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जे आई पतझड़ तां फेर की है तूं अगली रुत विच यकीन रक्खीं

07:14 AM May 12, 2024 IST
जे आई पतझड़ तां फेर की है तूं अगली रुत विच यकीन रक्खीं
14 जनवरी 1945 11 मई 2024
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ओम प्रकाश गासो

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सुरजीत पातर साहब की ब्रह्ममई-विद्वता पंजाबीयत के लिए एक प्राप्ति की तरह थी। पातर साहब जीवन धारा से पैदा हुआ एक पाठ थे। पातर साहब को पंजाब कहा जा सकता है। वे तो जिंदगी के संगीत की सरगम थे। वे हमारे समय के शिरोमणि स्वरूप का प्रकाश थे। वे अपनी वाणी और प्रकाश से पंजाब व पूरे देश को प्रकाशित, आलोकित कर रहे थे। मेरा उनके साथ बहुत प्रेम व स्नेह था, वो भी मुझे दैवीय आत्मा और पंजाबीयत की जीती-जागती तस्वीर कहा करते थे। अभी कल 10 मई को तो पंजाबी साहित्य सभा बरनाला (पंजाब) के एक साहित्यिक कार्यक्रम में हम इकट्ठे थे। मैने मंच से उनकी कविता की तारीफ भी की थी। हमें क्या पता था कि हमारे समय का इतना प्यारा शायर इतनी जल्दी हमसे विदा ले लेगा।
सुरजीत पातर का जन्म 14 जनवरी 1945 को हरभजन सिंह और हरबख्श कौर के घर गांव पत्तड कलां (पंजाब) में हुआ था। वे बचपन में गुरु घर व हाई स्कूल में कविताएं पढ़ने लगे थे। पुस्तकें पढ़ने का उन्हें बहुत शौक था। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से स्वर्ण पदक के साथ एमए पंजाबी की। पंजाबी विश्वविद्यालय में रहते हुए पंजाबी साहित्य व विश्व साहित्य का खूब अध्ययन किया।
पातर साहब की कविता आकाश जैसी विशाल है। उन्हें आसमानी रंग बहुत पसंद था, शायद इसीलिए कपड़े भी आसमानी रंग के ही पहनते थे। पातर साहब दोनों हाथ खोलकर बात करते थे, जैसे उन जादुई हाथों में आसमान में घुमड़ते बादलों और अठखेलियां करती पवन से अपनी कविताएं, गजलें पकड़ते हों।
पातर साहब ने पंजाबी साहित्य को बहुमूल्य रचनाएं भेंट की हैं। उनके काव्य संग्रह ‘हवा विच लिखे हरफ’, ‘बिरख अरज़ करे’, ‘हनेरे विच सुलगदी वरणमाला’, ‘लफज़ां दी दरगाह’, ‘पतझड़ दी पाजेब’, ‘सुरज़मीन’ बहुत प्रसिद्ध हुए। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध नाटकों का पंजाबी भाषा में रूपांतरण भी किया और गद्य में लिखा, जिसमें ‘सदी दीयां तरकालां’, ‘अग्ग दे कलीरे’, ‘सईयो नी मैं अंतहीन तरकालां’, ‘शहर मेरे दी पागल औरत’, ‘हुक्मी दी हवेली’, ‘सूरज मंदर दीआं पौड़ियां’ उल्लेखनीय हैं। पंजाब सरकार के सांस्कृतिक विभाग द्वारा श्री गुरु नानक देव जी पर विशेष रूप से तैयार करवाई गई बड़े आकार की पुस्तक तो सौंदर्य की दृष्टि से भी ध्यान खींचती है। पातर साहब ने दूरदर्शन के लिए भी महत्वपूर्ण सीरियल किये, जिनमें ‘सूरज दा सिरनावां’, ‘सुखन जिन्हां दे पल्ले’, ‘गुरु मान्यो ग्रंथ’ के नाम लिये जा सकते हैं।
सुरजीत पातर आधुनिक पंजाबी साहित्य के एक प्रतिनिधि शायर थे। उन्होंने पंजाब के लोगों के दुख-दर्द को बहुत ही मार्मिक ढंग से पेश किया। उनकी शायरी में मानवता की भलाई के लिए एक तड़प थी, तमन्ना थी और वे इसे पूरी तन्मयता से पेश करते थे-
‘ऐना ही बहुत है कि मेरे खून ने रुख सिंजया की होया जे पत्तेयां ते मेरा नाम नहीं है।’
पातर जितना पंजाबी भाषा में लोकप्रिय थे, उतना ही दूसरी भाषाओं में भी प्रख्यात थे।
लुधियाना में शनिवार को प्रख्यात कवि सुरजीत पातर के निधन पर उनके घर पर शाेकाकुल रिश्तेदार तथा मित्र। -हिमांशु महाजन

