25 साल सलाखों में जवानी गंवा दी नाबालिग साबित करते-करते
सत्य प्रकाश/ ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 8 जनवरी
हत्या के एक मामले में 25 साल जेल में बिताने के बाद, उत्तराखंड के एक व्यक्ति को आखिरकार बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला, जिसने पाया कि 1994 में अपराध के समय वह नाबालिग था। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने ओम प्रकाश को रिहा करते हुए कहा कि दस्तावेजों की अनदेखी करके हर स्तर पर अदालतों द्वारा अन्याय किया गया। अदालत ने कहा कि यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता नहीं है, तो अपीलकर्ता को तुरंत रिहा किया जाएगा।
दिलचस्प बात यह है कि ओम प्रकाश को मुकदमे के दूसरे दौर में न्याय मिला है। पहले दौर में, उसे ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई थी, उसके नाबालिग होने की दलील को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसका बैंक खाता है। हाईकोर्ट ने आदेश को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी अपील, समीक्षा याचिका और सुधारात्मक याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि, दया याचिका पर राष्ट्रपति ने 2012 में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया, इस शर्त के साथ कि 60 वर्ष की उम्र तक उसे रिहा नहीं किया जाएगा।
ओम प्रकाश ने उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्होंने अपना ‘ऑसिफिकेशन’ टेस्ट करवाया, जिसके बाद उसे एक मेडिकल सर्टिफिकेट मिला कि अपराध के समय उसकी उम्र 14 वर्ष थी। उसने आरटीआई अधिनियम के तहत यह जानकारी भी प्राप्त की कि नाबालिग के लिए बैंक खाता खोलना जायज है। इन दस्तावेजों के आधार पर, उसने 2019 में फिर से उत्तराखंड हाईकोर्ट का रुख किया और राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका खारिज करने के फैसले को चुनौती दी। हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए कहा, ‘हम केवल इतना ही कहेंगे कि यह ऐसा मामला है, जिसमें अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गयी गलती के कारण पीड़ित है। हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य है, कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है। उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया। उसने जो समय खोया है, वह कभी वापस नहीं आ सकता।’ उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम संबंधित (किशोर न्याय) अधिनियम के तहत निर्धारित ऊपरी सीमा से अधिक की सजा को रद्द करने के लिए इच्छुक हैं।’ पीठ ने स्पष्ट किया कि यह राष्ट्रपति के आदेश की समीक्षा नहीं, बल्कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों का लाभ एक योग्य व्यक्ति को देने का मामला है।
पीठ ने इस तथ्य की सराहना की कि अशिक्षित होने के बावजूद ओम प्रकाश निचली अदालत से लेकर शीर्ष अदालत तक नाबालिग होने के अपने तर्क पर कायम रहे। अदालत ने कहा, ‘अपीलकर्ता लगभग 25 वर्षों तक कारावास में रहा है, इस दौरान समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जिसके बारे में उसे जानकारी नहीं है और सामंजस्य बिठाना उसके लिए कठिन हो सकता है।’ अदालत ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को किसी योजना के तहत उसके पुनर्वास में सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया।