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मस्तिष्क तकनीक से जुड़े मानवाधिकार के प्रश्न

06:26 AM Feb 16, 2024 IST
मस्तिष्क तकनीक से जुड़े मानवाधिकार के प्रश्न
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दिनेश सी. शर्मा

तकनीक विशेषज्ञ और खरबपति इलॉन मस्क ने अपने अलमस्त अंदाज़ में 29 जनवरी को एक्स एप पर चौंकाने वाली घोषणा कर डाली। यह पहले से जानी-पहचानी परियोजना टेस्ला या हाइपरलूप की बाबत न होकर कम मशहूर स्टार्टअप न्यूरालिंक पर थी, जिसकी शुरुआत 2016 में हुई थी। इस कंपनी ने दिमाग के अंदर (इनवेसिव) डिवाइस डालकर गतिविधियां पढ़ने वाली चिप का मनुष्यों पर परीक्षण शुरू कर दिया है। वैसे अमेरिका और अन्य देशों में दशकों से अनेकानेक अनुसंधान समूह इम्प्लांटेबल ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस डिवाइसेस पर काम करते आए हैं और कइयों का परीक्षण भी हुआ है। लेकिन न्यूरालिंक के दावे के मुताबिक उनके इस प्रयोग में किसी मनुष्य के न्यूरॉन से पहली बार सूचना रिकॉर्ड की गई है। इस चिप में अति सूक्ष्म पॉलीमर तंतु हैं, जो दिमाग के अंदर 1024 बिंदुओं से गतिविधियां दर्ज कर सकते हैं। किसी अन्य समूह अथवा कंपनी द्वारा इतनी बड़ी बैंडविड्थ से ब्रेन-कंप्यूटर कम्युनिकेशन का उपयोग करने का दावा अब तक नहीं किया गया।
हो सकता है मस्क की यह घोषणा नाटकीय लगे लेकिन न्यूरालिंक पिछले कई सालों से इस तकनीक पर काम कर रही है। जुलाई, 2019 में कैलिफोर्निया एकेडमी ऑफ साइंस के एक बंद कमरे में हुई बैठक में प्रयोग संबंधी कुछ तफ्सील को साझा किया गया था। यह डाटा अनुसंधानकर्ताओं द्वारा चूहे के दिमाग में स्थापित किए गए अत्यंत सूक्ष्म इलेक्ट्रॉड्स माध्यम से प्राप्त किया गया था। मस्क ने बताया था कि बंदरों के दिमाग में भी डिवाइस डाली गई, जिसने उनके मस्तिष्क को नियंत्रण करना संभव कर दिखाया। इस तकनीक में पॉलीमर तंतु हैं जो दिमाग के न्यूरॉन के इलेक्ट्रिकल सिग्नल को ग्रहण कर कान के पीछे लगी वायरलेस डिवाइस को प्रेषित कर देते हैं। दिमाग में सर्जिकल रोबो की मदद से भी चिप डाली जा सकती है। मस्क के मुताबिक यह तकनीक रीढ़ की हड्डी में चोट से लकवाग्रस्त हुए लोगों की मददगार हो सकती है। उन्होंने यह दावा भी किया कि चिप से अवसाद और व्यक्ति में एलज़ाइमर इत्यादि को भी ठीक किया जा सकता है।
न्यूरालिंक और अन्य अनुसंधानकर्ता जैसे कि ब्लैकरॉक न्यूराटेक और सिन्क्रोन समूह तरक्की कर रहे इस स्टार्टअप क्षेत्र का हिस्सा है, जिसे न्यूराटेक (फिनटेक, एजूटेक, एग्रीटेक की तर्ज पर) नाम दिया गया है। न्यूराटेक का उद्देश्य इंसान के दिमाग की अवस्था का विनियमन करना है। न्यूराटेक की दो धाराएं हैं ः नॉन इनवेसिव और इनवेसिव तकनीक। नॉन इनवेसिव में खोपड़ी की सतह पर इलेक्ट्राड्स और अन्य डिवाइस लगाकर दिमाग की गतिविधि को पढ़ा जाता है और काफी समय से यह विधा उपयोग हो रही है। अनेकानेक न्यूराटेक उत्पाद पहले ही प्रचलित हैं जैसे कि ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम) उपकरण जो दिमाग की गतिविधि में सुधार लाने के लिए सिग्नल को दर्ज कर संबंधित डाटा एवं ट्रांसक्रेनियल स्टिमुलेशन कॉन्ट्रैप्शन मुहैया करवाता है। इसका उपयोग करके दिमाग की गतिविधि में सुधार लाया जाता है। उदाहरणार्थ, सिडनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ने ऐसा सिस्टम बनाया है जो दिमाग में इम्प्लांट किए बगैर शांत विचारों को पढ़कर उन्हें लिखित रूप में दर्ज कर सकता है। इस विधि में खोपड़ी की सतह से ही मस्तिष्क की इलेक्ट्रिकल गतिविधि को ईईजी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एलॉरिद्म की मदद से बड़ी मात्रा में इकट्ठा हुए सिग्नल को बांचकर, उनका अनुवाद शब्दों और वाक्यों के रूप में किया जाता है। इसे ब्रेन-जीपीटी का नाम दिया गया है।