लुधियाना में शनिवार को प्रख्यात कवि सुरजीत पातर के निधन पर उनके घर पर शाेकाकुल रिश्तेदार तथा मित्र। -हिमांशु महाजन

उन्होंने विश्व में कई अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में पंजाबी भाषा की प्रतिनिधित्व किया। शिव कुमार बटालवी के बाद साहित्यिक क्षेत्र में मंचीय शायर के तौर पर वे बहुत ही मकबूल शायर थे। वे अपनी रचनाओं को बहुत ही सुरीले ढंग से कहते थे, इसीलिए दर्शक उनकी कविता के दीवाने हो जाते थे। संयुक्त पंजाबी संस्कृति को आतंकवाद के दौर के दौरान जिस तरह से नुकसान पहुंचाने का प्रयास हुआ, उसके खिलाफ पातर का ऐतिहासिक गीत ‘नजर’ बहुत ही प्रामाणिक व संवेदनात्मक कहा जा सकता है। उन्होंने लिखा-
‘लग्गी नज़र पंजाब नू ऐहदी नजर उतारो, लै के मिर्चां कौड़ियां ऐहदे सिर तों वारो।’
सुरजीत पातर को हम संवेदना, सुंदरता, सत्य व साहस का शायर भी कह सकते हैं। वे इंसाफ व अधिकारों की प्राप्ति के रास्ते पर चलने वाले शायर थे। उन्होंने लिखा-
‘पंछियां नूं उड़ान देंदा हां लो मैं अपना बयान देंदा हां, तपदे लोकां दे सिर करो छावां बिरख हां ऐही बयान देंदा हां।’ संघर्षशील व प्रगतिशील शक्तियों का साथ देना वे अपना धर्म समझते थे। इस रास्ते पर चलते हुए वह लोगों के जीवन को खुशियों से भर देना चाहता था। मुझे लगता है मेरा छोटा भाई पातर इस पूरी दुनिया को सुखों की खुशबू से भरने के लिए किसी दूसरे लोक में खुशबू भरे फूलों को ढूंढने निकल गया है-
जे आई पतझड़ तां फेर की है तूं अगली रुत विच यकीन रक्खीं मैं लभ के कितयों लिओनां कलमां तू फुल्लां जोगी जमीन रक्खीं।
पातर साहब का जाना दुखदाई है, परंतु उनकी कविताओं की रोशनी मानवता को रास्ता दिखाती रहेगी। आने वाले शायर उनकी कविताओं से प्रेरणा लेकर साहित्य और समाज की सेवा में लीन होंगे। मैं पातर साहब और उनके साहित्य के आगे शीश झुकाकर नमन करता हूं।

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सुबह उठे ही नहीं...

लुधियाना (निस) : प्रख्यात पंजाबी कवि एवं लेखक सुरजीत सिंह पातर का शनिवार सुबह निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। उनके परिजनों ने बताया कि सुबह करीब साढ़े छह बजे उनकी पत्नी भूपिंदर कौर ने उन्हें जगाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, जिसके बाद चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पातर के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं, जिनमें से एक ऑस्ट्रेलिया में रहता है। पातर के करीबी सहयोगी गुरभजन गिल ने कहा कि पातर के बेटे के ऑस्ट्रेलिया से आने के बाद सोमवार को उनका अंतिम संस्कार किया जा सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित कई नेताओं ने पातर के निधन पर दुख व्यक्त किया और कहा कि यह पंजाबी साहित्यिक क्षेत्र के लिए एक बड़ी क्षति है। पातर को 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष भी थे। वह साहित्य अकादमी पुरस्कार, पंचनद पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और कुसुमाग्रज साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित थे।

हमने एक महान कवि, नवचेतना जाग्रत करने वाली एक ऐसी शख्सियत को खो दिया है जिनकी रचनात्मकता पंजाब के इतिहास, लोकाचार और संस्कृति में निहित रही। वह आखिर तक, तेजी से बदलती पंजाबी चेतना की आवाज और हमारे देश के राजनीतिक माहौल में बदलाव पर एक असाधारण व्यावहारिक टिप्पणीकार बने रहे। उनके काम को दशकों तक पढ़ा और याद किया जाएगा।
- एनएन वोहरा,
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल

शायर सुरजीत पातर के निधन से पंजाबी साहित्य के साथ-साथ पूरे समाज को बहुत बड़ी क्षति हुई है। सुरजीत पातर ने अपनी शायरी में समाज में आ रहे बदलावों और कठिनाइयों व पीड़ाओं की सटीक तस्वीर उकेरी। साहित्यिक योगदान के साथ-साथ उन्होंने बौद्धिक रूप से भी पंजाब का नेतृत्व किया। उनके साहित्यिक एवं सामाजिक योगदान को सदैव याद किया जाएगा।
- गुरबचन जगत
मणिपुर के पूर्व राज्यपाल

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