‘बारूद के ढेर’ पर कैसे बुनेंगे भविष्य के सपने
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 18 नवंबर
कोचिंग सेंटरों में बच्चे भविष्य के सपनों को हकीकत के धरातल पर उतारने के लिए आते हैं, लेकिन जब ये ही सुरक्षित नहीं तो स्थिति क्या होगी। कैथल जिले में 60 से अधिक कोचिंग सेंटर व पुस्तकालय हैं। इनमें हजारों विद्यार्थी भविष्य संवारने के लिए आते हैं। अजीब स्थिति यह है कि ज्यादातर केंद्रों के पास आग बुझाने के पर्याप्त साधन व संसाधन नहीं हैं। ऐसे में विद्यार्थी बारूद के ढेर पर बैठकर अपने सुनहरे भविष्य की बुनियाद बुनने को मजबूर हैं।
बताया जा रहा है कि भारी भरकम फीस वसूलने के बावजूद कोचिंग सेंटरों की सुरक्षा भगवान भरोसे है। कोचिंग सेंटर संचालकों के पास आग बुझाने के उपकरण व बंदोबस्त नहीं है। यानी कभी कोई हादसा हो जाए तो उसके मंजर के बारे में सोचने पर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मोटी फीस वसूलने वाले संचालकों ने बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं कर रखा। कायदों से दमकल विभाग से एनओसी लेने के लिए नगर परिषद से इमारत का नक्शा पास होना चाहिए। रिवेन्यू रिकार्ड होना जरूरी है। पार्षद या डीटीपी विभाग की रिपोर्ट के साथ साथ इमारत की ड्राइंग होनी चाहिए। इसी प्रकार विभाग के पास संचालक की विस्तृत जानकारी होना भी बेहद जरूरी है। ज्यादातर केंद्रों में फायर सेफ्टी और अन्य सुरक्षा उपायों पर ध्यान नहीं दिया जाता। नियमों के अनुसार तो कोचिंग सेंटर व पुस्तकालय बेसमेंट में नहीं हो सकता, लेकिन यहां संचालकों को बच्चों की जान से ज्यादा अपनी कमाई की परवाह है। बता दें कि राजस्थान, दिल्ली और गुजरात में अनेक बार कोचिंग केंद्रों में खौफनाक हादसों की खबरें आ चुकी हैं।
जांच कर मौके पर थमाए नोटिस
जब दमकल विभाग के कार्यालय प्रभारी रामेश्वर गिल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कैथल में फिलहाल उन्होंने 59 कोचिंग सेंटर चिन्हित किए हैं। इनमें ने सिर्फ दो कोचिंग सेंटर संचालकों ने फायर विभाग से एनओसी ली। विभाग ने जांच के बाद 57 कोचिंग सेंटर संचालकों को मौके पर ही नोटिस दिए हैं। इसी प्रकार 100 स्कूल संचालकों को भी नोटिस दिए गए हैं।
क्या होगा, अगर हादसा हो जाए
यहां कई कोचिंग सेंटरों व पुस्तकालयों में आने जाने का रास्ता एक ही है। जो कोचिंग सेंटर तीसरी मंजिल पर चल रहे हैं उनकी सीढिय़ों का रास्त भी एक ही है। ऐसे में अगर कोई अगजनी हो जाए तो भगदड़ मचनी तय है। एक समय में दो विद्यार्थियों का भी सीढ़ी चढ़ना-उतरना मुश्किल है, भगदड़ में क्या होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ जगहों पर विभाग की सख्ती के चलते फायर सिलेंडर तो लगा दिए गए हैं, लेकिन विभाग से एनओसी नहीं ली है।