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सम्मोहन का सोना मुश्किल पाना-खोना

11:00 AM Dec 24, 2023 IST
सम्मोहन का सोना मुश्किल पाना खोना
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सोने की चमक हर किसी को आकर्षित करती है। कोई पहने या न पहने-सोना सबको चाहिये। कोई व्यक्ति हो या देश- सोना सबकी आर्थिक ताकत-क्षमता दर्शाता है। सोना उम्दा व सुरक्षित निवेश माना जाता है क्योंकि इसकी कीमतें निरंतर बढ़ी ही हैं। हमारा देश बहुत बड़े पैमाने पर स्वर्ण आयात करता है क्योंकि यहां सोना संस्कारों में है। स्टेटस सिंबल भी है। जब कानूनी पाबंदियां व भारी भरकम कर लगे तो भी भारतीयों ने सोना खरीदा। सोने का मोह दीवानगी की हद तक।

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मधुरेन्द्र सिन्हा

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।

सोना हजारों सालों से सभी को ललचाता रहा है। क्या राजा, क्या रंक सभी इसके मोहपाश में उलझे रहे हैं। इसे पाने की खातिर न जाने कितने युद्ध हुए। भारत से सोना लूटकर ले जाने के लिए कई मुस्लिम आक्रांता आये और सैकड़ों मन सोना लूट ले गये। अंग्रेज आये तो उन्होंने भी यही किया। भारत सोने की चिड़िया यूं ही नहीं कहलाता था। यहां की खदानों से बड़े पैमाने पर सोना निकलता था और राजा-रानियों के बदन की शोभा बढ़ाता रहा था। कोलार की विश्वविख्यात खदानों से हजारों मन सोना निकला। जिसे पहले मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने जमकर लूटा।
भारतीय सोने का इस्तेमाल गहने बनाने में करते थे। स्वर्णाभूषण बनाने में उन्हें महारत हासिल रही। सबसे बड़ी बात यह थी कि भारतीय नारियों में सोने के प्रति बला का आकर्षण सदियों से देखने में आता रहा है। इतना ही नहीं, सोना यहां समृद्धि का प्रतीक भी रहा है, जितना धनी परिवार उतना ही ज्यादा सोना। यही कारण रहा कि सोने की मांग यहां हमेशा बनी रही। सोने की मांग बढ़ाने में हमारे स्वर्णकारों का बड़ा हाथ रहा। उन्होंने एक से बढ़कर एक कारीगरी की मिसाल दी और आज भी दे रहे हैं। उनके द्वारा निर्मित स्वर्णाभूषणों की खूबसूरती देखकर हर कोई दीवाना होता है। गरीब से गरीब भारतीय भी छोटा सा गहना बनवाने को लालायित रहता है। लड़कियों की शादी में सोने के गहने देने का रिवाज यहां हमेशा रहा है। जितना समृद्ध पिता, उतने ही गहने देने की परंपरा है। दक्षिण भारत में तो शादियों में सोने के गहने बहुत ज्यादा दिये जाते हैं और यह कई बार समस्याओं का कारण भी बनता है। केरल के विवाहों में आज भी सौ तोले सोना देना आम बात है।
मुश्किल वक्त का गहना
बेटियों के विवाह में सोने के आभूषण देना दरअसल उन्हें भविष्य के उतार-चढ़ाव से निश्चिंत करना है। असल में सोना हमेशा बुरे समय का साथी रहा है। जब कोई संकट आता है तो सोने को बेचकर परिवार उससे छुटकारा पाने की कोशिश करता है। ऐसा नहीं है कि यह बात भारतीयों तक ही सीमित है, सारी दुनिया में इसे माना जाता है और इसलिए दुनिया के सारे देशों के सेंट्रल बैंकों के खजाने में बड़ी मात्रा में सोना हमेशा रखा जाता है। जरूरत के हिसाब से उस स्टॉक को बढ़ाया या घटाया जाता है। यानी ये सेंट्रल बैंक सोना बेचते या खरीदते भी रहते हैं। इनके बेचने और खरीदने से सोने की कीमतों में फर्क भी पड़ जाता है।
आयातक और उपयोगकर्ता देश
