समय पर कराएं जांच तो संतान रहेगी नीरोग
रेखा देशराज
थैलेसीमिया खून से जुड़ी एक ऐसी गंभीर बीमारी है, जिसमें व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। यह बीमारी माता-पिता से बच्चों तक पहुंचती है। भारत में थैलेसीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है क्योंकि हर साल 10-15 हजार बच्चे यहां थैलेसीमिया रोग के साथ पैदा होते हैं। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 8 मई को पूरी दुनिया में थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। अगर शादी के पहले, कुंडली मिलान के समय और गर्भावस्था की पहली तिमाही में थैलेसीमिया की जांच करा ली जाए तो इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चों को रोका जा सकता है। आज पूरी दुनिया में थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों की संख्या करोड़ों में है। खासकर बच्चे इससे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। उचित देखरेख की सुविधा न होने के कारण बहुत सारे बच्चे इस बीमारी से मर जाते हैं। पहली बार थैलेसीमिया दिवस, थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने 8 मई 1994 को मनाया था। हर साल यह दिवस विशेष थीम के साथ मनाया जाता है। साल 2024 की थीम है ‘स्ट्रैंथिंग एजुकेशन टू ब्रिज थैलेसीमिया केयर गैप’ यानी थैलेसीमिया के बारे में लोगों को शिक्षित करना। थैलेसीमिया इंडिया के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 10 हजार बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी के साथ पैदा होते हैं। इन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है।
शुरुआती पहचान के बिंदु
थैलेसीमिया के चलते शरीर में हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिससे लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम होने लगती है। यह बीमारी बच्चों को आनुवंशिक तौरपर मिलती है इसलिए इसकी पहचान बच्चे के पैदा होने के कम से कम 90 से 100 दिन के बाद ही हो पाती है। वैसे थैलेसीमिया के आम लक्षण हैं- हमेशा बीमार नजर आना, चेहरा बिल्कुल कमजोर और सूखा लगना, जबड़े और गालों में असामान्यता दिखना। आमतौर पर थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के गाल पिचक जाते हैं और जबड़े बेतरतीब ढंग से निकले हुए से लगते हैं। थैलेसीमिया से प्रभावित होने वाला शरीर का सबसे पहला अंग जीभ और नाखून होते हैं। पीड़ित के नाखून पीले पड़ जाते हैं और जीभ में भी पीले रंग की परत चढ़ जाती है। ऐसे बच्चों का विकास रुक जाता है,वजन बढ़ता ही नहीं व हर समय कमजोरी का अहसास होता है। सांस लेने में तकलीफ होती है। थैलेसीमिया दो तरह के होते हैं। थैलेसीमिया मेजर और थैलेसीमिया माइनर।
पैरेंट्स की जांच व बच्चे को टीका
थैलेसीमिया से बचने के लिए बच्चों को पैदा होने के तुरंत बाद टीका लगवाना चाहिए। वहीं विवाह से पहले और गर्भावस्था के दौरान महिला और पुरुष के रक्त की जांच की जानी चाहिए। अगर दोनों में से किसी के रक्त में विकार है तो उस स्थिति से बचने का उपाय करना चाहिए। जहां तक थैलेसीमिया की समस्या से सजग रहने और इसके होने पर परहेज की बात है तो हमेशा साफ पानी पीएं और जहां रहें उसके इर्द-गिर्द स्वच्छता हो। अगर किसी व्यक्ति के बारे में पता चल जाए कि उसे थैलेसीमिया है तो उसके होमोग्लोबिन को 11 से 12 तक बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए। वास्तव में थैलेसीमिया एक रक्त विकार है जिसके कारण रक्त में ऑक्सीजन वाहक प्रोटीन सामान्य से कम मात्रा में होती है। इसके कारण शरीर में हीमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है और धीरे-धीरे व्यक्ति रक्ताल्पता का शिकार हो जाता है। सामान्य व्यक्ति के शरीर में लालरक्त कणिकाओं की उम्र करीब 120 दिनों की होती है लेकिन थैलेसीमिया रोगियों के शरीर में लालरक्त कणिकाओं की उम्र महज 20 दिन ही रह जाती है।
उपचार के दौरान ब्लड ट्रांसफ्यूजन
थैलेसीमिया के इलाज के लिए कभी-कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी किया जाता है। इसके चलते स्प्लीन को निकाला जाता है या आयरन किलेशन थैरेपी दी जाती है। थैलेसीमिया का निदान करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले ब्लड काउंट मापते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की विशेषताओं में असामान्यता दिख सकती है। थैलेसीमिया की जांच के लिए हीमोग्लोबिन, इलेक्ट्रोफोरेसिस तथा अन्य ब्लड टेस्ट भी कराये जाते हैं।
थैलेसीमिया जानलेवा हो सकता है। थैलेसीमिया से अपने बच्चों को बचाने का बहुत आसान सा तरीका है शादी के पहले और प्रेग्नेंसी के बाद थैलेसीमिया टेस्ट जरूर कराएं।
-इ.रि.सें.