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चाहिए मदद तो ‘जेपी’ को आना होगा बीरेंद्र के ‘दर’

11:24 AM May 08, 2024 IST
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जसमेर मलिक/ हप्र
जींद, 7 मई
पूर्व केंद्रीय मंत्री और बांगर के ‘चौधरी’ यानी बीरेंद्र सिंह के साथ चुनाव में तालमेल बैठाना हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश ‘जेपी’ के लिए आसान नहीं होगा। हिसार संसदीय सीट के अहम और बड़े उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में बीरेंद्र सिंह की मदद के बिना जेपी की नैया पार नहीं हो सकेगी। ऐसे में अगर जेपी को इस हलके में अपनी जीत सुनिश्चित करनी है तो उन्हें बीरेंद्र सिंह के ‘दर’ पर आना होगा। हिसार से भाजपा के सिटिंग सांसद होते हुए पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए बृजेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिलने के बाद से ही उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह नाराज़ चल रहे हैं। बेशक, वे कांग्रेस के फैसले के साथ हैं लेकिन चुनाव प्रचार से उन्हें खुद को दूर किया हुआ है। इस बीच, बीरेंद्र सिंह ने गेंद जयप्रकाश के पाले में यह कह कर डाल दी कि जेपी उचाना में उनके समर्थकों की बैठक में आकर समर्थन मांगें। अब यह जयप्रकाश पर है कि बांगर और खासकर उचाना के बड़े नेता बीरेंद्र सिंह और उनके कार्यकर्ताओं का समर्थन मांगते हैं, या नहीं। यह जरूर है कि जयप्रकाश के लिए उचाना में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बीरेंद्र सिंह और उनके समर्थकों का समर्थन बेहद जरूरी है। बीरेंद्र सिंह और हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश के बीच के राजनीतिक संबंध कभी बहुत खट्टे तो कभी बहुत मीठे भी रहे हैं। दोनों के बीच 1989 के लोकसभा चुनाव में हिसार से ही आमने-सामने का मुकाबला हुआ था।
बीरेंद्र वीरेंद्र सिंह ने 1984 के लोकसभा चुनाव में हिसार से दलित मजदूर किसान पार्टी के प्रत्याशी और जयप्रकाश के राजनीतिक गुरु ओमप्रकाश चौटाला को मात दी थी। 1989 में चौ़ देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला ने हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी बीरेंद्र सिंह के मुकाबले जेपी को चुनावी दंगल में उतारा था। जेपी ने इस चुनाव में कांग्रेस के बीरेंद्र सिंह को पराजित कर उनके हाथों अपने राजनीतिक गुरु ओमप्रकाश चौटाला की हार का बदला लिया था।
1989 के लोकसभा चुनाव में जयप्रकाश और बीरेंद्र सिंह समर्थकों के बीच हिसार से लेकर जींद तक कई जगह बड़े खूनी टकराव हुए थे। कई साल तक दोनों के आपसी संबंधों में भारी कड़वाहट इसी कारण रही। यह कड़वाहट उस समय कम हुई, जब जेपी जनता दल और हरियाणा विकास पार्टी से होते हुए कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। यह दौर 1999 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ था।
फरवरी 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में जयप्रकाश को हिसार के बरवाला से कांग्रेस टिकट मिली थी और तब उन्हें बीरेंद्र सिंह का पूरा समर्थन मिला था। 2005 तक बीरेंद्र सिंह और जयप्रकाश के बीच आपसी संबंध काफी मधुर रहे।

2005 में रिश्तों में पड़ी दरार

बीरेंद्र सिंह

बीरेंद्र सिंह और जेपी के राजनीतिक संबंधों में साल 2005 के विधानसभा चुनावों के बाद खटास आई। तब कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद बीरेंद्र सिंह सीएम पद के दावेदार थे। उनका मुकाबला भूपेंद्र सिंह हुड्डा से था। इस लड़ाई में जेपी के छोटे भाई रणधीर सिंह बरवाला से कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीते थे और रणधीर सिंह ने भूपेंद्र हुड्डा का साथ दिया था। माना जा रहा है कि इसी वजह से बीरेंद्र सिंह और जयप्रकाश के रिश्तों में दरार पड़ी। तब से अब तक दोनों के बीच राजनीतिक संबंध काफी खराब चले आ रहे हैं। बाकी कसर चुनाव की घोषणा के बाद चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह और जेपी के बीच टिकट को लेकर हुई लड़ाई ने पूरी कर दी। इसमें पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा से अपनी राजनीतिक घनिष्ठता के बल पर और हिसार में लोकसभा चुनाव में अपने शानदार ट्रैक रिकॉर्ड के दम पर जेपी टिकट की बाजी मार ले गए।

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‘खुद आकर मांगना होगा समर्थन’

जय प्रकाश

बीरेंद्र सिंह ने अपने पैतक गांव डूमरखां कलां में उचाना हलके के अपने समर्थकों की बैठक में समर्थकों से पूछा था कि वे जयप्रकाश का नामांकन-पत्र दाखिल करवाने के लिए जाएं या नहीं। इस पर समर्थकों ने बीरेंद्र सिंह से कहा कि उन्हें जेपी का नामांकन दाखिल करवाने नहीं जाना चाहिए। समर्थकों ने कहा कि पहले जयप्रकाश बीरेंद्र सिंह और उनके समर्थकों से आकर समर्थन मांगें। इसके बाद जेपी का समर्थन किया जाएगा। चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि चुनाव में प्रत्याशी का फर्ज बनता है कि वह आकर पार्टी के बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं से समर्थन मांगे। जेपी को उचाना के उनके हजारों समर्थकों के बीच जाकर उचाना में समर्थन मांगना होगा। उसके बाद उन्हें समर्थन दिया जाएगा।

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