कैसे हों आयुष्मान
यह बात परेशान करने वाली है कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत उपचार कराने के जरूरतमंदों के लिये पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ ने अपने दरवाजे बंद कर दिये हैं। वजह पंजाब सरकार द्वारा गत सात माह से इलाज के बाकी 16 करोड़ का भुगतान न करना है। निस्संदेह यह स्थिति पंजाब के सत्ताधीशों की संवेदनहीनता व कमजोर वर्ग के रोगियों के प्रति उदासीनता को ही दर्शाती है। दरअसल, पीजीआईएमईआर हर महीने पंजाब के बारह से चौदह सौ के करीब रोगियों का उपचार करता है। विडंबना यह भी कि सत्ताधीशों की उदासीनता के चलते पंजाब में कोई सरकारी अस्पताल इस योजना के तहत मरीजों का उपचार नहीं करता। पीजीआई की इस कार्रवाई के चलते कई गंभीर रोगों से जूझ रहे कमजोर वर्ग के मरीज उपचार से वंचित हो रहे हैं। पीजीआई द्वारा 21 दिसंबर, 2021 से किये गये दावों का करीब सोलह करोड़ रुपये पंजाब सरकार पर बकाया है। अब एक अगस्त से पंजाब के आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी इस योजना के लाभ पाने से वंचित होंगे। इससे पहले पीजीआई के अधिकारियों ने राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण पंजाब से लाभार्थियों को प्रदान किये गये उपचार के संबंधित लंबित दावों का भुगतान करने का आग्रह किया था, लेकिन राज्य सरकार ने इसके भुगतान में कोई रुचि नहीं दिखायी। इतना ही नहीं, पीजीआईएमईआर के अधिकारियों ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की कार्यान्वयन एजेंसी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण को भी पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप के लिये आग्रह किया था। दरअसल, मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना में कमजोर वर्ग के लोगों को पांच लाख तक बीमा कवर प्रदान किया था जिसके अंतर्गत चालीस करोड़ लोगों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य था। मकसद यही था कि कमजोर वर्गों के लोग आसानी से गंभीर व सामान्य रोगों का उपचार करवा सकें। जिसके अंतर्गत 18 साल से अधिक उम्र के लोग जरूरी दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन व ऑफलाइन आवेदन करके इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
दरअसल, इस योजना के तहत प्रावधान है कि केंद्र सरकार द्वारा साठ प्रतिशत व राज्य सरकारों द्वारा चालीस प्रतिशत के अनुपात में धनराशि देकर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। राज्य के द्वारा दिये जाने वाले हिस्से का ही पंजाब सरकार भुगतान नहीं कर रही है। कई राज्यों में जहां इस योजना में बीमा कंपनियों की भूमिका तय की गई थी, वहीं करीब बीस राज्यों ने ट्रस्ट बनाकर लाभार्थियों को उपचार की सुविधा पहुंचाने की गंभीर पहल की। दरअसल, बीमा कंपनियों के साथ कई राज्यों के अनुभव अच्छे नहीं रहे। जहां सरकारों से बीमा कंपनियों ने पूरी रकम ले ली, वहीं दावों का भुगतान बेहद कम संख्या में किया। इस दिशा में हरियाणा सरकार ने ट्रस्ट बनाकर लाभार्थियों को राहत पहुंचाने का उपक्रम किया। करीब एक हजार से अधिक पैकेज तय किये ताकि छोटी-बड़ी बीमारियों को इसमें कवर किया जा सके। राज्य सरकार ने जहां निजी अस्पतालों को अपने पैनल में लिया, वहीं तमाम सरकारी अस्पतालों को भी पैनल में शामिल किया। जिससे आयुष्मान भारत योजना का लाभ अधिक संख्या में लोग उठा सकें। राज्य सरकार ने बीमारियों के उपचार हेतु बुनियादी ढांचा बनाने की भी पहल की जिनका संचालन राज्य सरकार ट्रस्ट बनाकर कर रही है। पंजाब के आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों का पीजीआई में इलाज से वंचित होना राज्य सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। लोकलुभावनी राजनीति करने वाले राजनेता यदि राज्य में स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना अपनी प्राथमिकता नहीं बनाते तो इसे राज्य की लोककल्याण की अवधारणा से खिलवाड़ ही कहा जायेगा। मुफ्त की राजनीति करने वाले नेताओं को इस बात का अहसास नहीं है कि रोटी-कपड़ा-मकान की प्राथमिकताओं के क्रम में ही स्वास्थ्य सेवाओं को भी तरजीह दी जानी चाहिए। राज्य की बदहाल चिकित्सा का सच किसी से छिपा नहीं है। यदि राज्य के सरकारी अस्पतालों को इस योजना के दायरे में शामिल किया जाता तो निश्चित रूप से दूरदराज के रोगियों को उपचार के लिये चंडीगढ़ के बड़े अस्पतालों के चक्कर नहीं काटने पड़ते। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा।