वारंटी में है तो बदलनी होगी खराब बैटरी
श्रीगोपाल नारसन
आजकल देश में इलेक्ट्रिक स्कूटरों, कारों व बसों की बहुत मांग है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें महंगी होने के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या सड़कों पर बढ़ गई है। कम खर्च और प्रदूषण मुक्त होने के चलते इलेक्ट्रिक वाहन लोग खरीद रहे हैं। इसमें पेट्रोल का खर्च नहीं लगता और चार्ज करने का खर्च भी बहुत कम होता है। इलेक्ट्रिक वाहन में सबसे बड़ा खर्च उसकी बैटरी का होता है। इन वाहनों में सबसे महंगा पार्ट उसकी बैटरी होती है। स्कूटर या कार की बैटरी ख़राब हो जाए तो उसे बदलवाना महंगा होता है। स्कूटर या कार की बैटरी का खराब होना एक सामान्य प्रक्रिया है, समय के साथ बैटरी में चार्ज या एनर्जी को स्टोर करने की क्षमता कम होने लगती है। जिससे बैटरी का बैकअप कम हो जाता है। तब एक समय ऐसा भी आता है जब इलेक्ट्रिक स्कूटर या कार की क्षमता बहुत कम हो जाती है और कंपनी द्वारा क्लेम की गई क्षमता से फर्क दिखने लगता है। बैटरी डिग्रेडेशन की वजह से वाहन स्वामी को भारी-भरकम खर्च उठाना पड़ता है।
कार बैटरी पर 7-8 साल वारंटी
एक सामान्य इलेक्ट्रिक स्कूटर की बैटरी लगभग 5 साल तक व कार की बैटरी 8 से 10 साल तक चल सकती है। इस दौरान बैटरी पूरी तरह खराब नहीं होगी, बल्कि उसकी क्षमता कम हो जाती है। ज्यादातर कंपनियां इलेक्ट्रिक कार की बैटरी पर 7-8 साल की वारंटी देती हैं। किसी भी कंपनी के मुताबिक यह अवधि कम या ज्यादा भी हो सकती है। इलेक्ट्रिक कारों में आमतौर पर लंबी चलने वाली बैटरी दी जाती है ताकि रजिस्ट्रेशन ख़त्म होने तक कार स्वामी को बैटरी बदलवाने की जरूरत न पड़े। इलेक्ट्रिक कार की बैटरी की कीमत कार की कुल कीमत का 60 से 65 प्रतिशत हो सकती है। यानी अगर इलेक्ट्रिक कार की कीमत 10 लाख रुपये है तो उसकी बैटरी की कीमत 6 लाख रुपये के आस-पास होगी।
वारंटी से पूर्व खराब हुई बैटरी का केस
यदि बैटरी निर्धारित वारंटी अवधि से पहले खराब हो जाए तो उसे बदलकर देने की जिम्मेदारी निर्माता कंपनी की होगी। ऐसी ही एक बैटरी चार साल की वारंटी के बावजूद केवल चार माह में खराब हो गई और शिकायत करने पर भी उसे ठीक नहीं किया गया ,जिसपर कंपनी को उपभोक्ता को उसका बैटरी का पैसा लौटाना पड़ा। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नोएडा ने विक्रेता फर्म को बैटरी के एवज में 12 हजार रुपये ब्याज समेत तीस दिन में अदा करने का आदेश दिया। नोएडा के गांव गेझा निवासी वीरेंद्र सिंह ने एक कंपनी की एक बैटरी 12 हजार रुपये में खरीदी थी और वारंटी चार साल थी। चार माह के बाद ही बैटरी ने काम करना बंद कर दिया। उपभोक्ता ने इसकी शिकायत विक्रेता से की तो दुकानदार ने जांच करके बताया कि कोई कमी नहीं है। फिर 10 अगस्त सन 2020 को फिर से शिकायत की, लेकिन दुकानदार ने उसे ठीक किए बिना ही वापस कर दिया।
उपभोक्ता अदालत की कार्रवाई
बैटरी के खराब होने और बैकअप नहीं देने से उपभोक्ता को परेशानी हुई। इसके बाद उपभोक्ता ने 23 दिसंबर 2021 को कंपनी और दुकानदार को नोटिस भेजा। बैटरी बदलने या पैसा लौटाने की मांग रखी, लेकिन दुकानदार ने न पैसे वापस दिए और न ही बैटरी बदलकर दी। जिसपर उपभोक्ता ने उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाकर न्याय प्राप्त किया। इसी तरह वारंटी अवधि में मोबाइल की खराब बैटरी नहीं बदलने पर मोबाइल विक्रेता, सर्विसिंग सेंटर व निर्माता कंपनी को बतौर हर्जाना 4 हजार रुपए का भुगतान करने का फैसला सुनाया गया। इसके अलावा बैटरी की कीमत व वाद व्यय अलग से अदा करने के भी निर्देश उपभोक्ता अदालत द्वारा दिए गए।
मोबाइल बैटरी न बदलने पर हर्जाना
गीतांजलि विहार नेहरू नगर निवासी सरिता तिवारी ने 11 नवंबर, 2015 को प्रताप टॉकीज चौक स्थित एक विक्रेता से 6200 रुपए में मोबाइल खरीदा था। मोबाइल में 1 वर्ष का वारंटी दी गई। कुछ दिन बाद ही बैटरी में समस्या आने पर विक्रेता से शिकायत की गई। विक्रेता ने कंपनी के अधिकृत सर्विस सेंटर के पास भेजा। 10 मई, 2016 को उन्होंने बासु मोबाइल रिपेयर्स को दिखाया। कार्य अवधि समय होने पर उपभोक्ता को दूसरे दिन बुलाया गया। दूसरे दिन जाने पर वारंटी अवधि समाप्त होने की बात कहते हुए खराब बैटरी नहीं बदली गई। इसके कारण उन्हें 450 रुपए में नई बैटरी खरीदनी पड़ी। उन्होंने विक्रेता, सर्विस सेंटर व निर्माता कंपनी को पक्षकार बनाते हुए क्षतिपूर्ति दिलाने को जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद पेश किया। आयोग के अध्यक्ष अशोक कुमार पाठक, सदस्य प्रमोद वर्मा व रीता बरसैया ने सेवा में कमी मानते हुए विक्रेता, सर्विस सेंटर व मोबाइल निर्माता कंपनी को संयुक्त रूप से या अलग-अलग 1 माह के अंदर बैटरी की कीमत 450 रुपए लौटाने, 4000 रुपए मानसिक क्षतिपूर्ति तथा 1000 रुपए वाद व्यय देने का आदेश दिया।
- लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।