न्यूरालिंक सरीखी कंपनियां इनवेसिव तकनीकों पर काम कर रही हैं, जिनमें खोपड़ी की सतह, दिमाग के भीतर और शरीर के अन्य अंगों पर इम्प्लांट स्थापित करना शामिल है। पर्ड्यू यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल एंड कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर श्रिया सेन ने वाई-आर नामक तकनीक ईजाद की है, जो शरीर के अंदर ऐसा इंटरनेट स्थापित कर सकती है, जिसका उपयोग करके शरीर के अंदर लगी और बाहर डिवाइस जैसे कि स्मार्टफोन, स्मार्टवाच और इंसुलिन पम्प इत्यादि एक-दूसरे से संपर्क बना सकते हैं। सेन ने ब्रेन इम्प्लांट को लेकर एक अन्य अवधारणा भी पेश की है, जिससे कि भविष्य में इंसान तकनीकी यंत्रों को महज विचारों के जरिए चला/नियंत्रित कर सकेगा। वाई-आर तकनीक ब्लूट्रुथ या अन्य रेडियो सिग्नल्स से कहीं कम फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करके काम करती है। यह लो-फ्रीक्वेंसी सिग्नल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में इलेक्ट्रो-क्वासिस्टिक रेंज में आते हैं और मनुष्य की चमड़ी से गुजरकर प्रेषण कर सकते हैं। सेन और उनके शोधकर्ताओं ने आइनैक्सा नामक कंपनी बनाई है जो खोज को उत्पाद में ढालकर व्यापार करेगी, जो डिजिटल कम्युनिकेशन को माइंड कंट्रोल और ह्यूमन टच देना चाहते हैं।
ब्रेन इम्प्लांट ‘किताबी कीड़ों’ के लिए कोई क्लिष्ट उपकरण न होकर न्यूरोजिकल व्याधियों, रीढ़ की चोट इत्यादि से ग्रस्त लोगों के बहुत काम की संभावना रखता है। इस किस्म के इम्प्लांट की उपयोगिता मिरगी के पुराने रोगियों या रीढ़ की हड्डी की चोट से लकवाग्रस्त होकर अपाहिज हुए लोगों के लिए हो सकती है। एआई और इम्प्लांट की युगलबंदी विश्वभर में करोड़ों ऐसे लोगों को आशा की किरण दिखा रही है। न्यूराटेक के लिए भारत में भी बहुत मौका है, जहां बड़ी संख्या में न्यूरोलॉजिकल समस्या से ग्रस्त मरीज हैं।
तथापि, न्यूराटेक पर नैतिकता और नियमन को लेकर बहुत से तकाजे अनुत्तरित हैं। इंसान के दिमाग के अंदर इम्प्लांट स्थापित करके जो क्लीनिकल ट्रायल न्यूराटेक ने शुरू किए हैं, उनके नियमन पर रहस्य कायम हैं। भले ही अमेरिका की फूड एंड ड्रग रेग्यूलेटरी एडमिनिस्ट्रेशन ने परीक्षण अनुमति दे दी है परंतु न तो परीक्षणों की तफ्सील साझा करने वाली अनिवार्यता का पालन हुआ है न ही परीक्षणों का वैज्ञानिक मकसद मालूम है। विगत में मस्क की कंपनी द्वारा मनुष्यों पर परीक्षण करने की अनुमति को खारिज कर दिया गया था, इसलिए यह जानना आवश्यक है कि इस बार मंजूरी का आधार क्या है। अनेक नॉन-इनवेसिव उत्पाद जैसे कि माइग्रेन के इलाज के लिए इलेक्ट्रॉड्स का उपयोग होता आया है, इनकी दक्षता-निरापदता-गुणवत्ता के प्रमाण के प्रश्न बाकी हैं
अतएव, नई मस्तिष्क तकनीकें नैतिकता और मानव अधिकार को लेकर चिंताएं पैदा करती हैं। इस क्षेत्र में अधिकांश खोजकार्य निजी कंपनियां द्वारा किया जा रहा है, जिनकी जवाबदेही अपने निवेशकों और शेयर धारकों के प्रति ही रहती है। इसलिए, जाहिर है कि जहां वे इनवेसिव तकनीक में निहित जोखिमों, उच्च कीमत, संक्रमण, दीर्घकालिक दुष्परिणाम, बैटरियों के ज्यादा गर्म होने इत्यादि प्रभावों को घटाकर बताएंगे तो सफलता का गुणगान बढ़ा-चढ़ाकर करेंगे।
कंपनी द्वारा तकनीक में भावी सुधारों के मद्देनज़र दिमाग में पहले से डाले जा चुके इम्प्लांट का क्या होगा या अगर कंपनी बंद हो जाए? क्या इस किस्म के उपकरण विशाल मात्रा में बनाए जाएंगे क्योंकि सबके दिमाग की अवस्था एक जैसी नहीं हो सकती। कुछ मामलों में, अमेरिका में, परीक्षण हेतु डाले गए इम्प्लांट निकालने पड़े क्योंकि उन्हें बनाने वाली नई कंपनियों का धंधा नहीं चल पाया। सबसे ऊपर है, मस्तिष्क उपकरणों का गैर-मेडिकल प्रयोजनों के लिए दुरुपयोग करने संबंधी चिंता। नियामक, नीति-निर्माता और नैतिकता के प्रहरियों को ऐसे जटिल मुद्दों का हल ढूंढ़ना होगा। नई तकनीक को लेकर अति-उत्साह में बहने की बजाय इसके तकनीकी पहलुओं पर लोगों के बीच जानकारी परिपूर्ण संवाद की जरूरत है।

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लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के माहिर हैं।

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