मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

सूरज रूठे तो रूठा रहे, उत्सव मनाते रहें

06:02 AM Jan 26, 2024 IST
Advertisement

सहीराम

सबसे पहले तो जी, गणतंत्र दिवस की बधाई! चार दिन पहले ही हमारे यहां नए युग का उद्गम हुआ है। तो इसे इस युग का प्रथम गणतंत्र दिवस भी कहा जा सकता है, इसलिए और बधाई। उस दिन रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुयी। उस दिन हमारे राम आ गए। राम आए तो समझो राम राज्य भी आ ही गया। इसलिए और बधाई। जनवरी के महीने में ही हम खिचड़ी खाकर मकर संक्रांति मनाते हैं। बताया जाता है कि सूरज उस दिन उत्तरायण होता है। पता नहीं जी, सूर्य देव के दर्शन तो हो नहीं रहे बहुत दिन से। अब उत्तरायण हुआ या दक्षिणायन, क्या बताएं। हम सर्दी के मारों से न पूछो।
हां, यह जरूर है कि जनवरी के महीने में हम कई दिवस मनाते हैं इसी तरह से। नववर्ष के पहले दिवस से शुरुआत करते हैं उत्सवों की, फिर मकर संक्रांति मनाते हैं, फिर पराक्रम दिवस मनाते हैं, गणतंत्र दिवस मनाते हैं और फिर शहीद दिवस भी मनाते हैं। अब नए युग का उद्गम दिवस भी मनाया करेंगे। जनवरी महीने में सूर्य देवता चाहे हमसे कितने ही रूठे रहें, हम खुद से कतई नहीं रूठते। अपने कई एक उत्सव इसी जनवरी महीने में मनाते हैं। इसका सीधा अर्थ है कि हम सर्दी से नहीं डरते। सिर्फ रजाई में ही नहीं घुसे रहते। सिर्फ अलाव ही तापते नहीं रहते।
वैसे भी हमारे जवान बर्फीली सीमा पर कई-कई डिग्री माइनस टेंपरेचर में देश की रक्षा में सन्नद्ध रहते हैं, तो थोड़ी बहुत सर्दी अगर हम भी सह लें तो क्या आफत आ जाएगी। जब बर्फीली हवाओं के बीच हमारे किसान अपनी फसलों की रक्षा करते हैं, तो थोड़ी बहुत सर्दी हमें भी सह लेनी चाहिए। प्रेमचंद की पूस की रात कहानी याद है। नहीं याद इसलिए दिला रहे हैं कि प्रेमचंद के उस किसान की तरह से कहीं हमारे किसानों की फसलें भी आवारा पशु न चर जाएं। जैसे फूटपरस्त और अलगाववादी ताकतों से देश को बचाने के रास्ते निकाले जा रहे हैं, प्रयास किए जा रहे हैं, वैसे ही किसानों की फसलों को भी आवारा पशुओं से बचाने की कोई राह निकाली जानी चाहिए।
पूस के महीने में सर्दी हमें निढ़ाल कर देने के खूब प्रयास करती है। उसके इस प्रयास को विफल किए बिना न सीमा रक्षा हो सकेगी और न ही किसान की फसलों की। वैसे भी इसी महीने वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक को। अभी-अभी कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न दिया गया है, उनकी सौंवीं जयंती पर। अब इसकी तरह-तरह से व्याख्या होगी। सिर्फ श्रेय की ही छीन-झपट नहीं मचेगी। पिछड़ों के कल्याण की दावेदारी के लिए भी छीन-झपट मचेगी और इस बहाने वोटों की भी छीन झपट मचेगी। चुनाव जो आ रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो कर्तव्य पथ पर देश का पराक्रम देखिए।

Advertisement

Advertisement
Advertisement