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मैं तेरा, तू मेरा मगर उसका क्या होगा

04:00 AM Jul 01, 2025 IST
मैं तेरा  तू मेरा मगर उसका क्या होगा
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डॉ. महेन्द्र अग्रवाल

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मैं तेरा तू मेरा शीर्षक से किसी अपरिचित प्रेम की चिर-परिचित गंध महसूस हो सकती है और ये भी लग सकता है कि यह प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी के मधुर संबंधों के बीच की कोई मीठी मनुहार है जिसे शीर्षक में राधा-कृष्ण के नैनों के गोपनीय संकेतों की तरह छुपाया जा रहा है।
ऐसा हो भी सकता था, मगर ऐसा है नहीं। कारण प्रेम और मधुरता दिनो-दिन मानव जीवन से गायब होती जा रही हैं। भरे पूरे पुराने पिछड़े संयुक्त परिवार से लेकर नव विकसित एकल दाम्पत्य जीवन तक। अनुमानों के विपरीत ये शीर्षक कटुता से जुड़ा है। आपको शायद एक पुराना चुटकुला याद हो कि एक चौराहे पर दो लोग एक-दूसरे के पीछे भाग रहे थे। आगे वाला तो निकल लिया पर पीछे वाले को पकड़ने पर उसने बताया कि हम दोनों कवि हैं। इसने अपनी कविता मुझे सुना दी पर मेरी सुनने के नाम पर भाग रहा है। स्थितियां बदली हैं परिस्थितियां नहीं। सोशल मीडिया का जमाना है। हर किसी की लालसा होती है कि फेसबुक पर बस उसी के चेहरों की किताब बन जाये। मतलब इतने फोटो अपलोड हो जायें कि उसकी महानता में किसी को कोई शक शुबाह न रहे।
बस, इस पवित्र भावना को कर्म के स्तर पर मूर्तरूप देने के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है कि कोई दूसरा बंदा आपके लिए विशेष अवसरों के फोटो खींचकर आपको उपलब्ध करा दे ताकि आप सोशल मीडिया पर दूसरों के साथ अपने मन की कर सकें। बिना उससे पूछे या उसकी परवाह किये। अब इस स्वार्थी युग में किसको किसकी पड़ी है? आप ही बताइये? इसलिए पुरस्कार वितरण, सम्मान समारोह, अतिथि माल्यार्पण आदि में मन मार के विश्वास करते हुए किसी से भी तात्कालिक कामचलाऊ गठबंधन करना पड़ता है कि आप मेरी फोटो खींच लेना मैं आपकी फोटो खींच लूंगा। फिर दोनों समझौते के पालन में व्हाट्सएप कर देंगे और अपने अपने शहर में प्रेस नोट के साथ फोटो जारी कर देंगे ताकि शहर के साधारण लोगों को उनकी असाधारण गतिविधियों का ज्ञान हो सके।
मगर दिक्कत वही है, कवियों वाली। जिसने पहले सुना दी वो दूसरे की क्यों सुने? जो पहले ढाई साल मुख्यमंत्री बन गया वो अब दूसरे को क्यों बनाये? होता यह है कि पहले वाले की फोटो तो खिंच जाती है मगर दूसरा अपनी औक़ात दिखा देता है। मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं, वाली हालत हो जाती है। पूछने पर सामने वाले के पास कई तरह के बहाने होते हैं।
ऐसा क्यों होता है? वो भी सदा दूसरे के साथ। क्या पहले वाला कनिंग होता जा रहा है। कभी कभी पहले वाले के साथ भी धोखा हो जाता है। दूसरा अपनी फोटो पाने के लिए इतना चिंतित रहता है कि उसे फोटो खींचने का होश ही नहीं रहता। वह अपने लिए उद्यमी बना रहता है, पर दूसरे के लिए उद्यम नहीं करता।
सोचिए क्या हम कभी पहले या दूसरे की स्थिति में नहीं होंगे? और ये जो मधुर संवाद है- मैं तेरा, तू मेरा उसका क्या होगा? शायद आने वाली पीढ़ी में इसी तरह चलता रहे तो संबंधों की मिठास ही खत्म हो जाये।

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