जाती है जिससे श्रवण क्षमता पर असर पड़ता है।
इनफेक्शन- कान की सफाई के लिए तेल वगैरह डालते हैं जिससे कई बार कान में इनफेक्शन हो सकता है।
नर्व डैमेज होना- इनर ईयर में मौजूद ऑडिटरी नर्व के क्षतिग्रस्त होने पर सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। यह अत्यधिक मेडिसिन लेने, वायरल इनफेक्शन, पैरालाइसिस, ब्रेन ट्यूमर के चलते हो सकता है।
पर्दे में छेद होना- सफाई करते हुए ध्यान न देने या इनफेक्शन की वजह से ईयर ड्रम में छेद हो जाता है। कई बार यह एक कान में ही होता है।
बढ़ती उम्र - बुजुर्गों में कान में खून का दौरा कम हो जाता है, जिससे उनके कान इरीटेबल हो जाते हैं, उन्हें थोड़ा तेज साउंड भी बर्दाश्त नहीं होता। जिसे शार्ट इंक्रीमेंट सेंसेटिव इंडेक्स कहा जाता है। हियरिंग एड लगाई जाती है।
ड्रग्स से इंजरी- बचपन में निमोनिया, टीबी जैसी बीमारियों के इलाज में दिए जाने वाले सेप्टोमाइसिन जैसे इंजेक्शन या मेडिसिन, कैमिकलयुक्त फर्टिलाइजर या प्रीजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से समस्या हो सकती है।
साउंड वेव इंजरी- आसपास बहुत तेज साउंड ब्लास्ट हो जाए या बम फटने आदि से मरीज को एक या दोनों कानों से सुनाई देना बंद हो जाता है। इसके अलावा एमपी 3 प्लेयर, हैड फोन के ज्यादा इस्तेमाल, ब्रेन में मेनिन्जाइटिस इनफेक्शन होने पर भी सुनने की क्षमता कम या समाप्त हो सकती है।
उपचार
ईएनटी डॉक्टर कान के अंदरूनी भाग की जांच कर इनफेक्शन का पता लगाते हैं। कान के पीछे अगर सर्दी-जुकाम का पानी चला गया है, तो ओटोमाइकोटिक प्लग लगा कर इनफेक्शन को साफ करते हैं, कान में डालने के लिए एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ईयर-ड्रॉप्स दी जाती हैं। एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं। कंडक्टिव हियरिंग लॉस की स्थिति में ईयर ड्रम या पर्दे में हुए छेद और साउंड कैरी करने वाली हड्डियों को ऑसिकुलोप्लास्टी माइक्रोस्कोपिक सर्जरी करके रिपेयर किया जाता है। वहीं जन्म के समय बच्चे की श्रवण क्षमता की जांच करने के लिए ऑब्जेक्टिव स्क्रीनिंग टेस्ट किए जाते हैं। जन्मजात दोष के कारण कमजोर श्रवण क्षमता वाले बच्चों के लिए कॉकलीयर इम्प्लांट किया जाता है। इसके बाद रिहेबलीटेशन ट्रेनिंग भी दी जाती है। सर्जरी की गुंजाइश न हो, वहां हियरिंग एड का सहारा लिया जाता है।
सावधानियां
किसी भी उम्र में होने वाले हियरिंग लॉस को इग्नोर न करें। अगर बच्चा 4-5 महीने में भी आवाज पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा हो, तो पेरेंट्स को डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए। वहीं सर्दी-जुकाम हो और कान में दर्द हो रहा है, तो कोताही न बरत कर ईएनटी सर्जन को फोरन दिखाना चाहिए। कान से पस आती है तो डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए। वैक्स साफ करने के लिए ईयर बड या पिन का इस्तेमाल गलत है। नहाते वक्त कान को उंगली से साफ कर लेना, एंटी फंगल या एंटी बैक्टीरियल ड्राप्स डालना फायदेमंद है।