इस्राइल-ईरान में युद्ध हुआ तो किसी की पूर्ण जीत संभव नहीं : ब्रिगेडियर सराओ
चंडीगढ़, 22 अक्तूबर (ट्रिन्यू)
पंजाब विश्वविद्यालय के रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन विभाग (डीडीएनएसएस) ने ब्रिगेडियर डीएस सराओ द्वारा ‘द वर्ल्ड एट वॉर : द मिडिल ईस्ट इम्ब्रोग्लियो’ विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। ब्रिगेडियर सराओ भारत के सैन्य और रणनीतिक मामलों के बड़े जानकार हैं। विशेष व्याख्यान डीडीएनएसएस अध्यक्ष डॉ. जसकरण बड़ैच के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया।
अपने व्याख्यान में ब्रिगेडियर सराओ ने मुख्य रूप से इस्राइल-हमास के बीच चल रहे संघर्ष और मध्य पूर्व पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। इसने फलस्तीन क्षेत्र के प्राचीन इतिहास में संघर्ष की उत्पत्ति के बारे में बताया। यह इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्मों का जन्मस्थान है। इस क्षेत्र में इन धर्मों के बीच झड़पों का एक लंबा इतिहास रहा है। 19वीं और 20वीं शताब्दी में, यूरोप में विशेषकर नाजी जर्मनी में यहूदियों के दमन के कारण यहूदियों का फलस्तीन में प्रवास हुआ। यहूदियों की बढ़ती आबादी और बढ़ते फ़लस्तीनी अरब राष्ट्रवाद के कारण फ़लस्तीनी समाज में झड़पें हुईं। फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति और उनकी असामयिक वापसी के परिणामस्वरूप गृह युद्ध हुआ। 1947 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 181 ने फलस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित कर दिया जबकि यरूशलम अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रहा। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव ने फलस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित कर दिया, साथ ही यरूशलम को अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में ले लिया।
ब्रिगेडियर सराओ ने 1948, 1967 और 1973 के अरब-इस्राइल युद्धों और चल रहे संघर्ष को आकार देने में उनकी भूमिका पर चर्चा की। उनका विचार था कि इस्राइल-ईरान युद्ध की स्थिति में किसी भी पक्ष की पूर्ण जीत संभव नहीं है। इस्राइल ईरान में परमाणु ठिकानों और तेल सुविधाओं जैसे लक्ष्यों को निशाना बना सकता है जबकि ईरान इस्राइल में सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाएगा। उन्होंने दुनिया पर ऐसे युद्ध के संभावित प्रभाव पर भी चर्चा की। युद्ध लंबे समय तक चलेगा और इस क्षेत्र से गुजरने वाले ऊर्जा और व्यापार मार्गों के लिए सीधा खतरा पैदा करेगा। इसका दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उनका विचार था कि दोनों पक्षों को मेज पर आना चाहिए और अपने मतभेदों पर चर्चा करनी चाहिए, जो इस मानवीय संकट को रोकने का एकमात्र तरीका है। व्याख्यान में उन्होंने भारत-इस्राइल संबंधों पर भी संक्षेप में चर्चा की। इस्राइल के साथ भारत का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है और यह भारत का एक प्रमुख रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्ता भी है।