कितना तैयार ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र
कोरोना की दूसरी लहर में गांवों में संक्रमण का बढ़ना चिंताजनक है। प्रधानमंत्री ने सभी ग्रामीणों को महामारी के प्रति जागरूक रहने और पूर्ण सतर्कता बरतने की अपील की थी। आज दिल्ली और महाराष्ट्र में स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है, जहां देश का सबसे बेहतर स्वास्थ्य तंत्र है तो ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र इसके मुकाबले कहां टिकेगा। ऐसे में महामारी का गांवों तक पहुंचना विभिन्न प्रकार की चुनौतियां खड़ी कर सकता है। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, शहर के अस्पतालों तक लाना-ले जाना, जहां पहले से ही अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं, बेड और ऑक्सीजन की कमी आदि बड़ी चुनौतियां हैं।
विकास बिश्नोई, हिसार
देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना महामारी ने अपने पैर पूरी तरह से पसार लिये हैं। इसका कारण ग्रामीण क्षेत्रों का सरकारों की प्राथमिकता में नहीं होना भी माना जा सकता है। इससे ग्रामीणों में भय का माहौल है। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर कोरोना वायरस की जांच की होती तो सरकारों के सामने यह समस्या ही उत्पन्न नहीं होती। आज भी ग्रामीण क्षेत्र शहरों के भरोसे हैं। वहीं दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों द्वारा कोरोना वायरस को काफी हल्के में लिया गया।
संदीप कुमार वत्स, चंडीगढ़
कोरोना महामारी के विस्तार को रोकने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा टेस्ट, ट्रैक एंड ट्रीट की रणनीति चरणबद्ध तरीके से ग्रामीण अंचलों में क्रियान्वित करने पर जोर दिया गया है। गांवों के लोगों का शहर में आवागमन होने के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने लगे हैं। लेकिन गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाएं कोविड-19 के विस्तार को रोकने, संक्रमितों का इलाज करने एवं ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हैं। लिहाजा शहरों की तरफ रुख करना विवशता हो गयी है। राज्य सरकार अपने स्तर पर ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र का ढांचा तैयार करने में जुटी हुई है।
युगल किशोर शर्मा, खाम्बी, फरीदाबाद
तेज हो अभियान
आज गांवों में निजी अस्पताल न के बराबर हैं और सरकारी अस्पतालों का भी अभाव है। बीमारी के समय गांवों के लोगों को शहर की चिकित्सा सेवा पर निर्भर रहना पड़ता है। वैसे तो ग्रामीण इलाकों में यूनानी, आयुर्वेदिक, नेचुरल पद्धतियों का चलन ज्यादा है, लेकिन उनके पास आधी-अधूरी ही जानकारी होती है। अब जब कोरोना ने ग्रामीण इलाकों में भी घुसपैठ कर ली है, तब वहां इसकी रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान तेज करने की बहुत जरूरत है। इसके साथ ही गांव के स्वास्थ्य तंत्र को सुधारना बहुत जरूरी है, तभी इस संकट से पार पा सकेंगे।
भगवान दास छारिया, इंदौर, म.प्र.
कोविड संकट ने सरकारी एवं गैर-सरकारी सेवाओं का असली चेहरा सबके सामने प्रस्तुत कर दिया है। आज ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर हैं। गांवों में गरीब किसान-मजदूर रहते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाना उनके बस से बाहर है। अस्पतालों की कुव्यवस्था के डर से गांवों में आलम ऐसा हो चुका है कि बीमार होने पर मरीज झोला छाप डॉक्टरों के पास जाना पसंद करते हैं, अस्पतालों में नहीं। यदि संक्रमण को रोका नहीं गया तो देहाती क्षेत्र में मौत के आंकड़े सबको चौंका देंगे।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
समस्त ग्रामीण परिवेश स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अप्रशिक्षित आशा वर्कर पर निर्भर है। दूसरा अत्यंत दुखद विषय यह है कि जब राष्ट्र की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई ही कोविड संकट को झेलने में सक्षम नही है, फिर ग्रामीण तंत्र की तैयारी और विफलता स्वयं दृष्टिगोचर हो जाती है। निरंतर बढ़ती हुई मौतों का सिलसिला बेहद डरावना है। शहरी हो या ग्रामीण सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गम्भीर लचर व्यवस्था से जीवन के प्रति असुरक्षित और बेहद खौफजदा हैं। ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ता संक्रमण भयंकर चुनौती है। ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र नगण्य है। ग्रामीण परिवेश को उनके हाल पर छोड़ा जाना अत्यंत निंदनीय है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम
पुरस्कृत पत्र
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का मौजूदा स्वास्थ्य-तंत्र कोरोना महामारी के हमले को झेल पाने में असमर्थ है। लचर स्वास्थ्य सेवाएं, शहरों में घनी आबादी, भीषण वायु प्रदूषण, जागरूकता की कमी और गंदगी ने महामारी को भयावह बना दिया है। ग्रामीण इलाकों में तो चिकित्सा सुविधाएं नजर ही नहीं आतीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में हमेशा ताला लगा रहता है। ऐसे में यदि सुदूर गांवों में कोरोना का संक्रमण पहुंच जाए तो मौतों का आंकड़ा कहां तक पहुंच सकता है, इसकी कल्पना से ही सिहरन होती है। अब भी यदि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था सुधर जाए तो लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
नितेश मंडवारिया, नीमच, म.प्र.