सोना इन दिनों महंगा होता जा रहा है। इसकी कई वजहें हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत की खानों में अब सोना नहीं पाया जाता है और हम सोने का इम्पोर्ट बड़े पैमाने पर करते हैं। सोने के गहनों के पाश में बंधे लोगों की वजह से भारत एक समय सोने का सबसे बड़ा आयातक देश था। लेकिन चीन ने कुछ सालों से यह जगह ले ली है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के कारण उसे लगने लगा कि उसके पास भी सोने का बड़ा भंडार हो जिससे उसकी अर्थव्यवस्था का स्थायित्व बना रहे। लेकिन चीनी हमारी तरह सोने के गहने नहीं पहनते। उनकी महिलाएं कुछ हल्के-फुल्के हार अपने गले में डालती हैं और वह अमूमन सोने का नहीं बल्कि किसी रत्न वगैरह का होता है। अमेरिका और यूरोप को अगर देखें तो हम पायेंगे कि वहां भी बहुत कम गहने पहने जाते हैं। ज्यादातर गहने हीरा-पन्ना और बेशकीमती रत्नों के होते हैं। इसलिए वहां सोने का वह क्रेज नहीं है जो हमारे भारत में है। लेकिन अरब देशों में सोने के गहने पहनने का रिवाज काफी समय से रहा है जबकि उनके यहां औरतें बुरका पहनती हैं फिर भी गहने पहनती हैं। कच्चे तेल को बेचकर इन देशों ने बेशुमार पैसा बनाया और सोने की खूब खरीदारी की। सोने के इस्तेमाल में तो वे एक कदम आगे निकल गये और मोटे-मोटे गहनों के अलावा पलंग, टेबल, बाथरूम फिटिंग, कारें वगैरह भी सोने की बनवाने लगे। यानी उनके लिए यह समृद्धि दिखाने का एक माध्यम ही है।
नियंत्रण लगे तो तस्करी

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दुबई स्वर्णाभूषणों का सबसे बड़ा बाज़ार है और वहां दुनिया के कोने-कोने से खरीदार आते हैं। कम दाम और बेहतरीन कारीगरी के लिए वहां के ‘गोल्ड सूक’ सारी दुनिया में जाने जाते हैं। यही कारण है कि यह भारत में सोने की तस्करी का बहुत बड़ा अड्डा रहा है। दशकों से यहां से भारत को सोने की तस्करी की जाती रही है। सोने से लदी नावें जिन्हें धाऊ कहते थे, दुबई से समुद्री रास्ते से निकल कर मुंबई और गुजरात के तट पर पहुंचती थीं जहां भारत के उनके पार्टनर उतार लेते थे। लेकिन भारत में सोने की इतनी बड़े पैमाने पर तस्करी क्यों होती है? इसके कई कारण रहे हैं। पहले तो गोल्ड कंट्रोल एक्ट जिसने सोने के रखने पर एक लिमिट लगा दी थी। तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने देश में 1968 में सोने की खरीद को रोकने के लिए एक कानून बनाया। दरअसल उस समय देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी थी और बड़े पैमाने पर विदेशों से सोने का आयात हो रहा था और इसे रोकने के लिए यह कानून बना। यह कानून बेहद सख्त था और इसके तहत स्वर्णकार भी 100 ग्राम से ज्यादा सोना अपने यहां नहीं रख सकते थे। लाइसेंसधारी सुनारों को दो किलो से ज्यादा सोना रखने की इजाजत नहीं थी। इसका नतीजा यह हुआ कि देश में स्वर्णाभूषणों के कारोबार पर रोक लग गई। लाखों कारीगर बेरोजगार हो गये। लेकिन लोगों का सोने के प्रति मोह इतना था कि वे ब्लैक मार्केट से भी खरीददारी करने से हिचक नहीं रहे थे। देश में बाहर से बड़े पैमाने पर सोने की तस्करी होने लगी। मुंबई महानगरी सोने की तस्करी का केन्द्र बन गया। अंडरवर्ल्ड का जन्म हुआ और करीम लाला जैसे नाम सामने आने लगे। यह खेल कई वर्षों तक चला और फिर बाद की सरकारों को समझ में आने लगा कि इससे देश का बड़ा नुक्सान हुआ। नतीजतन 1990 में इस कानून को खत्म कर दिया गया लेकिन तब तक यह नाकारा भी हो गया था और इसे कोई नहीं मान रहा था।
भारी-भरकम टैक्स
बाद की सरकारों ने सोने की देश में खपत रोकने के लिए कई कदम उठाये जिसमें इस पर टैक्स लगाना भी शामिल था। लेकिन कोई भी कदम कारगर नहीं रहा। सरकारों को टैक्स से काफी प्राप्ति हो रही है इसलिए इन्हें घटाया नहीं गया। आज हालत यह है कि भारत में सोने पर 16 फीसदी से भी ज्यादा टैक्स है। इसमें इम्पोर्ट ड्यूटी, जीएसटी वगैरह हैं। सोने की छड़ों पर सीधे 10 फीसदी इम्पोर्ट ड्यूटी है। और ऐसे में विदेशों से इसकी तस्करी स्वाभाविक है। अब दुबई से भी ज्यादा सोना