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‘बड़े बुजुर्गां बिना घरां का नाश होवते देख्या सै’

08:31 AM Mar 19, 2024 IST
‘बड़े बुजुर्गां बिना घरां का नाश होवते देख्या सै’
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जींद(जुलाना), 18 मार्च (हप्र)
अक्षर भवन जींद में सोमवार को जनवादी लेखक संघ द्वारा काव्य संगोष्ठी आयोजित की गई।
जिसमें हरियाणवी कवि डा. अंग्रेज सिंह की रागनियों पर विमर्श किया गया। हिंदी कविता के आलोचक डॉक्टर कपिल भारद्वाज ने कहा कि अंग्रेज सिंह की साहित्यिक यात्रा में उनके जीवन संघर्षों के साथ साथ किसान मजदूर कमेरे वर्ग की पीड़ा बेबाकी से झलकती है।
संगोष्ठी में कवि मंगतराम शास्त्री, सुधीर नैन व विक्रम राही ने भी अंग्रेज सिंह की रचनाओं पर टिप्पणियां की।
इस दौरान मंगतराम शास्त्री ने हरियाणवी गजल पढ़ी। जिसमें उन्होंने कहा कि...
‘क्यां नै ढब लावै मोडे - बाब्यां सेत्ती।
तूं यारी कर ले यार किताबां सेत्ती।।’
विक्रम राही ने समाज में बढ़ते बिखराव और परिवारों की टूटन बयां करती रागनी पढ़ी। जिसमें उन्होंने कहा कि..
‘बड़े बुजुर्गां बिना घरां का नाश होवते देख्या सै,।
बिखर्यां पाच्छै घर कुणबा सरेआम रोवते देख्या सै।।’
सुधीर नैन ने जीवन की वैविध्यता पर अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि...
‘कभी हंसना, कभी सिसकना,कभी नृत्य तो कभी रुदन।
हे भगवन! मुझे बता क्या इसी को कहते हैं जीवन।।’
संगोष्ठी के अंत में डॉक्टर कपिल भारद्वाज ने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि...
‘बमों और गोलियों की आवाजों से
अपनी पाण्डुलिपि रंगने वाले,
उस कवि ने मुझे ऐसी नजऱों से देखा,
जैसे बम गिराने वाले ने
मरने वालों को देखा होगा।’

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