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‘रिश्तों को सहेजने-संवारने में मैंने गुजारी उमर है’

10:41 AM Nov 11, 2024 IST
‘रिश्तों को सहेजने संवारने में मैंने गुजारी उमर है’
कैथल में रविवार को कवि गोष्ठी में उपस्थित रचनाकार।-हप्र
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कैथल, 10 नवंबर (हप्र)
साहित्य सभा कैथल की नवंबर मास की काव्य-गोष्ठी आरकेएसडी कालेज में संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्य सभा के प्रधान प्रो. अमृत लाल मदान ने की और संचालन रिसाल जागड़ा ने किया। गोष्ठी में अनिल गर्ग ने कहा, जो पहले घटती हैं वो घटनायें आज भी घट रहीं हैं, फर्क इतना सा है कि प्लेटें पहले टैंट वालों की घटती थीं, अब मरीजों की घट रहीं हैं।
सतपाल आनन्द ने कहा, मन्नै वोहे हरियाणा चाहिये सब रंग ढाल पुराणा चाहिये। दिनेश बंसल दानिश की गजल का शेर देखिये, कदम मुझसे बगावत कर रहे हैं, कभी सोचा नहीं था वापसी का। रामफल गौड़ कहते हैं, जीवैं सैं वे सुंदक-सुंदक कै जिनके होज्यां बालक बागी। ईश्वर चंद गर्ग की गजल का यह शेर देखिये, थिरक रहे कंगूरे सब कांप रहे नींव-पत्थर। डॉ. तेजिंद्र ने कहा, हिंदू भी अच्छा है, मुस्लिम भी अच्छा है, फिर यह आग लगाने वाला कौन है।
कवि भोला राम ने यूं कहा, छोड़ चिंता मरने की ऐसे नहीं कोई मर पायेगा। रवींद्र रवि ने कहा, हर मौसम की अपनी हैं दुश्वारियां बहुत, हमने भी कर रखी हैं तैयारियां बहुत। मेहरु शर्मा प्यासा ने कहा, जिंदगी की कोई पेश चली ना, या सबकै आग्गै रोई लोगो। नीरु मेहता ने कहा, तुझ में और मुझ में है भेद यही, मैं नारी हूं तू नर है, रिश्तों को सहेजने-संवारने में मैंने गुजारी उमर है।
रोहित शर्मा ने सर्दी के आगमन पर संस्कृत में कविता पढ़ी। डॉ. विकास आनन्द ने कहा, मुद्दत से सूखा है आंगन बरसी नहीं घटा घनघोर। रिसाल जांगड़ा की गजल के बोल देखिए, शख़्स दुनिया का भला जो कर गया है, यश उसका ही बुलंदी पर गया है। डॉ. चतरभुज बंसल सौथा ने कहा, मां मन्नै छोड़ कै बग्गी, करगी कौणसे लोक चढ़ाई री।
डॉ. अशोक ने कहा, क्या इरादे हैं मेरे ऐ जिंदगी वक़्त ही बतलायेगा ऐ जिंदगी। कमलेश शर्मा ने कहा, आज का आदमी ऐसी सुरंग से गुजऱ रहा है जिसका दिखता नहीं कोई ओर-छोर। प्रो. एएल मदान ने एक हास्य कविता पढ़ी। गोष्ठी में सुरेश कल्याण, श्याम सुंदर शर्मा गौड, राज बेमिसाल, रजनीश शर्मा, डॉ. प्रीतम लाल शर्मा और डॉ. हरीश चंद्र झंडई ने भी अपनी रचनाओं से उपस्थितजनों को आनन्दित किया।

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