म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड वगैरह देशों से तस्करी के जरिये आ रहा है। म्यांमार के घने जंगलों से गुजरते रास्ते सोने की तस्करी के मार्ग बन गये हैं। इस धंधे में वहां के छापामार गुटों के अलावा उनके सैनिक भी कई बार शामिल होते हैं। इसके अलावा हवाई जहाजों से भी सोने की तस्करी की जा रही है। बड़े तस्कर अपने कैरियरों के जरिये बाहर से सोना भेजते रहते हैं। हर रोज देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर सोने की जब्ती की खबरें आती रहती हैं। यह चिंताजनक है और इससे हमारी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचती है। इसे रोकना जरूरी है लेकिन इसके लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है।
दुबई कैसे बना सोने का सबसे बड़ा बाज़ार
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में कारोबार के कई नये केन्द्र बने। आयात-निर्यात के लिए नये देश ढूंढ़े जाने लगे। ऐसे देश जहां बंदरगाह हों। इसमें संयुक्त अरब अमीरात ने बाजी मार ली। उसके पास दुबई का बंदरगाह था जहां से बड़े पैमाने पर शिपिंग होती है। इसकी भौगोलिक स्थिति भी आदर्श थी। यह यूरोप और एशिया के बीच में है तथा यहां से यूरोप में उत्पादित माल को भारत सहित विभिन्न देशों में भेजना आसान था। यह व्यापार का नया केन्द्र बनने लगा। इसके लिए वहां के शासकों ने पूरी कोशिश की। लेकिन सत्तर के दशक में यह सोने का बड़ा बाजार बन गया क्योंकि भारत में सोने की खरीद-बिक्री पर सख्त कानून बन गया था। यूरोप खासकर स्विट्ज़रलैंड से वहां सोना आता था और वहां के बाजारों में बिकता था। दरअसल सोने की तमाम बड़ी खानें अफ्रीका में हैं लेकिन उनका स्वामित्व गोरों के पास था जो वहां से सोना निकलवा कर विश्व बाज़ार में बेचा करते थे और अभी भी बेच रहे हैं। हालांकि चीन, रूस, अमेरिका और कनाडा में भी सोने की खुदाई होती है लेकिन अफ्रीकी देश जैसे घाना, दक्षिण अफ्रीका, सुडान, तंजानिया, माली वगैरह देशों में सोने का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। यहां खुदाई की लागत विकसित देशों से ज्यादा है। वहां से खुदाई करके सोने को स्विट्जरलैंड भेजा जाता है जहां उनसे सोने की छड़ें बनाई जाती हैं। अगर आप सोने की छड़ों को जिन्हें गोल्ड बार कहते हैं, देखेंगे तो पायेंगे कि उन पर स्विट्जरलैंड खुदा होगा। ऐसे सोने की शुद्धता सबसे ज्यादा होती है।
यह सोना यूरोप, अमेरिका, दुबई, शारजाह, अबू धाबी वगैरह के बाज़ारों में बिकने के लिए आता है। भारतीयों के लिए यूएई के बाजार आकर्षक हैं क्योंकि वहां लाखों भारतीय काम करते हैं तथा गुजरात एवं महाराष्ट्र से बहुत नजदीक होने के कारण जाना आसान है। इसलिए भारतीयों के लिए ये बहुत बड़े बाज़ार में तब्दील हो गये हैं। यहां से भारतीय हर साल अरबों रुपये के सोने के गहने खरीद कर लाते हैं। यहां के शेखों ने स्वर्णाभूषणों के बाजारों को विकसित किया, उन्हें टैक्स या ड्यूटी से दूर रखा। नतीजा यह हुआ कि बड़े पैमाने पर सोने की बिक्री बढ़ी और तस्करी भी। पिछले साल दुबई के सोना बाज़ारों में लगभग 47 टन सोना बिका।
निवेश का बड़ा माध्यम
जब निवेश की बात आती है तो दूरदर्शी लोग सोने को भी अपने पोर्टफोलियो में शामिल करते हैं। रियल एस्टेट के लिए बहुत ज्यादा निवेश की जरूरत होती है लेकिन सोना शेयरों या म्युचुअल फंडों की ही तरह है जिसमें कम से कम धन में निवेश हो सकता है और फायदा हो सकता है। सोने की कीमतें लगातार बढ़ती रहती हैं। संकट के समय ये और भी बढ़ जाती हैं। सोने के बारे में यह बात पूरे विश्वास से कही जाती है कि सोने ने अपने निवेशकों को कभी निराश नहीं किया है। यह बात नीचे के चार्ट से स्पष्ट होती है :
सोने की कीमतें कब गिरेंगी?
सोना अभी कुछ दिनों तक और ऊपर जा सकता है क्योंकि इंटरनेशनल सटोरिये अभी भी इस पर ध्यान लगाए बैठे हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि सोने के दाम भारत में मांग बढ़ने से नहीं बढ़ते बल्कि इंटरनेशनल प्लेयर ही इसे उठाते-चढ़ाते हैं। इस समय भी यही हालात हैं। अरबपति जॉर्ज सोरोस, वारेन बफे, जेफरी गनलाक, रे डेलियो, जॉन पॉलसन, पॉल ट्यूडर वगैरह सोने में पैसा लगातार लगा रहे थे जिससे इसकी तेजी को बल मिला। इसके पीछे इनका हाथ तो था ही लेकिन परिस्थितियां भी ऐसी बनीं कि सोना चढ़ता ही गया। एक और बात है कि सोने की कीमतों का संबंध डॉलर से भी है। डॉलर जब कमज़ोर होता है तो विदेशी निवेशक सोने में निवेश करते हैं और इस समय कमोबेश यही स्थिति है। यानी भारत में सोने के दाम यहां से नहीं बल्कि विदेशों से तय होते हैं। इसलिए सोने की कीमतों का बढ़ना या गिरना उस पर ही निर्भर करता है। हां, यह जरूर है कि स्थानीय कारणों जैसे पर्व-त्योहार, शादियों के कारण यहां सोने की कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं। लेकिन भारतीयों का सोने के प्रति क्रेज खत्म नहीं होता है और वे सोना खरीदते ही रहते हैं। ऑल इंडिया जेम एंड ज्वेलरी काउंसिल के मुताबिक पिछले कुछ सालों में हर धनतेरस में 20-22 टन सोने की खरीदारी होती है जबकि इस साल यह आंकड़ा 30 टन तक पहुंच गया। ऐसा देश में आर्थिक स्थिति में तेजी ­­के कारण हुआ है। हमारा मिडल क्लास इस समय खर्च करने की स्थिति में है और वह जमकर खरीदारी कर रहा है। भारत में भारी खपत के कारण भी सोने के दाम पर फर्क तो पड़ता ही है।
कीमतें इन ऊंचाइयों पर रहने वाली नहीं
लेकिन सच्चाई यह है कि सोने की कीमतें हमेशा इन्हीं ऊंचाइयों पर नहीं रहने वाली हैं। उतार-चढ़ाव एक आर्थिक प्रक्रिया है और इससे कोई भी नहीं बच पाता है। सोने को ही लीजिये 1970 में अमेरिकी आर्थिक संकट के दौरान इसकी कीमतें पांच गुनी बढ़ीं और कई वर्षों तक इसमें तेजी आती रही लेकिन उसके बाद यह लगभग अपने पुराने स्तर पर आ गया था। साल 2008 के विश्व आर्थिक संकट में यह तेजी से बढ़ा लेकिन 2011 आते-आते फिर ठंडा पड़ गया। इसलिए यह तय है कि सोना भी गिरेगा लेकिन कब, यह कोई नहीं जानता है। ऐसे में इस समय सोना खरीदना समझदारी का काम नहीं है बल्कि अगर पैसे की जरूरत है तो कुछ सोना बेहिचक बेच दीजिये। बाद में जब इसके दाम घट जायें तो फिर खरीद लीजिये।
भारत दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश
सोने के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है। हर साल औसतन यह 800 टन से भी ज्यादा सोना खऱीदता है और करीब 100 टन सोना तस्करी के जरिये यहां आता है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 3.4 खरब रुपये का सोना खरीदा था और इस वित्त वर्ष में यह आंकड़ा इसे भी पार कर जायेगा। सोने के इतने बड़े आयात के कारण देश का व्यापार संतुलन गड़बड़ा रहा है। हालांकि सरकार ने सोने के आयात को रोकने के लिए गोल्ड बॉन्ड भी जारी किया लेकिन सोने के खरीदारों ने उस पर ध्यान नहीं दिया और सोने की खरीदारी जारी रखी।

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