ज्ञान के यथार्थ से पहचान
एक दिन संत तुकाराम अपने शिष्यों से कह रहे थे कि यथार्थ ज्ञान के अभाव में इंसान आध्यात्मिकता को नहीं पहचान पाता। शिष्यों को इस बात का ज्ञान कराने के लिए वे एक दिन रास्ते में ध्यानमग्न हो गये। तभी उन पर एक चोर की निगाह गयी। उसने सोचा कि यह भी कोई चोर है, जो रात्रि में चोरी करने के बाद यहां विश्राम कर रहा है। यदि कोतवाल की इस पर नजर पड़ गयी तो बेचारा पकड़ा जायेगा। कुछ समय बाद उन पर एक शराबी की नजर पड़ी। वह सोचने लगा कि अधिक शराब पी लेने के कारण बेसुध पड़ा है। इसके बाद उन पर एक महात्मा जी की नजर पड़ी। महात्मा जी सोचने लगे शायद यह कोई संत है जो समाधिस्थ है। यही सोचकर महात्मा जी उनकी सेवा में जुट गये। तुकाराम ने अपनी समाधि तोड़ते हुए शिष्यों से कहा, ‘देखा तुमने, अज्ञानतावश चोर ने मुझे चोर समझ लिया। शराबी ने शराबी समझ लिया, लेकिन संस्कारयुक्त होने के कारण महात्मा जी ने मुझे सही पहचान लिया।’
प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प