मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

जल जैसा हो मन तो निरोगी होगा तन

06:36 AM Oct 07, 2024 IST

रेनू सैनी

Advertisement

जल स्वच्छता एवं निर्मलता का पर्याय। जल यदि निर्मल होता है तो उसमें व्यक्ति दर्पण की भांति अपनी तस्वीर देख सकता है। सोचिए, यदि मन भी इतना ही स्वच्छ एवं निर्मल हो तो क्या हो? व्यक्ति का मन यदि जल-सा शीतल एवं स्वच्छ बन जाए तो उसके अंदर से निर्दयता का लोप हो जाए। अनेक भयंकर बीमारियां व्यक्ति को अपना शिकार इसलिए बनाती हैं क्योंकि उसके मन पर कालिमा के ऐसे गहन धब्बे पड़ जाते हैं जो शरीर को दूषित कर उन्हें बीमारियों में परिवर्तित कर देते हैं। सुप्रसिद्ध लेखक जोस सिल्वा अपनी पुस्तक, ‘यू द हीलर’ में कहते हैं कि, ‘मन मस्तिष्क को चलाता है और मस्तिष्क शरीर को। और इस तरह शरीर आदेश का पालन करता है।’ जल यदि निरंतर प्रवाहित होता रहता है तो खेतों, नदियों, स्रोतों सभी को पोषित करता हुआ चलता है। वहीं जब जल एक जगह रुक जाता है तो कुछ समय बाद उसमें बदबू एवं गंदगी जमा हो जाती है। उस जल में अनेक कीड़े-मकोड़े अपना घर बना लेते हैं। इस तरह जल का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, कुछ समय बाद वहां पर कीचड़ एवं गंदगी जमा हो जाती है। जो स्वच्छ नहीं है वह जल नहीं है।
जब हमारे मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, द्वेष या बदले की भावना के बीज अंकुरित होने लगते हैं तो ऐसे व्यक्तियों के प्रति हमारा मन ठहर जाता है। ऐसे में मन के कोने में गांठें बनने लगती हैं। यही गांठें उम्र और समय के साथ-साथ बड़ी और हानिकारक बन जाती हैं। जल जब ठहर जाता है तो वहां वह अपने स्वरूप में नहीं रहता। कुछ समय बाद वहां गंदगी और कीचड़ उत्पन्न हो जाती है। लेकिन मन, वह नहीं बदलता। अनेक गांठें एवं दुर्भावनाएं मन में इकट्ठी होती रहती हैं, लेकिन मन मन ही रहता है। हां, इतना अवश्य होता है कि उस मन की दुर्भावनाओं में एक दिन विस्फोट होता है और व्यक्ति या तो गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाता है अथवा इस दुनिया से ही चल बसता है।
अगर हमें अपने मन को जल बनाना है तो उसमंे निरंतर प्रवाहित होना होगा। मन में दुर्भावनाओं, लोभ और ईर्ष्या का जाल एकत्रित नहीं होने देना है। जब व्यक्ति इस सीख से जल की तरह प्रवाहित होना सीख जाता है तो वह इतिहास रच देता है।
चार्लोट चोपिन 101 वर्ष की हैं। वे कहती हैं कि प्रारंभ में वह घर के कामों में व्यस्त रही। जब वे पचास वर्ष की हो गईं तो एक दिन वे पानी पीते हुए जल के बारे में सोचने लगीं। वे स्वयं से बोलीं, ‘जल कितना स्वच्छ है। यह सदैव ऐसा ही रहता है। मेरा शरीर अब पहले जैसा नहीं रहा।’ फिर अचानक उन्होंने अपने हृदय पर हाथ रखा। इसके बाद एकाएक जैसे उनमें स्फूर्ति का संचार हुआ। उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपने मन को जल जैसा लचीला और शुद्ध बनाएंगी। इसके लिए उन्होंने योग करना प्रारंभ कर दिया। पहले तो लोगांे ने उनका मज़ाक बनाया। अक्सर लोग उन्हें योग करते हुए देख कर कहते थे, ‘बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम।’ मगर चार्लोट अपने मन की सुनती रहीं। वे मन की धारा के अनुसार बहती रहीं। आखिर एक दिन ऐसा भी आया जब वे न केवल योग में पारंगत हो गईं, अपितु उन्होंने लोगों को योेग का प्रशिक्षण भी देना आरंभ कर दिया। कुछ ही दिनों में उनकी ख्याति पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में फैल गई। प्रधानमंत्री मोदी ने भी ‘मन की बात’ नामक कार्यक्रम में चार्लोट चोपिन की प्रशंसा की। वे फ्रेंच टीवी शो, ‘फ्रांस गॉट इनक्रेडिबल टैलेंट’ में भी नज़र आ चुकी हैं। आज योेग की दुनिया में उनका अपना एक विशिष्ट स्थान है। चार्लोट कहती हैं कि यदि हर व्यक्ति अपने मन की आवाज़ सुन ले, मन को प्रवाहित करता रहे तो वह अनेक बीमारियों एवं मुसीबतों से बच सकता है।
मियामोतो मुसाशी इतिहास के सबसे अधिक विख्यात रोनिन हैं। वे मानविकी और तलवार दोनों में ही निपुणता रखते थे। वे इसी अवधारणा पर बल देते थे कि, ‘अपने मन को जल में बदलें।’ उनका कहना था कि व्यक्ति का मन, भाव, विचार तथा कठिन परिस्थितियों के बीच प्रतिक्रिया देने का तरीका सब कुछ जल की तरह होना चाहिए।
व्यक्ति को उस जल की तरह होना चाहिए जो दरारों के बीच भी अपनी जगह बना लेता है। इसलिए व्यक्ति को अड़ियल प्रवृत्ति का नहीं होना चाहिए। उसे हर वस्तु एवं व्यक्ति के प्रति अनुकूल बनना आना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति समस्याओं के पार जाने या आसपास से निकलने का मार्ग सरलता से खोज लेता है। यदि भीतर जड़ता नहीं होती तो बाहरी चीजें और रुकावटें स्वयं ही ओझल हो जाती हैं। जब व्यक्ति का मन जल जैसा हो जाता है तो वह चिंताग्रस्त नहीं होता। आकुलता-व्याकुलता उसे परेशान नहीं करती। वह शांत भाव से सब का सामना कर उनसे पार पा लेता है और अपनी मंजिल के बिंदु पर पहुंच जाता है।
समायोजन ही सफलता का मूल तत्व है। इसलिए यदि व्यक्ति का मन जल की भांति हो जाता है तो वह उसे गतिहीन होने के बजाय, निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। एक बार अपने मन को जल में बदलकर देखें तो सही, कुछ ही समय में आने वाले सकारात्मक परिवर्तन आपके जीवन को खुशियों और समृद्धि में बदल देंगे।

Advertisement
Advertisement