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युद्ध की विभीषिका में झुलसती मानवता

08:02 AM May 08, 2024 IST
युद्ध की विभीषिका में झुलसती मानवता
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दीपिका अरोड़ा

भोजन हमारे जीवन की आधारभूत आवश्यकता है, जिसके बिना जीने की कल्पना तक करना असंभव है। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक खाद्य संकट को लेकर जारी हालिया रिपोर्ट पर दृष्टिपात करें तो विगत वर्ष विश्व के 59 देशों में 28 करोड़ से अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा। फलस्तीन, दक्षिणी सूडान, यमन, सीरिया एवं हैती में भुखमरी की स्थिति बेहद गंभीर आंकी गई। रिपोर्ट के मुताबिक़, विगत 7 माह से युद्ध का सामना कर रहे गाजा में लगभग 11 लाख लोग भूख के पैमाने के पांचवें स्तर पर पहुंच गए। मई माह के दौरान यहां भुखमरी फैलने व जुलाई में अकाल जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होने संबंधी आशंकाएं कुलबुलाने लगी हैं।
भुखमरी का प्रकोप बढ़ाने में यद्यपि प्राकृतिक आपदाओं, खाद्यान्न की बर्बादी आदि अन्यान्य कारणों का बड़ा हाथ रहता है तथापि उन युद्धजन्य दुष्प्रभावों को भी नहीं नकार सकते जो ग़रीबी व भुखमरी की बढ़ोतरी में मुख्य रूप से ज़िम्मेदार बनते हैं। जैसा कि सर्वविदित है, इस्राइल पर हमास के आतंकी हमले के प्रत्युत्तर में 7 अक्तूबर को इस्राइल द्वारा गाजा पट्टी पर भीषण बमबारी की गई। निरंतर चल रहे इस खूनी संघर्ष में 34 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए, 77 हज़ार से अधिक हताहत हुए, लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। मृतकों में सर्वाधिक, 14,500 बच्चे शामिल हैं। ख़बरों के अनुसार, इस्राइल अब दक्षिण में स्थित राफा शहर पर हमले की तैयारी में है, जो वर्तमान में 10 लाख से अधिक फलस्तीनियों की शरणस्थली बना हुआ है।
धधकते शोलों का सामना करते गाजा के 23 लाख नागरिक प्रतिदिन भोजन अनुपलब्धता की समस्या से जूझ रहे हैं। ऑक्सफेम के मुताबिक़, हज़ारों लोग औसतन 245 कैलोरी पर जीवित हैं जबकि एक व्यक्ति को प्रतिदिन 1,600 से 3,000 कैलोरी चाहिए।
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं हमले में अभिभावकों को गंवा चुके फलस्तीनी बच्चे। दिन भर पंक्ति में खड़े रहने के बावजूद उन्हें दो वक्त का भोजन-पानी तक नसीब नहीं हो पाता। भोजन व आवश्यक चिकित्सीय सुविधाओं के अभाव में हज़ारों मासूम बच्चे कुपोषण का शिकार हो चुके हैं। युद्ध के दौरान जन्मे बच्चों की स्थिति तो और भी शोचनीय है। मीडिया की रिपोर्टानुसार, 17 अप्रैल तक गाजा के अस्पतालों में कुपोषण के कारण जान गंवाने वाले 12 साल से कम आयुवर्ग के बच्चों की संख्या 28 रही, जिनमें एक माह से कम उम्र के 12 बच्चे शामिल थे।
अंतर्राष्ट्रीय शांति प्रयासों के बावजूद, इस्राइल-हमास के मध्य युद्धविराम पर समझौता संभव नहीं हो पाया। हालांकि हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान, हमास राजनेता खलील अल-हया द्वारा रखे गए संधि प्रस्ताव के दृष्टिगत संभावनाएं पनपी तो हैं। अल हया के मुताबिक़, अगर 1967 के पहले वाली सीमाओं के तहत स्वतंत्र फलस्तीन देश की स्थापना होती है तो न केवल हमास हथियार डाल देगा बल्कि ख़ुद को मात्र एक राजनीतिक दल में बदल लेगा। उन्होंने पांच वर्ष या उससे अधिक समय के लिए युद्धविराम पर राज़ी होने की बात भी कही। बयान पर इस्राइल या फलस्तीनी अथॉरिटी की कोई प्रतिक्रिया आने तक स्थिति संशयपूर्ण है चूंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा सुझाए दो राष्ट्रों वाले समाधान को इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पूर्व में नकार चुके हैं।
मानवीय दृष्टिकोण से आतंकवाद का दमन करना निस्संदेह अत्यावश्यक है किंतु प्रतिशोध की भावना से निर्दोष लोगों को युद्ध की आग में झोंकना भी सर्वथा अमानवीय है। 6 महीनों के दौरान हुए भीषण नरसंहार के चलते विश्व के अनेक हिस्सों में इस्राइल के विरुद्ध रोष पनपने लगा है। विगत माह, 25 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित किया, जिसमें गाजा में ‘तत्काल’ युद्धविराम का आह्वान किया गया। अमेरिका के न्यूयार्क से लेकर कैलिफोर्निया तक विभिन्न विश्वविद्यालयों से छात्रों के आक्रोशित स्वर मुखर हो रहे हैं।
युद्ध तबाही के अतिरिक्त कुछ नहीं; भले ही वह गृहयुद्ध हो अथवा दो देशों के मध्य व्याप्त हिंसात्मक संघर्ष। सूडान हो या सोमालिया लगातार गृहयुद्ध से जूझते अफ्रीकी देशों में लोग वर्षों से भूख व ग़रीबी के साए में जीने को विवश हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध हो या हमास-इस्राइल जंग, उर्वरक धरती को बंजर बनाने का ख़मियाज़ा समूचे विश्व को भुगतना पड़ता है।
विगत वर्ष 32 देशों में भूख से जूझते 3.60 करोड़ पांच वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों में कुपोषण का स्तर गंभीरतम होना एवं ढाई करोड़ बच्चों का भोजन के अभाव में विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होना मानवीय विफलताओं का द्योतक है। ‘विकास’ का दम भरने से पूर्व अन्य कारणों के निवारण सहित पृथ्वीलोक को युद्ध की विभीषिका से मुक्त करना होगा। सही अर्थों में हम सभ्य तभी बनेंगे जब जीवन में शांति-सद्भावना-अहिंसा का महत्व समझते हुए युद्धक परिस्थितियों का निर्भयतापूर्वक विरोध कर पाएंगे। भूख व संहार से बिलखती मानवता का करुण कंद्रन हमारी आंखों में ज्वार-भाटा बनकर न उतरे तो किसी भी स्तर पर हमें ‘मानव’ कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

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